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स्कैनियां बस घोटाले में आखिर क्यों खामोश है मेनस्ट्रीम मीडिया, कहीं बिल्ली के गले मे घण्टी बांधने वाला डर तो नहीं

Janjwar Desk
14 March 2021 9:21 AM GMT
स्कैनियां बस घोटाले में आखिर क्यों खामोश है मेनस्ट्रीम मीडिया, कहीं बिल्ली के गले मे घण्टी बांधने वाला डर तो नहीं
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स्कैनिया की आंतरिक जांच रिपोर्ट के अनुसार, 2013 से 2016 की अवधि के दौरान स्कैनिया के भारतीय कर्मचारियों और स्कैनिया द्वारा नियुक्त स्वतंत्र सलाहकारों ने भारतीय अधिकारियों और मंत्रियों को रिश्वत दी।

जनज्वार ब्यूरो। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण ने स्वीडिश सार्वजनिक समाचार ब्रॉडकास्टर, एसवीटी और जर्मन सार्वजनिक टीवी जेडीएफ द्वारा संयुक्त रूप से की गई एक खोजी वृत्तचित्र में गहन जांच की मांग की है। इसमें भारत में स्वीडिश ऑटोमेशन स्कैनिया द्वारा भ्रष्टाचार के गंभीर मामलों के बारे में बताया है।

स्वीडिश ऑटोमेकर एक जर्मन कंपनी वोक्सवैगन के स्वामित्व में है। स्कैनिया की भारत में दो सहायक कंपनियां हैं स्कैनिया इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और स्कैनिया वाणिज्यिक वाहन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड। पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा, 'ना खाऊंगा ना खाने दूंगा' पीएम मोदी का महत्वपूर्ण अभियान तथा वादा था। जिसने उन्हें लोकसभा चुनाव जीतने में मदद की। भारत में गंभीर भ्रष्टाचार के दो प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय सरकारी प्रसारकों द्वारा इस तरह की तीखी रिपोर्ट, एक राष्ट्र के रूप में और विशेष रूप से प्रधानमंत्री मोदी की भारत की प्रतिष्ठा को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाती है। मुझे उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी इस मामले में सच्चाई का पता लगाने के लिए गहन जांच करेंगे।'

एसवीटी की रिपोर्ट में नितिन गडकरी जो मौजूदा समय सड़क, परिवहन और राजमार्ग मंत्री हैं, वह उन लाभार्थियों में से एक हैं, जिन्हें रिश्वत मिली थी। एसवीटी और जेडडीएफ की रिपोर्ट के अनुसार, मंत्री को 2016 में अपनी बेटी की शादी के लिए एक संशोधित लक्जरी स्कैनिया बस मिली।

स्कैनिया की आंतरिक जांच रिपोर्ट के अनुसार, 2013 से 2016 की अवधि के दौरान स्कैनिया के भारतीय कर्मचारियों और स्कैनिया द्वारा नियुक्त स्वतंत्र सलाहकारों ने भारतीय अधिकारियों और मंत्रियों को रिश्वत दी।

स्कैनिया के वर्तमान सीईओ हेनरिक हेनरिकसन ने स्कैनिया इंडिया के कर्मचारियों और ठेकेदारों द्वारा "कदाचार" को स्वीकार किया है। उनके अनुसार, "भारत में वरिष्ठ स्कैनिया कर्मचारियों द्वारा प्रणाली को बायपास किया गया था।"


स्कैनिया भारतीय बाजार में 2015-16 के दौरान वोल्वो के साथ प्रतिस्पर्धा करने की कोशिश कर रहा था। महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (MSRTC) ने अक्टूबर 2015 में 35 स्कैनिया बसें खरीदी। कर्नाटक, KSRTC ने 50 बसों की खरीद की, जबकि बैंगलोर नगर निगम ने स्कैनिया के साथ 500 एसी बसों का ऑर्डर दिया था।

स्कैनिया की आंतरिक रिपोर्ट बताती है कि "बिना रिश्वत के एक भी बस नहीं बेची गई।" यह भारतीय अधिकारियों और एक मंत्री पर बहुत गंभीर आरोप है। भारत में दुराचार की इस घटना को स्कैनिया ने बहुत गंभीरता से लिया था। इसने बैंगलोर और कोलार के पास नरसपुरा में अपना प्लांट बंद कर दिया है।

