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lakhimpur kheri case in hindi: सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणियां हकीकत बयान करती हैं
lakhimpur kheri case in hindi: सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणियां हकीकत बयान करती हैं
lakhimpur kheri case in hindi: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे और लखीमपुर खीरी हिंसा मामले के मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा की जमानत रद्द करने का फैसला 18 अप्रैल को सुनाया। इस दौरान कोर्ट ने कई तल्ख टिप्पणियां भी कीं। इस परिप्रेक्ष्य में राज्यों की अदालतों की निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह पैदा होते हैं। जिस बर्बर घटना के सारे सबूत और वीडियो दुनिया देख चुकी है उस मामले में भी हाईकोर्ट के माननीय जजों ने केंद्रीय मंत्री के आरोपी बेटे को जमानत देकर न्याय की मूल भावना पर ही प्रहार किया है।
मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमण की अध्यक्षता वाली और न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय से कहा कि वह नए सिरे से जांच करे कि मिश्रा को जमानत दी जानी चाहिए या नहीं।
पीठ ने कहा कि पीड़ितों को प्रभावी सुनवाई के अवसर से वंचित कर दिया गया और उच्च न्यायालय ने प्रासंगिक विचारों की अनदेखी की है। इसमें आगे कहा गया है कि उच्च न्यायालय ने जमानत देने में काफी जल्दबाजी दिखाई। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को नए सिरे से विचार के लिए उच्च न्यायालय में वापस भेज दिया। पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश को कायम नहीं रखा जा सकता और इसलिए जमानत को रद्द किया जाता है।
लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में आशीष मिश्रा की जमानत रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गवाहों को कथित रूप से धमकाने और मिश्रा के समर्थकों द्वारा कथित हमले की शिकायतों पर भी गंभीर रुख अपनाया और इसे राज्य के अधिकारियों के लिए एक वेक-अप कॉल कहा। सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा, "यह घटना राज्य अधिकारियों (यूपी सरकार) के लिए एक वेक-अप कॉल के रूप में काम करेगी, ताकि चश्मदीद गवाहों के जीवन, स्वतंत्रता और संपत्तियों के साथ-साथ मृतक के परिवारों के लिए पर्याप्त सुरक्षा को सुदृढ़ किया जा सके।"
अमूमन सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट के फैसलों पर इतनी तल्ख टिप्पणी नहीं करता है। मगर इस मामले में मेरिट बनाम कोर्ट का आदेश, इनमें विसंगतियों और कोर्ट के अपने अधिकार और न्याय दोनों सीमाओं के अतिक्रमण पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणियां की हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में हाईकोर्ट से कहा कि आशीष मिश्रा की जमानत अर्जी की मेरिट पर निष्पक्ष और संतुलित ढंग से विचार कर तीन महीने में फैसला करे। अगर पीड़ित पक्ष अपने लिए वकील करने में अक्षम है तो हाईकोर्ट का उत्तरदायित्व है कि वो उनके लिए राज्य सरकार के खर्चे पर अपराधिक कानून की विशेषज्ञता वाले उपयुक्त वकील का भी इंतजाम करे, ताकि उन्हें न्याय मिल सके।
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि एफआईआर में आग्नेयास्त्रों से गोलियां चलाने का जिक्र है लेकिन मारे गए लोगों की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में कहीं गोलियां नहीं मिलीं। मेरिट के आधार पर इसका फायदा आरोपी को नहीं दिया जा सकता। लेकिन हाईकोर्ट ने आरोपी आशीष मिश्रा को राहत दी। जमानत अर्जी पर फैसला करते समय कोर्ट को घटनाओं और साक्ष्यों का अवलोकन और मूल्यांकन करने से बचना चाहिए, क्योंकि ये काम ट्रायल कोर्ट का है।
3 अक्टूबर को लखीमपुर खीरी में आशीष के काफिले द्वारा प्रदर्शनकारियों को कथित रूप से रौंदने से चार किसानों की मौत हो गई थी, जिसके बाद गुस्साए किसानों ने कारों में सवार तीन लोगों की पीट-पीट कर हत्या कर दी थी। इस हिंसा में एक पत्रकार की भी मौत हो गई थी। आशीष को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फरवरी में जमानत दे दी थी।
आशीष को जमानत देने में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा शुरू किए गए गलत निर्णय का विश्लेषण करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसने न्यायिक मिसालों और स्थापित मापदंडों की अनदेखी करते हुए अप्रासंगिक विचारों को ध्यान में रखा।
फैसला लिखते हुए न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने कहा, "हाईकोर्ट ने उन सिद्धांतों को पूरी तरह से खो दिया है जो पारंपरिक रूप से अदालत के विवेक को नियंत्रित करते हैं, जब यह सवाल तय किया जाता है कि जमानत दी जाए या नहीं। अपराध की प्रकृति और गंभीरता, दोषसिद्धि की स्थिति में सजा की गंभीरता, आरोपी या पीड़ितों के लिए अजीबोगरीब परिस्थितियां, आरोपी के भागने की संभावना, सबूतों और गवाहों के साथ छेड़छाड़ की संभावना और प्रभाव जैसे पहलुओं पर गौर करने के बजाय कि उसकी रिहाई मुकदमे और बड़े पैमाने पर समाज के लिए नुकसानदेह हो सकती है, हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड पर साक्ष्य के बारे में एक अदूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाया है।"
"कई मौकों पर यह फैसला सुनाया गया है कि एक प्राथमिकी को घटनाओं के विश्वकोश के रूप में नहीं माना जा सकता है। जबकि प्राथमिकी में आरोप, कि आरोपी ने अपनी बन्दूक का इस्तेमाल किया और उसके बाद पोस्टमॉर्टम और चोट की रिपोर्ट का कुछ सीमित असर हो सकता है, उसे अनुचित महत्व देने की कोई कानूनी आवश्यकता नहीं थी, "सुप्रीम कोर्ट ने कहा।
"इसके अलावा एक मामले की योग्यता पर टिप्पणियों का, जब परीक्षण शुरू होना बाकी है, कार्यवाही के परिणाम पर प्रभाव पड़ने की संभावना है," एससी ने कहा, लेकिन स्पष्ट किया कि यह भी अब तक एसआईटी द्वारा एकत्र किए गए सबूतों पर कोई राय व्यक्त नहीं कर रहा है, जिसे इसके द्वारा पुनर्गठित किया गया था।
मिश्रा को इस मामले में पिछले साल नौ अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया था। 3 अक्टूबर, 2021 को लखीमपुर खीरी में किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई झड़पों में चार किसानों सहित आठ लोगों की मौत हो गई थी। हाईकोर्ट ने उन्हें 10 फरवरी को जमानत दे दी।
लखीमपुर खीरी में मिश्रा की कार से कुचले गए किसानों के परिवार के सदस्यों ने उन्हें मिली जमानत को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था। आशीष मिश्रा केंद्रीय मंत्री और भाजपा सांसद अजय कुमार मिश्रा के बेटे हैं।