Begin typing your search above and press return to search.
उत्तर प्रदेश

अयोध्या राममंदिर के 'टाइम कैप्सूल' का सच, आखिर किसको झूठ परोस रही मीडिया और मोदी सरकार

Janjwar Desk
7 Nov 2020 1:37 PM IST
अयोध्या राममंदिर के टाइम कैप्सूल का सच, आखिर किसको झूठ परोस रही मीडिया और मोदी सरकार
x
टाइम कैप्सूल की कहानी एक झूठी कहानी है, जिसमें इसे एक ऐसी डिवाइस बताया जाता है जिसकी मदद से वर्तमान दुनिया से जुड़ी जानकारियां भविष्य व दूसरी दुनिया में भेजी जा सकती हैं...

जनज्वार, लखनऊ। अयोध्या में राम मंदिर बनवाने के साथ ही जनता से झूठ का एक हवाई किला भी गढ़ा गया था। ये हवाई किला था 'टाइम कैप्सूल' का। मीडिया में 'टाइम कैप्सूल' को लेकर तमाम तरह के प्रपंच गढ़े बनाये गए। तो पीएम मोदी भी 'टाइम कैप्सूल' की नींव रखने वाले पहले पीएम बनने को लेकर गदगद रहे।

'टाइम कैप्सूल' को लेकर मीडिया में अलग-अलग हैडिगों के साथ कहानियां गढ़ी बताई गईं। आज तक की सिस्टर वेंचर 'द लल्लनटॉप' ने 28 जुलाई 2020 को इस हैडिंग के साथ छापा कि अयोध्या में राम मंदिर की नींव में 2000 फ़ीट नीचे पीएम मोदी दफ़नाएँगे 'टाइम कैप्सूल' लल्लनटॉप की महिला एंकर ने यह भी दावा किया कि इंदिरा गांधी ने भी लाल किले में टाइम कैप्सूल रखा था।

नवभारत टाइम्स ने 27 जुलाई की अपनी रिपोर्ट में पीएम मोदी द्वारा 'टाइम कैप्सूल' रखने की बात तो स्वीकारी लेकिन कैप्सूल को दफनाने की गहराई 200 फ़ीट ही बताई। पंजाब केसरी ने भी गहराई के मामले में एनबीटी का समर्थन किया। उसने भी 200 फ़ीट नीचे ही कैप्सूल लगवाए जाने की बात लिखी है। तो क्या जालौन के चमरिया वाले पंडीजी गहराई अधिक छपवा दिए या फिर एनबीटी और पंजाब केसरी गलत हैं।

दैनिक जागरण भी अपनी 4 अगस्त की प्रकाशित रिपोर्ट में मंदिर बनवाने का ठेका लार्सन एंड टर्बो यानी एल एंड टी को दिए जाने के साथ 2000 फ़ीट की गहराई तक गया। अब जब देश के इतने करोड़ों अरबों रुपये की लागत से खड़े मीडिया संस्थान छाप रहे हैं तो जनता का फर्ज बनता है इसे भ्रामकता से न लें। जैसा है उसकी सत्यता को अलग-अलग मापदंडों से नापते रह सकते हैं।

हालांकि बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक कहा गया है कि 'टाइम कैप्सूल' पूरी तरह से झूठ का पुलिंदा है। यह बात बीबीसी में राम जन्मभूमि क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय के हवाले से लिखी गई है। जिसमें कहा गया है कि टाइम कैप्सूल की बात मात्र अफवाह है और कुछ नहीं मतलब ट्रस्ट के सदस्य ही कैप्सूल की बात पर भ्रम में हैं। जबकि कैप्सूल की बात ट्रस्ट के ही एक सदस्य कामेश्वर चौपाल कही थी। उन्होंने कहा था कि इसे जमीन से 2000 फ़ीट नीचे गाड़ा जाएगा।

क्या है टाइम कैप्सूल?

इसे एक ऐसी डिवाइस बताया जाता है जिसकी मदद से वर्तमान दुनिया से जुड़ी जानकारियों को भविष्य या दूसरी दुनिया मे भेजा जा सकता है। टाइम कैप्सूल का आकार कुछ स्पष्ट नहीं है। मसलन यह बेलनाकार, चौकोर, आयताकार या फिर किसी अन्य रूप में भी हो सकता है। हालांकि बटेश्वर मंदिरों का पुनरुद्धार करने वाले पुरातत्वविद केके मुहम्मद मानते हैं कि पुरातत्व विज्ञान में टाइम कैप्सूल की कोई महत्ता नहीं है।

टाइम कैप्सूल और इंदिरा गांधी

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इंदिरा गांधी ने आजादी के 25 साल बाद एक राष्ट्र की 25 वर्षों की उपलब्धियो और संघर्षों को बयां करने के लिए लाल किले में एक टाइम कैप्सूल डलवाया था। देश मे आपातकाल चल रहा था और इंदिरा उन दिनों राजनीति के चरम पर थीं। इंदिरा के बाद सत्ता में आई मोरार जी देसाई सरकार ने टाइम कैप्सूल को खुदवाया था। इसमें क्या था यह आज तक विवादों में ही है।

बावजूद तमाम प्रपंचों, कहानियों, किलों के ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने अयोध्या में लग रहे टाइम कैप्सूल को महज अफवाह बताया है। ट्रस्ट ही के सदस्यों के बीच चल रहे विवाद में सवाल यही है कि क्या सचमुच अयोध्या के राममंदिर में कोई कैप्सूल डाला भी जाएगा या नहीं।

Next Story

विविध