हार के खौफ से निकला हिमाचल का सवर्ण आयोग बनेगा क्या भाजपा का तारणहार?
सलीम मलिक की रिपोर्ट
Uttarakhand News: हालिया उप चुनाव में अलग-अलग करारी हार के बाद सहमी भारतीय जनता पार्टी आने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पूर्व अपने सभी लूप होल्स की रिपेयरिंग करने पर आमादा हो चली है। उत्तर-प्रदेश में किसानों को रिझाने के लिए तीनों कृषि कानून वापस लेने के बाद उत्तराखण्ड के नाराज तीर्थ-पुरोहितों को खुश करने के लिए वापस लिए गए देवस्थानम बोर्ड को वापस लिए जाने की अगली कड़ी में हिमाचल प्रदेश की जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार द्वारा सवर्ण आयोग गठन किये जाने की घोषणा की गई है। लम्बे समय से आरक्षण सहित एससी-एसटी एक्ट के विरोध के साथ ही प्रदेश में सवर्ण आयोग के गठन की मांग कर रहा सवर्ण तबका जहां इससे खुश है। वहीं भीम आर्मी सहित तमाम दलित चिंतक इसे भविष्य में बढ़ने वाली दलित उत्पीड़न की घटनाओं के रूप में देख रहे हैं। इसके साथ ही इसके उत्तर भारत के सामाजिक ताने-बाने पर बढ़ते ब्राह्मणवाद के प्रभुत्व की दृष्टि से भी देखा जाना लगा है।
समय-समय पर देश में सामाजिक रूप से पिछड़ रहे समुदाय की स्थिति का आकलन करने व उसे मुख्यधारा में लाये जाने की नीतियों-कार्यक्रमों का क्रियान्वयन व उस पर होने वाले उत्पीड़न से बचाने व उनके कल्याण के लिए अलग से आयोग बनाये जाने की व्यवस्था है। देश भर के वंचित तबके लिए ऐसे कई आयोग प्रदेशों में पहले से कार्यरत हैं। लेकिन बीते कुछ दिनों से देश का सम्पन्न व समाज का प्रभावशाली सवर्ण वर्ग अपने आप को उपेक्षित मानते हुए अपने हितों की सुरक्षा के लिए अपने लिए भी आयोग की मांग करता रहा है। अनुसूचित जाति, आदिवासियों, अन्य पिछड़ा वर्ग सहित सामाजिक तौर पर कमजोर वर्ग को मिलने वाले आरक्षण को प्रतिभा से खिलवाड़ बताने वाला यह तबका एससी-एसटी एक्ट को भी अपने उत्पीड़न के तौर पर देखता है। बढ़ते निजीकरण की वजह से घटती सरकारी नौकरियों के अवसरों से बढ़ी बेरोजगारी का दंश झेलता सवर्ण युवा अपनी समस्याओं का समाधान आरक्षण समाप्ति में तलाशता है। भारतीय जनता पार्टी का कोर समर्थक यह वर्ग भाजपा के सर्वोच्च राजनैतिक उत्थान के बाद अपनी तमाम आकांक्षाओं की पूर्ति की उम्मीद भाजपा से करता है। इन आकांक्षाओं की पूर्ति में जिस वर्ग का नुकसान होना है, उस वर्ग का भी भाजपा अच्छी खासी संख्या में वोट प्राप्त कर अपनी राजनैतिक शक्ति प्राप्त करती है। उस पर संवैधानिक बाध्यता भी है कि सब कुछ इतना खुलकर नहीं हो सकता, जितना इस वर्ग को संतुष्ट कर सके।
लेकिन भारतीय जनता पार्टी के नेता सब कुछ जानते हुए भी अपने बयानों के माध्यम से सवर्ण अनुकूल वातावरण बनाये रखने में मदद करते हैं। जैसा कि हिमाचल प्रदेश के दिग्गज भाजपाई व पूर्व मुख्यमंत्री ने सवर्ण आयोग गठित किये जाने की घोषणा के दूसरे ही दिन अपने फेसबुक बयान में सरकारी नौकरियों में जाति आधारित आरक्षण पूरी तरह से समाप्त करने की मांग कर किया।
उन्होंने आज यानी रविवार सुबह फेसबुक पर अपने पोस्ट में कहा कि अब वक्त आ गया है कि जाति आधारित आरक्षण व्यवस्था को समाप्त करके परिवार की आय के आधार पर आरक्षण दिया जाए। शान्ता कुमार ने स्वर्ण आयोग के सवाल पर हुए प्रदर्शन को ऐतिहासिक प्रदर्शन बताते हुए कहा कि ऐसा हिमाचल प्रदेश में पहले कभी नही हुआ था। उनके मुताबिक इसका सबसे बड़ा कारण देश की लगभग अस्सी प्रतिशत जनता का जाति आधारित आरक्षण से परेशान होना है। वह कहते हैं कि समय आ गया है जब जाति आधारित आरक्षण को पूरी तरह समाप्त करके केवल आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाना चाहिए।
