विशाल जूड मामला: CM मनोहर लाल ने जिसे बताया 'तिरंगा वॉरियर', कोर्ट ने उसे जेल की सजा सुनाई
(विशाल को सजा सुनाने के बाद उसके गांव कल्हेड़ी के लोगों ने गहरा रोष व्यक्त किया)
जनज्वार ब्यूरो/चंडीगढ़। ऑस्ट्रेलिया की अदालत ने विशाल जूड को सिखों पर हमला करने के आरोप में सजा सुना चुकी है। उसे छह माह बाद 15 अक्टूबर को पैरोल मिल सकती है। उसकी पैरोल में भी एक अड़चन यह है कि उसकी वीजा की अवधि समाप्त हो गई है जो उसकी मुश्किलें बढ़ा सकती हैं।
विशाल जूड अप्रैल में उस वक्त चर्चा में आया था, जब कृषि कानूनों के खिलाफ सिडनी में सिख प्रदर्शन कर रहे थे। उसने सिखों के प्रदर्शन का विरोध किया। इस पर दोनो गुटों में झड़प हो गई। बाद में 16 अप्रैल को विशाल जूड को ऑस्ट्रेलिया पुलिस ने तीन अलग-अलग मामले में गिरफ्तार कर लिया था।
जूड की गिरफ्तारी के बाद हरियाणा सरकार की ओर से उसे तिरंगा वारियर बताया गया था। दावा किया गया था कि तिरंगे के अपमान को होता देख कर जूड ने प्रदर्शनकारियों का विरोध किया था। सोशल मीडिया पर एक अभियान चलाया गया था। इसमें सिखों को खालिस्तान समर्थक करार देते हुए कहा गया कि वह भारतीय ध्वज का अपमान कर रहे थे। भारतीय ध्वज को अपमान से बचाने की कोशिश में जूड ने झड़प की।
हरियाणा में जूड की गिरफ्तारी को लेकर कई जिलों में तिरंगा यात्रा निकाली गई थी। युवक की रिहाई को लेकर हरियाणा के मुख्यमंत्री एमएल खट्टर, भाजपा नेता कपिल मिश्रा, ओलंपियन योगेश्वर दत्त और दिल्ली भाजपा प्रवक्ता तेजिंदर बग्गा ने रिहाई की मांग की थी।
अप्रैल से जेल में बंद जूड को दो दिन पहले मजिस्ट्रेट के थॉम्पसन ने पररामट्टा कोर्ट में सजा सुनाई थी, ऑस्ट्रेलिया के एनआरआई मामलों पर नजर रख रहे विवेक असरी ने यह जानकारी दी है। बताया गया कि इस सजा में छह महीने की पैरोल है। जूड पहले ही 4 महीने और 17 दिन जेल में बिता चुका है, इस तरह से वह 15 अक्टूबर को पैरोल के लिए पात्र हो सकता है।
विशाल को सजा सुनाने के बाद उसके गांव कल्हेड़ी के लोगों ने गहरा रोष व्यक्त किया है। उनका कहना है कि सरकार सिर्फ वाहवाही के लिए मामले को उठाती रही, जबकि युवक की रिहाई के लिए कुछ नहीं किया। उन्होंने बताया कि प्रदेश भर में जो प्रदर्शन किए गए,इसमें भाजपा के कार्यकर्ता शामिल थे।
कुरूक्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता अशोक कुमार ने बताया कि किसान आंदोलन में किसानों को दो फाड़ करने की कोशिश के लिए विशाल जूड का मामला बीजेपी ने एजेंडे के तहत उठाया था। कोशिश यह थी कि कृषि कानून का विरोध करने वाले किसानों को सिख और नान सिख में बांट दिया जाए। जिससे आंदोलन कमजोर हो जाएगा। इसलिए प्रदेश भर में जगह जगह तिरंगा यात्रा निकाली गई थी।
क्योंकि इस यात्रा का यदि कोई विरोध करता तो दावा किया जाता कि विरोध करने वाले तिरंगे के विरोधी है। यात्रा में युवाओं को शामिल किया गया था। हालांकि आंदोलनकारी किसान नेताओं ने देश द्रोही और तिरंगा विरोधी होने के टैग से बचने के लिए यात्रा का विरोध नहीं किया था।
इससे पहले बीजेपी ने किसान यात्रा निकाली थी, जिसमें यह दिखाया गया था कि तीन कृषि कानून से किसान खुश है। इस यात्रा का हर जगह विरोध हुआ था। तीन कृषि कानूनों पर बीजेपी का हर जगह भारी विरोध हो रहा है। स्थिति यह है कि सीएम और मंत्री समेत भाजपा विधायक भी जनता के बीच में जाने के लिए भारी सुरक्षा व्यवस्था का इंतजाम कराना पड़ता है। इसके बाद ही वह जनता के बीच जा पाते हैं।
इस सब के बीच विशाल जूड के मामले को आधार बना कर कोशिश यह थी कि कृषि कानूनों का विरोध करने वालों को खालिस्तानी समर्थक घोषित कर दिया जाए। इससे होगा यह कि एक तो आंदोलन से जो गैर सिख है, वह हट जाएंगे। इस तरह से आंदोलन कमजोर हो जाएगा। यदि ऐसा हुआ तो सरकार आसानी से तीन कृषि कानून न सिर्फ लागू कर सकती थी, बल्कि आंदोलन की वजह से भाजपा को जो नुकसान हो गया था, उसकी भी भरपाई भी हो जाएगी। यह संभव नहीं हुआ।
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विशाल जूड को सजा मिलने को भी राइटविंग मीडिया ने भी इस तरह से दिखाने की कोशिश की कि जैसे कुछ नहीं हुआ। जल्दी ही विशाल जेल से रिहा हो जाएगा। लेकिन अब जूड के गांव के लोग भी मान रहे हैं कि इस मामले में सिर्फ राजनीति हुई है। हकीकत में उनके गांव के युवा को ऑस्ट्रेलिया की जेल से रिहा कराने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। यदि उठाए जाते तो उसे इस तरह से सजा न मिलती। उसे मामले में दोषी न ठहराया जाता।