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तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे का क्या है ममता बनर्जी कनेक्शन, CM पद की कुर्सी पर मंडरा रहा संकट

Janjwar Desk
3 July 2021 5:35 AM GMT
तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे का क्या है ममता बनर्जी कनेक्शन, CM पद की कुर्सी पर मंडरा रहा संकट
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(तीरथ रावत के इस्तीफ के बाद ममता बनर्जी के लिए क्यों शुरू हुई चुनौतियां)

तीरथ सिंह रावत के बाद अब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए भी मुश्किल हो सकती है....

दिनकर कुमार की रिपोर्ट

जनज्वार ब्यूरो। उत्तराखंड में तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा है। संवैधानिक संकट की वजह से उन्होंने राज्यपाल को इस्तीफा सौंप दिया। दरअसल तीरथ सिंह रावत विधानसभा के सदस्य नहीं थे और वर्तमान हालात में उपचुनाव होना भी मुश्किल था। ऐसे में उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। इस बीच तीरथ सिंह रावत के बाद अब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए भी मुश्किल हो सकती है।

10 मार्च 2021 को तीरथ सिंह रावत ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की शपथ ली थी। ऐसे में 10 सितंबर से पहले उन्हें किसी सदन का सदस्य होना जरूरी थी। तीरथ ने संवैधानिक संकट और अनुच्छेद 164 का हवाला देते हुए इस्तीफे की बात कही है। अनुच्छेद 164(4) के अनुसार, कोई मंत्री अगर 6 माह की अवधि तक राज्य के विधानमंडल (विधानसभा या विधान परिषद) का सदस्य नहीं होता है तो उस समयसीमा के खत्म होने के बाद मंत्री का कार्यकाल भी समाप्त हो जाएगा। इस लिहाज से पश्चिम बंगाल की स्थिति भी उत्तराखंड जैसी ही दिख रही है। यहां सीएम ममता बनर्जी अभी विधानसभा की सदस्य नहीं हैं।

ममता अपने लिए एक सीट (भवानीपुर) खाली भी करा ली है, लेकिन वह विधानसभा की सदस्य तभी बन पाएंगी जब तय अवधि के अंदर चुनाव हो सके। कोरोना की वजह से केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने सभी चुनाव स्थगित किए हुए हैं। चुनाव प्रक्रिया कब से शुरू होगी, इस बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसे में अगर नवंबर तक भवानीपुर उपचुनाव के बारे में चुनाव आयोग फैसला नहीं लेता है तो ममता की गद्दी के लिए भी खतरा हो सकता है।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 23 जून को कहा था कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से चुनाव आयोग को बंगाल में जल्द ही उपचुनाव कराने का निर्देश देने के लिए कहेंगी। उनका यह कथन दर्शाता है कि वह छह महीने से पहले राज्य विधानसभा के लिए चुने जाने की संवैधानिक आवश्यकता को पूरा करने के लिए उत्सुक हैं, जबकि कोविड के मामलों की दूसरी लहर गिरावट पर है।

ममता विधानसभा की सदस्य नहीं हैं, उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के दिन से छह महीने के अंदर तक यानी कि 4 नवंबर तक विधानसभा का सदस्य हो जाना चाहिए। उन्होंने अपने लिए एक सीट भी खाली करा ली है, लेकिन सदस्य तो तब बन पाएंगी जब तय अवधि तक चुनाव हो सकें।

कारोना की वजह से केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने सारे चुनाव स्थगित कर रखे हैं। चुनाव प्रक्रिया कब से शुरू होगी, यह कहा नहीं जा सकता। ममता की मुश्किल यह है कि अगर आयोग की रोक नवंबर तक खिंच गई तब क्या होगा?

