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शिक्षा

कैंपस हैं या धर्म के अखाड़े

Janjwar Team
5 Jun 2017 6:36 AM IST
कैंपस हैं या धर्म के अखाड़े
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विश्वविद्यालयों में जाति और धर्म को और मजबूत करने से किसका फायदा हो रहा है। हैदराबाद अकेला नहीं जहां एक छात्र की आत्महत्या के बाद विवाद चरम पर है, बल्कि डीयू, जेएनयू, बीएचयू और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में भी ऐसे विवाद लगातार सामने आए हैं।

अजय प्रकाश

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने विश्वविद्यालयों के बारे में कहा था, ‘अगर विश्वविद्यालय ठीक रहेंगे तो देश भी ठीक रहेगा।’ सवाल है कि क्या उच्च शिक्षा के हमारे गढ़ों में देश को ठीक बनाए रखने का पाठ पढ़ाया जा रहा है। या फिर राजनीतिक वर्चस्व के जरिए हमारी पीढि़यां धार्मिक और जातिवादी हस्तक्षेप के चक्रव्यूह में फंसती जा रही हैं।

उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजी और मानवाधिकारवादी एसआर दारापुरी कहते हैं, ‘कई राज्यों में सत्ता बदलते के साथ एसपी और थानेदार बदल जाते हैं, इसलिए वह जनता की जिम्मेदारी को समझते ही नहीं। मुझे कुछ वर्षों से लगने लगा है कि सरकारें विश्वविद्यालयों को थाना और वीसी को एसपी समझने लगी हैं। अगर इसे नहीं रोका गया तो हमारी देश की मेधा राजनीतिज्ञों की फुटबाल बन जाएगी।’

सवाल है कि आखिर वह कौन सी लकीर होती है जिसके बाद लगने लगता है कि एक कैंपस हिंदूवादी, मुस्लिमपंथी, वामपंथी या कांग्रेसी होने लगा है और वैचारिक वैविध्यता का इंद्रधनुष किसी एक रंग का होता जा रहा है। नैनीताल विश्वविद्यालय के पूर्व शिक्षक और पद्म श्री शेखर पाठक मानते हैं, ‘एक कैंपस में सभी विचारधाराओं के लोग होते हैं और छात्र वहां एक नया मनुष्य बनता है। लेकिन जब सीधा राजनीतिक हस्तक्षेप होने लगता है, शिक्षक से लेकर नीतियों तक में सरकार दखल देने लगती है तब वह लकीर गाढ़ी हो जाती है।’

गुजरात विश्वविद्यालय - आतंक का आरोपी मुख्य अतिथि
18 जनवरी को हेमचंद्रआचार्य नाॅर्थ गुजरात यूनिवर्सिटी ने अपने कनवोकेशन में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ ‘आरएसएस’ के वरिश्ठ पदाधिकारी और 2007 अजमेर धमाकों के मुख्य आरोपी इंद्रेश कुमार को मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया। गुजरात के राज्यपाल ओपी कोहली की उपस्थिति में विश्वविद्यालय ने इंद्रेश के हाथों मेधावी छात्रों को स्वर्ण पदक दिलवाए।

नहीं रही कभी गंगा जमुनी-संस्कृति - लखनऊ विश्वविद्यालय
लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सुधीर पंवार हाल में हुई मेरठ के नए वीसी एनके तनेजा के बारे में बताते हैं कि उनके चयन की प्राथमिकता यह थी कि वह संघ समर्थक हैं। इसी तरह लखनऊ विश्वविद्यालय में ‘भारतीय इतिहास शोध परिषद’ की ओर से एक कार्यक्रम हुआ। कार्यक्रम में प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक भी उपस्थित थे। उनकी उपस्थिति में इतिहास के पूर्व प्रोफेसर एसएन मिश्र ने कहा कि भारत में कभी गंगा-जमुनी संस्कृति नहीं रही। गंगा हिंदुओं और यमुना मुसलमानों की नदी रही है। भारतीय इतिहास शोध परिशद इतिहास मामलों में संघ की सर्वोच्च संस्था है। पंवार के अनुसार, ‘एकध्रुवीय संस्कृति को हावी करने में जुटा संघ सरकार बदलने के बाद से शिक्षा को मुख्य हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने की भरपूर कोशिश में जुटा है। उनको पता है कि किसी चुनाव से भी ज्यादा असर शिक्षा परिसरों का होगा।’