इससे पहले, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के कार्यालय ने आरोपों को अंतर्राष्ट्रीय मीडिया रिपोर्टों के "दुर्भावनापूर्ण, मनगढ़ंत, और निराधार" के रूप में कहा था कि स्वीडिश ट्रक और बस निर्माता स्कैनिया ने 2016 में अपनी बेटी की शादी में उपयोग के लिए गडकरी को एक लक्जरी बस वितरित की थी।

इस मामले में गिरीश मालवीय लिखते हैं कि स्कैनिया बस घोटाला जो कि एक बहुत बड़ा घोटाला है वह मीडिया से गायब है, कोई फॉलोअप स्टोरी नहीं है, कोई खोजबीन नहीं है कि आखिरकार मामला है क्या? दरअसल जिस ढंग से यह मामला स्वीडिश मीडिया में उठाया गया उसने एक तरह से इस बड़े मुद्दे को हल्का कर दिया।

जिस दिन यह मामला सामने आया था उस दिन सोशल मीडिया की चर्चित हस्ती दिलीप मंडल ने एक ट्वीट किया कि सेक्रेटरी ऑफ रोड ट्रांसपोर्ट पद पर रह चुके आईएएस ऑफिसर विजय छिब्बर ने रिटायरमेंट के बाद 2017 में स्कैनिया कम्पनी की भारतीय इकाई में इंडिपेंडेंट डायरेक्टर के पद पर कैसे जा बैठे ?

क्या यह कांफ्लिक्ट ऑफ इंट्रेस्ट का सीधा सीधा मामला नही बनता? किसी मीडिया समूह ने इस पॉइंट को लेकर कोई खोजबीन नही की, ओर पाठकों के सामने यह जानकारी आने ही नही दी।

दरअसल अंतराज्यीय परिवहन लग्जरी बस सेगमेंट में दो ही ऑप्शन है एक है वॉल्वो ओर दूसरी थी स्कैनिया। लेकिन पंद्रह साल से सफलतापूर्वक चल रही वोल्वो बस को नकार कर 2013 से 2017 के बीच सात राज्यो के परिवहन निगम पर दबाव डालकर स्वीडिश कंपनी स्कैनिया से स्कैनिया बस की खरीद को सुनिश्चित करवाया गया और रिश्वत/कमीशन के बतौर सैकड़ो करोड़ रुपये वसूले गए।

कल पत्रिका की खबर है कि राजस्थान रोडवेज के लिए स्कैनिया की जिन 27 लक्जरी बसों की खरीद की गई थी उनका रख-रखाव सोने से ज्यादा उसकी गढ़ाई महंगी की तरह भारी साबित हो रहा है। बसों की खरीद 30 करोड़ रुपए में की गई थी जबकि उनके मेंटीनेंस पर अब तक 33 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं

यह 27 स्कैनिया बसें भाजपा सरकार के कार्यकाल में 2015 से 2017 के बीच खरीदी गई थी । 5 साल तक इन बसों के मेंटीनेंस का ठेका भी स्कैनिया को ही दिया गया। ओर राजस्थान रोडवेज 1.52 रुपए प्रति किमी के हिसाब से आज तक यह राशि स्कैनिया कंपनी को दे रहा है .........

ऐसे ही महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (MSRTC) ने अक्टूबर 2015 में 35 स्कैनिया बसें खरीदीं। ओर कर्नाटक के KSRTC ने 50 बसें खरीदीं कल यह तथ्य महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे पृथ्वीराज चव्हाण ने एक प्रेसकांफ्रेन्स बताया उन्होंने इस सौदे में दी गयी रिश्वत के आरोप में जांच की मांग की है।

यह तो सिर्फ तीन राज्यों की बस खरीद के आंकड़े है। स्कैनिया के ऑफिशियल ने तो स्वंय माना है कि कुल सात राज्यों में रिश्वत देकर बसे बेची गयी है।

अगर सही ढंग से खोजबीन की जाए तो इस मामले में 'न खाऊँगा न खाने दूँगा' कहने वाले वाले व्यक्ति के नीचे आपको भ्रष्टाचार की गंगोत्री बहती नजर आ जाएगी।

सवाल यही है कि इनकी पोलपट्टी खोलेगा कौन ? बिल्ली के गले मे घण्टी बाँधेगा कौन ?

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