Begin typing your search above and press return to search.
जनज्वार विशेष

गाजियाबाद में जिस दिहाड़ी मजदूर को बच्चा चोर बोल के मार डाला, उसका एक गुनाह बिहारी होना भी था

Prema Negi
17 Sep 2019 9:33 AM GMT
गाजियाबाद में जिस दिहाड़ी मजदूर को बच्चा चोर बोल के मार डाला, उसका एक गुनाह बिहारी होना भी था
x

दिहाड़ी मजदूर सत्येंद्र पुलिस से बहुत डरता था। किसी ने कह दिया कि वहां पुलिस आ गयी है या तुम्हें पकड़ेगी तो वह वहां से भाग लेता था। उस दिन भी नाई के दुकान पर लोगों ने पुलिस-पुलिस का मजाक किया और वह बचने के लिए भागा, सोचा मंदिर में घुस जाऊं, लेकिन गलती से किसी के घर की ओर बढ़ गया और लोगों ने मार डाला...

गाजियाबाद के खोड़ा से अजय प्रकाश की रिपोर्ट

जनज्वार, गाजियाबाद। 'य​ह खोड़ा कॉलोनी के गली नंबर 4 की बात है। शंकर विहार में पड़ती है गली। यहां से मुश्किल से दो सौ मीटर नहीं होगी। 10 सितंबर की बात है, दिन के करीब 10 बजे होंगे। मेरा किराएदार सत्येंद्र नाई की दुकान पर दाढ़ी बनवाने गया था। डरता था से पुलिस से, जैसे कई बार गांवों में कुछ लोग होते हैं जो पुलिस का नाम सुनते ही भाग लेते हैं, कुछ वैसा ही था। पता नहीं क्यों डरता था, कह नहीं सकती पर बहुत डरता था। 4 नंबर गली में अभी दाढ़ी बनवाकर नाई को पैसा दे ही रहा था कि पास खड़े लोगों ने तफरी में पुलिस आ गयी-पुलिस आ गयी बोलना शुरू कर दिया। संयोग से ​बगल के एक घर में पुलिस आई भी थी, इसलिए जिप्सी देखते ही वह भागने लगा। और वही भागना उसका काल बना।' इतना बोलते—बोलते मकान मालकिन के आंखें भर आईं और वह बगल में खड़ी एक लड़की ओर इशारा कर बालीं हैं, 'बस यही है अभी सत्येंद्र के रिश्तेदारों में, इसी से कुछ और पूछ लो जो पूछना हो।'

इसी कॉलोनी में रहता था बिहार का सत्येंद्र, जिसकी बच्चा चोर कहकर कर दी गई हत्या

गाजियाबाद जिले में पड़ने वाली खोड़ा कॉलोनी दिल्ली के मयूर विहार और नोएडा से लगी हुई है। 10 लाख की आबादी वाली इस बस्ती के बारे में कहा जाता है कि यह एशिया की सबसे बड़ी मजदूरों-गरीबों की कॉलोनी है। पर सरकार अब तक पीने का पानी नहीं उतलब्ध करा पाई है, जबकि आबादी इतनी बड़ी कि ये किसी को सांसद बना दें, विधायक की बात कौन करे। मोदी सरकार के विकास का प्रतीक बना 'नेशनल हाइवे 24 'एनएच 24' से शंकर विहार करीब दो किलोमीटर अंदर पड़ता है।

यह भी पढ़ें : इलाहाबाद में एक हफ्ते के भीतर बच्चा चोरी के नाम पर मॉब लिंचिंग की 9 वारदातें, पुलिस जांच में सब अफवाह

ई गलियों से होते हुए सत्येंद्र की मकान गली नंबर 7 में आती है, जिसमें वह एक कमरे में किराए पर रहता था। मकान जमीन से 8 फीट नीचे है। मकान की हालत और कमरे पड़े सामान को देख पता चल जाता है कि सत्येंद्र की आर्थिक स्थिति कैसी रही होगी, जिसको कि सिर्फ घर से 2 सौ मीटर की दूरी पर लोगों ने इसलिए मार डाला कि उन्हें लगा कि वह बच्चा चोर है।