संघी होना ही सबसे बड़ी योग्यता - बीएचयू
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पिछले सत्र की शुरुआत में ही संघ के सहकार्यवाहक गोपाल जी को अंबेडकर पर बोलने के लिए बुलाया गया। यहां एक दूसरे कार्यक्रम में संघ के इंद्रेष कुमार का भी लेक्चर हुआ। बीएचयू में इतिहास की प्रोफेसर वृंदा परांजपे कहती हैं, ‘गोपाली जी के लेक्चर के बाद कैंपस के अंदर आरएसएस समर्थक संगठनों, शिक्षकों और छात्रों की जिस तरह की गतिविधियां बढ़ीं, उससे वैचारिक असहिश्णुता का माहौल बड़ा स्पश्ट दिख जाता है।’ इतिहास विभाग में प्रोफेसरों के होने के बावजूद विश्वविद्यालय नियमों को ताक पर रख तीसरी बार अरूणा सिन्हा को सिर्फ इसलिए विभागाध्यक्ष बनाया गया है कि वह संघ पदाधिकारियों की करीबी हैं। इसी कैंपस के आइआइटी प्रोफेसर आरके मंडल बताते हैं, ‘मोदी सरकार से पहले संघ की केवल एक षाखा कैंपस में लगती थी पर अब चार से पांच लगने लगीं हैं। सवाल है कि क्या इन शाखाओं के जरिए मोदी ‘मेक इन इंडिया’ करना चाहते हैं।

हाल ही में मैग्ससे पुरस्कार विजेता संदीप पांडेय की बीएचयू आइआइटी से बर्खास्तगी का मुद्दा विवादों में रहा था। संदीप को भी विश्वविद्यालय ने नक्सल समर्थक कहकर निकाल दिया। इस बारे में संदीप कहते हैं, ‘संघी हमेशा से आरक्षण का इस आधार पर विरोध करते रहे हैं कि इससे मेधा खत्म होगी। मगर इन दिनों वे काबिलियत को जेब में रख विचारधारा के आधार पर कैंपसों को पाटा जा रहा है।’

क्यों रहे कांग्रेस काल का विश्वविद्यालय - जयपुर
जयपुर में हरिदेव जोषी पत्रकारिता विश्वविद्यालय को बंद किए जाने की घोषणा राज्य सरकार ने कर दी है। सरकार का कहना है कि यह कांग्रेस के समय में खोला गया था और अब इसकी कोई जरूरत नहीं है। हरिदेव पत्रकारिता विश्वविद्यालयसे जुड़े प्रोफेसर नारायण बारेठ के मुताबिक, ‘किसी एक धर्म का नहीं बल्कि समाज में सभी धर्मों का असर बढ़ा है और दूसरे विचारों को बर्दाष्त नहीं किए जाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, डिस्कोर्स पर भरोसा कम हो रहा है।’

दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार और संघ के करीबी माने जाने वाले रामबहादुर राय नई सरकार बनने के बाद कैंपसों में बढ़ते धार्मिक असर को पूर्वाग्रही मानते हैं। वे कहते हैं, हमारे समाज में धर्म की मान्यता है और शिक्षा धर्म से विमुख नहीं हो सकती। विरोध करने वालों को महात्मा गांधी, डाॅक्टर राजेंद्र प्रसाद और शिक्षाशास़्त्री राधाकृष्णन को पढ़ना चाहिए। बड़ी बात यह है कि कैंपसों में संघ या हिंदू धर्म के बढ़ते असर के सवाल को धार्मिक नहीं, राजनीतिक लोग उठा रहे हैं। विरोध कोई नई बात नहीं है। 1951 में संघ विचारक गुरु गोलवलकर जब इलाहा बाद विश्वविद्यालय में बोलने गए थे तब भी समाजवादियों, कम्यूनिस्टों और कांग्रेसियों ने तगड़ा विरोध किया था।