ममता विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम सीट से सुवेंदु अधिकारी से हार गई थीं। हालांकि उनके फिर से चुनाव की समय सीमा 5 नवंबर को समाप्त हो रही है, ममता चाहती हैं कि बंगाल में उपचुनाव कोविड की तीसरी लहर से पहले हो।

ममता ने 23 जून को अपने मुख्यालय में कहा था कि "हम इंतजार कर रहे हैं। हमने सुना है कि केंद्रीय चुनाव आयोग प्रधानमंत्री की मंजूरी का इंतजार कर रहा है। मैं प्रधानमंत्री से आगे बढ़ने का अनुरोध करूंगी।"

ममता ने कहा कि महामारी को ध्यान में रखते हुए सात दिनों के भीतर चुनाव कराए जा सकते थे। जब चुनाव शुरू हुआ (27 मार्च को पहला चरण) तो हमारे पास 2-3 प्रतिशत संक्रमण दर थी। आठवें चरण तक संक्रमण दर 32 फीसदी तक पहुंच गई थी। चुनाव 32 प्रतिशत पर हो सकते हैं तो एक प्रतिशत पर क्यों नहीं?

भवानीपुर, खरदा (परिणाम घोषित होने से पहले कोविड से विजयी उम्मीदवार काजल सिन्हा की मृत्यु हो गई), शांतिपुर और दिनहाटा (जहां भाजपा के दो सांसदों ने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की, लेकिन अपनी-अपनी लोकसभा सीटों को बरकरार रखने के लिए इस्तीफा दे दिया) में उपचुनाव होंगे। मतदान से पहले दो उम्मीदवारों की मौत के बाद शमसेरगंज और जंगीपुर सीटों पर चुनाव टाल दिया गया था।

तृणमूल के दिग्गज और राज्य के कृषि मंत्री शोभंदेब चट्टोपाध्याय, जिन्होंने भवानीपुर से जीत हासिल की थी, ने ममता को अपने पुराने निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने का रास्ता बनाने के लिए 21 मई को विधायक के रूप में इस्तीफा दे दिया। चट्टोपाध्याय के खरदाह से मैदान में उतरने की उम्मीद है।

ममता ने हालात को समझते हुए, विधान परिषद वाला रास्ता निकालने की कोशिश की थी। उन्होंने विधानसभा के जरिए प्रस्ताव पास कराया कि राज्य में विधान परिषद का गठन हो, लेकिन बगैर लोकसभा की स्वीकृति के यह हो नहीं हो सकता और केंद्र सरकार के साथ उनके जिस तरह के रिश्ते हैं, उसमें यह मुमकिन ही नहीं है।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भी इसी तरह की मुश्किल में फंस चुके हैं। उन्होंने 28 नवंबर 2019 को जब मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी तो किसी सदन के सदस्य नहीं थे। उन्हें 27 मई 2020 तक किसी सदन का सदस्य बनना था। उनके लिए तसल्ली की बात यह थी कि महाराष्ट्र में विधान परिषद है और उसकी सात सीटों के लिए अप्रैल 2020 में चुनाव होने थे।

उद्धव ठाकरे का प्लान यह था कि वह विधान परिषद चले जाएंगे। तभी कोरोना की पहली लहर आ गई और चुनाव स्थगित हो गए। तब उद्धव ठाकरे की मुश्किल बढ़ गई थी। कैबिनेट ने उन्हें मनोनयन कोटे वाली सीट पर राज्यपाल से मनोनीत करने का प्रस्ताव भेजा लेकिन राज्यपाल ने उसे भी रोक लिया।

एक तरह से उद्धव ठाकरे के इस्तीफा देने की नौबत आ पड़ी थी, वह तो उद्धव ठाकरे के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ व्यक्तिगत रिश्ते और शरद पवार की मध्यस्थता ने उनकी मुश्किल को आसान कर दिया। बीजेपी ने कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई और चुनाव आयोग ने विशेष परिस्थितियों का हवाला देते हुए मई महीने में विधानपरिषद का चुनाव कार्यक्रम तय कर दिया और उनकी कुर्सी बच गई लेकिन ममता के लिए ऐसा कुछ नहीं होने वाला है।

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