जनज्वार इंपेक्ट: मुख्यमंत्री ने गढ़वाल कमिश्नर को सौंपी हैलंग प्रकरण की जांच
Dehradun News, Dehradun Samachar। बीते 15 जुलाई को चमोली जिले में जोशीमठ के निकट हैलंग में पुलिसकर्मियों द्वारा घसियारी महिलाएं के घास के गट्ठर छीने जाने की खबर जनज्वार में प्रमुखता से पब्लिश किए जाने के एक ही दिन बाद इस घटना का प्रदेश के मुख्यमंत्री ने संज्ञान ले लिया है। इस प्रकरण की जांच मुख्यमंत्री ने गढ़वाल कमिश्नर से कराए जाने का एलान किया है।
बता दे कि उत्तराखंड के चमोली जिले में जोशीमठ शहर के पास टीएचडीसी की पीपलकोटी विष्णुगाड़ नाम की जल विद्युत परियोजना के लिए हैलंग में बनने वाली सुरंग का गांव के चारागाह में डालकर गांव के गोचर को बरबाद किया जा रहा था। इस ढलान वाली भूमि पर प्रशासन की ओर से ग्रामीणों को खेल मैदान बनाए जाने का झांसा देकर बिजली कम्पनी को बकायदा यहां पर अपना मलवा डंप करने की लिखित इजाजत दी गई थी। जबकि ढलान वाली इस जगह पर डाला गया मलवा पानी के साथ बहकर भूमि से सटी अलकनंदा नदी में समा जाना तय था। प्रशासन ने इस मामले में कुछ गांव वालों को अपने पक्ष में कर लिया था लेकिन बाकी गांव वाले इसके विरोध में थे। ग्रामीणों का कहना था यह उनके पशुओं के लिए बची हुई आखिरी चारागाह है। यदि इस जगह को भी मलवे से बरबाद कर दिया गया तो वह अपने पशुओं के लिए चारा पत्ती लेने कहां जायेंगे।
प्रशासन की ओर से इन लोगों को सबक सिखाने और डराने-धमकाने के लिए इस जगह पर केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के सशस्त्र जवानों के साथ जिले भर के सरकारी अमले को यहां तैनात कर दिया गया था। लेकिन इसके बाद भी 15 जुलाई को इसी गांव की तीन महिलाएं और एक पुरुष जिसमें मंदोदरी देवी, लीला देवी, संगीता भंडारी और विपिन भंडारी शामिल थे, जब यहां से चारा पत्ती लेकर आ रहे थे तो हाइवे पर सीआईएसएफ और पुलिस के जवानों ने ग्रामीणों से जबरन उनके चारा-पत्ती के गठ्ठर छीनकर इन्हें खूंखार मुजरिमों की तरह गाड़ी में डालकर थाने ले जाया गया। महिलाओं को छः घंटे तक पुलिस वाहन कस्टडी और थाने में बिठाने के बाद इनका पुलिस एक्ट के तहत 250-250 रुपये का चालान कर छोड़ा गया। गौरा देवी की भूमि पर महिलाओं के साथ हुए इस अत्याचार की खबर मिलते ही पूरे प्रदेश में इसका विरोध शुरू हो गया। राजधानी देहरादून सहित प्रदेश के कई शहरों में विरोध प्रदर्शनों के बीच तमाम आंदोलनकारी ताकतों ने 24 जुलाई को हैलंग कूच का आह्वान भी किया था।
इस पूरे प्रकरण पर जनज्वार ने बुधवार को एक बड़ी रिपोर्ट पब्लिश की थी। इस रिपोर्ट के पब्लिश होने के बाद गुरुवार को राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस घटना की जांच गढ़वाल कमिश्नर को सौंप दी है। इस बात की जानकारी खुद मुख्यमंत्री ने अपने ट्विटर हैंडल से साझा की है। इसके साथ ही इस मामले में राज्य महिला आयोग ने भी संज्ञान लेते हुए घटना की जांच के निर्देश दिए हैं। आयोग की अध्यक्ष कुसुम कंडवाल ने कहा कि जिलाधिकारी को पर्सनली इन महिलाओं से मिलने के निर्देश दिए हैं। डीएम को यह भी कहा गया है कि किसी भी महिला या किशोरी को प्रताड़ित न किया जाए।
हालांकि राज्य महिला आयोग द्वारा इस मामले की जांच जिलाधिकारी से कराए जाने पर भाकपा माले की स्टेट कमेटी सदस्य अतुल सती ने सवाल उठाते हुए कहा है कि इस मामले में जिलाधिकारी स्वयं ही एक पार्टी पक्ष हैं। ऐसे में उनसे निष्पक्ष जांच की उम्मीद नहीं रखी जा सकती। महिला आयोग यदि सच में इसकी निष्पक्ष जांच चाहता है तो पूरे मामले की स्वतंत्र व निष्पक्ष जांच करवाई जानी चाहिये। यदि पार्टी होने के बाद खुद जिलाधिकारी ही इसकी जांच करेंगे तो यह जांच के नाम पर केवल लीपापोती होगी। क्योंकि जिलाधिकारी इन पहाड़ी घसियारी महिलाओ को पहले से ही दोषी ठहरा चुके हैं, जबकि भाकपा माले के फायर ब्रांड युवा नेता इंद्रेश मैखुरी ने मुख्यमंत्री द्वारा हेलंग में महिलाओं से घास छीनने के आदेश पर त्वरित टिप्पणी करते हुए कहा कि कुछ दिन तापमान नापने के बाद मुख्यमंत्री ने जांच का आदेश दिया है, लेकिन उन महिलाओं का खुल कर विरोध करने वाले व्यक्ति के जिलाधिकारी रहते जांच अप्रभावित कैसे रहेगी?