जो विरोधी है वह नक्सली है - इलाहाबाद विश्वविद्यालय
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एबीवीपी ने गोरखपुर के भाजपा सांसद और हिंदू चरमपंथी नेता आदित्यनाथ को 20 नवंबर को बुलाए जाने का कार्यक्रम रखा। परंतु विश्वविद्यालय की छात्र संघ अध्यक्ष रिचा ने यह कहते हुए विरोध किया कि वह एक सांप्रदायिक और विवादित नेता को कैंपस में नहीं आने देंगी। आदित्यनाथ को छात्र संघ भवन का उद्घाटन करना था। 21 जनवरी को इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ द्वारा आमंत्रित वरष्ठि पत्रकार और संपादक सिद्धार्थ वर्द्धराजन का लेक्चर एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने कैंपस में यह कहकर नहीं होने दिया कि वह देशद्रोही और नक्सल समर्थक हैं।

मंदिर पर बहस के लिए डीयू
10 जनवरी को दिल्ली विश्वविद्यालय में ‘श्री राम जन्मभूमि: उभरता स्वरूप’ को लेकर कार्यक्रम हुआ। इस कार्यक्रम का विरोध करने वाले संगठनों में शामिल क्रांतिकारी युवा संगठन हरीश गौतम कहते हैं, ‘विरोध भाजपा से नहीं उनके मुद्दों और नेताओं से हैं। सुब्रमन्यम स्वामी, योगी आदित्यनाथ जैसे नेताओं को एक कैंपस कैसे सह सकता है जो दंगा-फसाद के अलावा कुछ जानते ही नहीं। इनका छात्रों के सरोकार और समस्याओं से क्या लेना-देना।’

सवाल वीसी के चयन का - जेएनयू
जेएनयू में 30 दिसंबर को विश्वविद्यालय की साझेदारी में आयोजित वेदांत अंतरराश्ट्रीय कांग्रेस में योगगुरु रामदेव को मुख्य वक्ता बनना था, लेकिन वामपंथी छात्रों के विरोध के कारण रामदेव ने जाने की मनाही कर दी। दिल्ली आइआइटी प्रोफेसर एम जगदीष कुमार का 21 जनवरी को जेएनयू के नए वीसी बनाए जाने की फैसला हुआ। माना जा रहा है कि उनके चयन में संघ से नजदीकी बड़ी वजह है। पिछले दिनों वे संघ की साझेदारी में आयोजित एक कार्यक्रम में षामिल हुए थे।

राम के जन्मदिन की खोज - आइआइएमसी
शिक्षक और मीडिया विषेशज्ञ दिलीप मंडल शिक्षा परिसरों के इस बदलाव को बढ़ते धार्मिक असर के रूप में नहीं लेते। उनकी राय में, ‘जेएनयू कैंपस इंडियन इंस्टिट्यूट आॅफ मास कम्यूनिकेषन में 2011 में राम की जन्मतिथि को लेकर सेमीनार हो चुका है, इसलिए सवाल बढ़ते धार्मिक असर का नहीं है। बल्कि विरोध बढ़ गया है, क्योंकि कैंपसों का कंपोजिशन बदल गया है। उच्च शिक्षा संस्थानों में 2008 से आरक्षण लागू होने के बाद छात्रों की आबादी बदल गई, लेकिन शिक्षकों में वह परिवर्तन अभी नहीं आ पाया है। कैंपसों में बढ़ती टकराहट का यह सबसे बड़ा कारण है।’