शान्ता कुमार ने कहा इतने लम्बे समय से आरक्षण का लाभ उठाने के बाद भी आरक्षित जातियों के गरीबों को पूरा लाभ नही मिला। ग्लोबल हंगर इन्डैक्स की रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया के सबसे गरीब 130 देशों में नीचे 117 क्रमांक पर है। 19 करोड़ 40 लाख लोग लगभग भूखे पेट सोते हैं जिसमें एक अनुमान के अनुसार 12 करोड़ लोग आरक्षित जातियों के है। उन्होंने देश के नेताओं से आग्रह किया है कि जाति आधारित आरक्षण को तुरन्त समाप्त किया जाए नही तो धर्मशाला जैसा आन्दोलन अब पूरे देश में होगा और अब होना भी चाहिए। उन्होंने ऐसे महत्वपूर्ण आन्दोलन को शुरू होने से पहले ही वह उसके पूरे समर्थन की भी घोषणा की है।
देश में पहला सवर्ण आयोग 2012 में बिहार में गठित किया गया था। लेकिन इसकी सिफारिशें कभी सार्वजनिक नहीं हुई। बाद में इसे ठंडे बस्ते में ही डाल दिया गया। इसके बाद मध्य प्रदेश में सवर्ण आयोग के गठन हुआ था। वर्तमान में केवल यही आयोग अस्तित्व में है। जिसको हिमाचल में गठित आयोग के मॉडल के तौर पर स्टडी करने की बात हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर कह रहे हैं।
मंडी लोकसभा के उपचुनाव में भाजपा जितने मतों के अंतर से हारी है, उतने ही मत सवर्णों के आह्वान पर नोटा को पड़े हैं। इसके अलावा स्थानीय स्तर पर पार्टी की गुटबाजी के कारण अनिल शर्मा नाम के एक कद्दावर नेता के कांग्रेस में जाने की भी पूरी संभावनाएं हैं। जिससे भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर बुरी तरह सहमी हुई है। ऐसे में अपने कोर वोटर की वजह से अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग मोर्चों पर फंसी भाजपा इन राज्यों में अपने इस कोर वोटर को खुश करने के लिए पूरी तरह से अपने को रिपेयर करने में जुटी हुई है। हिमाचल प्रदेश में सवर्ण आयोग (सामान्य वर्ग आयोग) देकर तो उत्तराखण्ड में देवस्थानम बोर्ड वापस लेकर। आखिर कोर वोटर साथ होगा तो ही तो वह बाकी अन्य वर्गों को भी साधकर भाजपाई खेमे में लाएगा।
लेकिन सवर्ण आयोग के गठन का मामला राजनैतिक के साथ ही सामाजिक पहलुओं से जुड़ा होने के कारण माना जा रहा है कि इसकी गूंज हिमाचल प्रदेश की सीमाओं से बाहर निकलकर भी गूंजेगी। उत्तराखण्ड में भी ब्राह्मण महासभा सवर्ण आयोग के गठन की मांग कर ही रही है। जम्मू में भी ऐसे ही कुछ स्वर सुनने को यदा-कदा मिलते ही हैं।
हिमाचल प्रदेश में सवर्ण आयोग गठन को देश भर के सामाजिक ताने-बाने में बढ़ रहे ब्राह्मणवादी पुनरुत्थान की कड़ी के रूप में चिन्हित करते हुए उत्तराखण्ड के दलित विचारक मोहन मुक्त के अनुसार सभी संस्थाएं अनौपचारिक तौर पर ब्राह्मणवादी सोच के साथ ही काम कर रही हैं। सवर्ण आयोग केवल अनौपचारिक से औपचारिक होने की ही बात है। पिछले कुछ समय से समाज को पीछे ले जाने वाली प्रतिगामी ताक़तों को जो मजबूती मिली है उसकी वजह से देश में प्रतिगामी मनुवादी संस्कृति की ओर ले जाया जा रहा है। उनके इस मार्ग में देश का संविधान बाधक बनकर खड़ा है। इसलिए उस पर भी लगातार हमला कर उसे कमजोर करने का काम किया जा रहा है।
इस मामले में भीम आर्मी के रवि कुमार दलित ने बढ़ते सवर्ण वर्चस्व को दलितों के लिए हानिकारक बताते हुए कहा कि कमजोर वर्गों को संविधान से मिले अधिकारों के बाद भी जिस हिसाब से उनके उत्पीड़न में कोई कमी नहीं आई है। उसके बाद इस घटना के बाद उत्पीड़न की घटनाएं और बढ़ेंगी। रवि का कहना है कि सरकार व विपक्ष की मूक सहमति व मिलीभगत के चलते इस आयोग के गठन के लिए माहौल बनाने की स्क्रिप्ट लिखी गई थी। जिसके बाद अराजक तत्वों ने पूरे प्रदेश में जंगल राज कायम कर दिया था। यहां तक कि अराजक तत्वों को विधानसभा तक बंधक बनाए जाने की छूट दी गई। उसके बाद तयशुदा पटकथा के अनुसार प्रदेश की 75 प्रतिशत सवर्ण आबादी को विक्टिम मानते हुए आयोग के गठन की घोषणा की गई। जबकि राज्य में पहले से ही राजपूत कल्याण बोर्ड, ब्राह्मण कल्याण बोर्ड व दस प्रतिशत आरक्षण सवर्णों को मिला हुआ है। यह सामान्य वर्ग का उत्थान नहीं बल्कि दलितों को कुचलने की साजिश है।