जिलाधिकारी के क्रिया कलाप पर रोशनी डालते हुए माले नेता इंद्रेश ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ ट्विटर अभियान में जिलाधिकारी हिमांशु खुराना, पुष्कर धामी को टैग करते रहे हैं। ऐसे में स्वतंत्र व निष्पक्ष जांच के लिए चमोली के जिलाधिकारी को तत्काल बदला जाना जरूरी है। इसके साथ ही इंद्रेश मैखुरी ने बीते बरस मार्च में दिवालिखाल में महिलाओं समेत उन पर हुए बर्बर लाठीचार्ज के बाद हुई मजिस्ट्रेटी जांच का हवाला देते हुए कहा कि बाकी आंदोलनकारी साथियों ने मौखिक और मैंने लिखित बयान दर्ज कराए थे। वह जांच कहाँ गई आज तक पता नहीं। इसलिए इस प्रकरण में जांच के नाम पर ऐसी लीपापोती कतई स्वीकार्य नहीं होगी।
न्याय पालिका की चौखट पर भी पहुंच सकता है यह प्रकरण
चमोली जिले के हेलंग में गोचर पनघट की भूमि पर अपने पशुओं के लिए घास काटने वाली घसियारी महिलाओं के साथ हुई बदसलूकी का मामला न्याय पालिका तक भी पहुंच सकता है। गुरुवार को इस प्रकरण की गूंज हाई कोर्ट परिसर में उस समय सुनाई पड़ी जब उच्च न्यायालय नैनीताल के अधिवक्ताओं ने हाईकोर्ट बार एसोसिएशन सभागार में इस मामले में चिंतन बैठक अयोजित की। इस बैठक में चर्चा हेतु राज्य आंदोलन से जुड़े अधिवक्ता सहित जनहित के मुद्दों पर संवेदनशील अधिवक्ताओं द्वारा हेलंग गांव के ग्रामीणों एवम महिलाओं के ऊपर हो रहे अत्याचार पर आक्रोश व्यक्त किया गया।
इस चर्चा में अधिवक्ताओं का मानना था कि उत्तराखण्ड राज्य की अवधारणा को साकार करने के बजाय ग्रामीणों के हक-हकूक पर लगातार आए दिन सरकारों द्धारा प्रहार किया जा रहा है। प्रदेश की सभी ग्रामसभाओं के अधिकारों के संरक्षण हेतु संविधान के 73 वें संशोधन को लागू करने के लिए राज्य सरकार को आगे आना चाहिए। अध्यक्ष हाई कोर्ट बार एसोसिएशन प्रभाकर जोशी ने कहा कि महिलाओं व ग्रामीणों के संघर्ष में हाई कोर्ट बार एसोसिएशन उनके साथ है।
उत्तराखण्ड के विभिन्न ज्वलंत मुद्दों पर विचार विमर्श करने के लिए जल्द ही प्रदेश के सभी जिला बार एसोसिएशन के अधिवक्ताओं की संयुक्त बैठक हाई कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा अयोजित की जाएगी। इस चर्चा में हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रभाकर जोशी, पूर्व अध्यक्ष एमसी पंत, पूर्व अध्यक्ष सैयद नदीम मून, उत्तराखण्ड क्रांति दल विधि प्रकोष्ठ के प्रभारी डीके जोशी, बीएस नेगी, नवनीश नेगी, योगेश पचोलिया, डॉ. कैलाश तिवारी, भुवनेश जोशी, दुर्गा सिंह मेहता, रमेश चंद्र आर्य, डीसीएस रावत, त्रिलोचन पाण्डे, बीएस कोरंगा, केके तिवारी, सूरज पांडे, गौरव कुमार, प्रेम प्रकाश भट्ट, आनंद कुमार पांडे, धीरज कुमार, आमिर मलिक, मंजु बहुगुणा, डीएन शर्मा, सिद्धार्थ नेगी, अभिषेक सती जेपी पांडे, नवीन चंद्र आर्य, भूपेंद्र सिंह बिष्ट, मनोज कुमार टिटगई, विजय रावत, नरेंद्र पपने, बी एस रावत विजय सिंह सहित दर्जनों अधिवक्ता उपस्थित रहे।