साथ नहीं तो बर्खास्त - हैदराबाद विश्वविद्यालय
हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या का कारण भी एक कैंपस के धर्मांध होते चले जाना ही है। एबीवीपी कार्यकर्ताओं का अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिशन ‘एएसए’ से जुड़े वेमुला और उनके साथियों से तब विवाद षुरू हुआ जब 1993 मंुबई हमलों के आरोपी याकूब मेनन को दी गयी फांसी के खिलाफ एएसए के प्रदर्षन कर रहा था। एएसए प्रदर्षन से पहले मुजफ्फरनगर दंगों पर बनी एक डाक्यूमेंट्री दिखाना चाहा, लेकिन एबीवीपी ने प्रदर्षन नहीं होने दिया। अलबत्ता एबीवीपी की षिकायत पर केंद्रीय राज्य मंत्री बंडारू दत्तात्रये ने केंद्रीय संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी को पत्र लिखा कि पिछले कुछ महीनों से कैंपस में राश्ट्रविरोधी, चरमपंथी, धार्मिक भावनएं भड़काने वाली गतिविधियां बढ़ गई हैं।

रोहित ने सोशल मीडिया पोस्टों में अवैज्ञानिक मान्यताओं का मजाक उड़ाया है। वह ड्रोन को लेकर हिंदू देवता हनुमान पर कटाक्ष करते हैं। हैदराबाद विश्वविद्यालय के वीसी द्वारा बस की पूजा करने पर लिखते हैं, ‘ऐसा लग रहा है कि रास्ते में बस के खराब होने पर गणपति का ष्लोक पढ़ने से बस अपने आप चल पड़ेगी।’

पूर्व आइपीएस अधिकारी और लेखक के वीएन राय कहते हैं, ‘अवैज्ञानिक मान्यताओं को लेकर कोई भी सभ्य और आधुनिक समाज मजाक उड़ा सकता है। पर इसका परिणाम किसी की आत्महत्या के रूप में आएगा, इसे कतई बर्दाष्त नहीं किया जा सकता। बर्दाष्त नहीं कर पाने की इसी स्थिति को देखते हुए बीजेपी के पूर्व केंद्रीय मंत्री संजय पासवान स्पश्ट करते हैं, ‘रोहित के साथ जो हुआ है, उसको गंभीरता से लेना होगा अन्यथा हमें व्यापक विरोध और विद्रोह के लिए तैयार रहना चाहिए।’

हटा रहे हैं उर्दू के शब्द
प्रसिद्ध शिक्षाविद अनिल सदगोपाल शिक्षाविद दीनानाथ बत्रा को पाठ्य पुस्तकों में बदलाव का जिम्मा दिए जाने को मेधा की राश्ट्रीय क्षति मानते हैं। वे बताते हैं, ‘प्राथमिक शिक्षा वह नींव है जहां सर्वे भवन्तु सुखीनः सर्वे संतु निरामया का संस्कार दिया जाता है। पर बत्रा क्या कर रहे हैं? उन्होंने केंद्रीय शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी को एनसीआरटी की पाठ्य पुस्तकों से छांटकर उर्दू के शब्द हटाने की एक सूची भेजी है। यह समाज और भाशा दोनों का दरिद्र करना है।’ बत्रा इससे पहले गुजरात में पाठ्य पुस्तकों में बदलाव का जिम्मा निभा चुके हैं और अब हरियाणा सरकार में वे औपचारिक शिक्षा सलाहकार बनाए जा चुके हैं।

संघ का असर बढ़ने की बातें तथ्यहीन - उपेंद्र कुशवाहा, केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री
हैदराबाद विश्वविद्यालय का मसला दूसरा है, वहां कार्रवाई हो रही है। इस तरह के मामले राज्य सरकारें देखती हैं। जहां तक कैंपसों में हिंदूवादी और संघी असर बढ़ने जैसी बातें हैं, मैं इसको तथ्यहीन मानता हूं। मुझे नहीं लगता कि इलाहाबाद, बीएचू या डीयू-जेएनयू में विवादों के एक कारण हैं। अलग-अलग जगहों के मुद्दे अलग-अलग हैं हैं। सभी मुद्दों को एक में समेट लेना ठीक नहीं है।

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