GN Saibaba Profile : कौन हैं जीएन साईंबाबा, SC ने उन्हें बरी करने वाले बॉम्बे HC के आदेश को सस्पेंड क्यों किया?
GN Saibaba Profile : कौन हैं जीएन साईंबाबा, SC ने उन्हें बरी करने वाले बॉम्बे HC के आदेश को सस्पेंड क्यों किया?
जीएन साईबाबा की चर्चा में होने की वजह पर धीरेंद्र मिश्र की रिपोर्ट
GN Saibaba Profile : एक दिन पहले बॉम्बे उच्च न्यायालय ( Bombay High court ) की नागपुर पीठ ने माओवादियों से कथित लिंक और यूएपीए ( UAPA ) के तहत देशद्रोह ( sedition case ) से जुड़े मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा ( GN Saibaba ) को बरी कर दिया था। हाईकोर्ट के फैसले को 24 घंटे बीते भी नहीं थे कि महाराष्ट्र सरकार की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court ) ने उसे पलट दिया। शीर्ष अदालत ने शनिवार को जीएन साईबाबा को बरी करने के हाईकोर्ट के आदेश को सस्पेंड कर दिया। यानि साईबाबा अभी जेल में ही रहेंगे।
दरअसल, जीएन साईबाबा ( GN Saibaba ) को प्रतिबंधित वामपंथी चरमपंथी संगठनों के साथ संबंधों और यूएपीए की धाराओं के तहत देशद्रोह के आरोपों जिला सत्र न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। 14 अक्टूबर को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम ( UAPA case ) के तहत आरोपों से उन्हें बरी कर दिया। हाईकोर्ट के आदेशों के खिलाफ शिंदे सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। शनिवार को सरकारी पक्ष के वकील को सुनने के बाद हाईकोर्ट के आदेश को सस्पेंड कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से लगातार दूसरे दिन प्रोफेसर जीएन साईबाबा ( GN Saibaba ) देश और दुनिया में सुर्खियों में हैं। अब चर्चा इस बात की है कि साईबाबा कौन हैं, बॉम्बे हाईकोर्ट की पीठ द्वारा उन्हें बरी किए जाने के आदेश को देश की सर्वोच्च् अदालत ने पलट क्यों दिया।
कौन हैं जीएन साईबाबा
गोकरकोंडा नागा साईंबाबा ( GN Saibaba ) सोशल एक्टिविस्ट, पूर्व प्रोफेसर और लेखक हैं। साईंबाबा का जन्म संयुक्त आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी के अमलापुरम में एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। पोलियो के कारण वह पांच साल की उम्र से व्हीलचेयर से बंधे हुए हैं। मेडिकल साइंस की भाषा में वह शारीरिक रूप से 90% विकलांग हैं। अमलापुरम में श्री कोनसीमा भानोजी रामर (एसकेबीआर) कॉलेज से वह स्नातक हैं। हैदराबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एमए और पीएचडी दिल्ली विश्वविद्यालय से किया। 2004 में वह इंटरनेशनल लीग ऑफ पीपल्स स्ट्रगल (आईएलपीएस) का भी हिस्सा बने। 2005 में वह रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट (RDF) में शामिल हो गए, जिसे अगस्त 2012 में आंध्र प्रदेश पब्लिक सिक्योरिटी एक्ट 1992 के तहत आंध्र प्रदेश सरकार प्रतिबंधित कर दिया था। 2009 में वह ऑपरेशन ग्रीन हंट के खिलाफ अभियान में एक प्रमुख आवाज बनकर सामने आये।
मई 2014 में माओवादी लिंक के लिए गिरफ्तार किया गया था। जून 2015 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने मेडिकल आधार पर जमानत दी थी। दिसंबर 2015 में वापस जेल भेज दिया गया। सुप्रीम कोर्ट से अप्रैल 2016 में जमानत मिलने के बाद रिहा कर दिया गया था। मार्च 2017 में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की एक सत्र अदालत ने उन्हें और एक पत्रकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के छात्र सहित अन्य को कथित माओवादी लिंक, प्रतिबंधित रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट (आरडीएफ) से संबंध रखने और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने की गतिविधियों में शामिल होने के लिए यूएपीए की धारा 13, 18, 20, 38 और 39 और भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
साईंबाबा ( GN Saibaba ) ने अभियोजन पक्ष के आरोपों को हमेशा से खारिज करते आये हैं। आजीवन कारावास की सजा मिलने के विरोध में भाकपा माओवादियों ने महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में 9 मार्च 2017 को भारत बंद का आह्वान किया था।
30 अप्रैल 2020 को संयुक्त राष्ट्र OHCHR के विशेषज्ञों के एक पैनल ने भारत सरकार से जीएन साईबाबा की खराब स्वास्थ्य को देखते हुए रिहाई की मांग की थी। 28 जुलाई 2020 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने साईबाबा की 45 दिन की मेडिकल जमानत याचिका खारिज कर दी। इतना ही नहीं, उन्हें 74 वर्षीय मां से मिलने की इजाजत भी नहीं मिली, जिसके बाद उनकी कैंसर से मृत्यु हो गई थी। उन्हें मां के अंतिम संस्कार में भाग लेने की भी इजाजत नहीं मिली थी। 22 अक्टूबर 2020 को साईबाबा ने जेल अधिकारियों द्वारा उनकी मांगों को स्वीकार किए जाने के बाद अपनी भूख हड़ताल वापस ले ली।
इस बीच 2003 में दिल्ली विश्वविद्याल के राम लाल आनंद कॉलेज में सहायक प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति मिली थी। यूपीपीए और देशद्रोह में नाम आने के बाद साल 2014 में साईबाबा को कॉलेज प्रबंधन ने संस्पेंड कर दिया। दोषी साबित होने के बाद अप्रैल 2021 में उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय के राम लाल आनंद कॉलेज से बर्खास्त कर दिया। जीएन साईंबाबा दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर थे।
14 अक्टूबर 2022 को बॉम्बे उच्च न्यायालय की पीठ ने साईंबाबा ( GN Saibaba ) सहित पांच आरोपियों को सभी आरोपी से बरी कर दिया 2017 में उन्हें दी गई आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर दिया। पीठ के मुताबिक सत्र अदालत के समक्ष गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत बिना मंजूरी कार्यवाही पूरी हुई थी, जिसे वैध नहीं माना जा सकता। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को सजा को निलंबित कर दिया था, जिसका मतलब है कि वह जेल में ही रहेंगे।
पत्नी वसंता कुमारी के मुताबिक वह व्हीलचेयर से बंधे साईबाबा कई जानलेवा बीमारियों" से पीड़ित हैं, जिनमें बाएं वेंट्रिकुलर डिसफंक्शन के साथ हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी, उच्च रक्तचाप, गुर्दे की पथरी, उनके मस्तिष्क में एक पुटी, अग्नाशय की समस्याएं, कंधे और हाथ की मांसपेशियों का क्षीणन शामिल है। नसों के परिणामस्वरूप उसके ऊपरी अंगों का आंशिक पक्षाघात हो गया और शारीरिक रूप् से 90% दिव्यांग हैं।
SC ने क्यों किया HC का आदेश सस्पेंड
सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court ) में शनिवार को बहस के दौरान जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने कहा कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने साईबाबा व अन्य को गुण-दोष के आधार पर बरी नहीं किया बल्कि प्रक्रियागत कमियों को आधार बनाते हुए फैसला सुनाया है। इस मामले में हम आप (साईंबाबा) में गलती नहीं ढूंढ रहे हैं। हम मामले को योग्यता के आधार पर न देखने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश में गलती ढूंढ रहे हैं। समाज के हित, भारत की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ अपराध बहुत गंभीर हैं होते हैं। ऐसे मामलों में प्रक्रियागत मंजूरी में विलंब या खामियों की वजह से आरोपी को बरी नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ने बसंत कुमारी का यह तर्क की स्टेट यानि अभियोजन पक्ष ने साईंबाबा पर मास्टरमाइंड होने का आरोप लगाया है। जबकि इस अपराध में उनकी संलिप्तता दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं हैं। इस पर जस्टिस शाह ने मौखिक रूप से टिप्पणी करते हुए कहा कि जहां तक आतंकवादी या माओवादी गतिविधियों का संबंध है तो उसके लिए प्रत्यक्ष भागीदारी से ज्यादा मस्तिष्क की सक्रिय मौजूदगी ज्यादा खतरनाक होता है।