बच्चा चोर कहकर मौत के घाट उतार दिये गये सत्येंद्र की मौत की गवाही देते खोड़ावासी

त्येंद्र की मकान मालकिन ने जिस लड़की से बात करने को कहा, वह बताती है, 'मौसा यहीं पड़े-पड़े छटपटा रहे थे, लोटपोट हो रहे थे और मुंह से खून बह रहा था। लोग सब बच्चा चोर बोल के इतना मारे थे कि उनकी छाती की हड्डियां चूर-चूर हो गयी थीं। पैरों पर खड़े नहीं हो पा रहे थे। पछाड़ खाके गिर रही थीं। मम्मी रहतीं तो आपको सब बात बताती, लेकिन आप देर से आए हैं, वह सब्जी बेचने निकल गयी हैं। आप मौसा-मौसी का कमरा देख लीजिए आपको सब मालूम हो जाएगा कितने बड़े चोर थे मौसा।'

यह भी पढ़ें : आगरा मॉब लिंचिंग में 200 लोगों पर केस दर्ज और 9 की गिरफ्तारी, बच्चा चोरी के शक में पीटा था युवक और विक्षिप्त महिला को

ड़क से 8 फीट नीचे के कमरे का ताला खोलते हुए सत्येंद्र की पत्नी सीमा के बारे में उनके बहन की बेटी बताती है, 'मौसा का तेरही करने मौसी 'मौत का कर्मकांड' करने 14 सिंतबर को ही बिहार के नालंदा जिले चली गयी हैं। मौसा का अपना घर नालंदा जिले के किसी गांव में है। शादी को 5-6 साल हुए थे, कोई बच्चा नहीं था। वही दोनों लोग रहते थे। इसी कमरे में बहुत समय से रहते थे। किसी से पूछ लीजिए कैसे आदमी थे।' पुलिस ने सत्येंद्र की मौत 11 सिंतबर के बाद उनकी पत्नी सीमा की शिकायत पर 4 नंबर गली में रहने वाले गोलू समेत 4 लोगों पर गैरइरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज किया है। पर इस मामले में पुलिस ने कोई गिरफ्तारी नहीं की है। पुलिस के वरिष्ठ उप निरीक्षक हिंद वीर सिंह कहते हैं कि मामले की जांच की जा रही है।

त्येंद्र के एक पड़ोसी बाबूराम कहते हैं, 'सत्येद्र बच गया होता, अगर उसे घर में बंद करके नहीं मारा होता। सत्येंद्र पुलिस को देख मंदिर में भागना चाहा, लेकिन गलती से वह 4 नंबर गली में गोलू नाम के आदमी के घर में बढ़ गया। गोलू का घर मंदिर के बगल में ही है। वह अभी गेट पर ही था कि उससे डपटकर किसी ने पूछ लिया कौन हो, क्या काम है? वह ठीक से जवाब नहीं दे पाया और लोग उसको मारने लगे।' यह बात सही लगती है क्योंकि अब तक आई रिपोर्टों के मुताबिक जो लोग भी बच्चा चोरी के अफवाह में मारे गए हैं उनमें ज्यादातर ऐसे लोग हैं जो सही से अपना जवाब नहीं दे सके, घरों से परित्यक्त, शरीर से बहुत कमजोर या फिर दिमागी रूप से असंतुलित हैं।

बच्चा चोर कहकर मौत के घाट उतार दिये गये सत्येंद्र की गरीबी की कहानी बयां करता उसका कमरा

त्येंद्र की मकान मालकिन कहती हैं, 'अगर उसे घर में बंद गोलू के घर वालों ने नहीं मारा होता तो वह पक्का नहीं मरता। कोई देख लेता और हमलोगों को खबर कर देता, फिर छुड़ा लाते। वह तो हमलोग तब जाने जब गोलू के घर की दो औरतें जो सास—बहू थीं, सत्येंद्र को घसीटते हुए यहां लाकर छोड़ गयीं। जब सत्येंद्र को अधमरा कर यहां दरवाजे पर सास—बहू छोड़ गयीं तभी मैंने कहा कि दो-चार थप्पड़ लगा देते, ऐसे भला कोई मारता है।'

यह भी पढ़ें : पटना में बच्चा चोरी की अफवाह पर विक्षिप्त की मॉब लिंचिंग, छुड़ाने आये पुलिसकर्मियों को भी पीटा

गोलू और अन्य द्वारा उसे बुरी तरह पीटा गया जिसके बाद सत्येंद्र को गंभीर हालत में दिल्ली के लालबहादुर शास्त्री अस्पताल में भर्ती कराया, जहां पर उनकी गंभीर हालत को देखते हुए जीटीबी अस्पताल में रेफर कर दिया गया। डॉक्टरों ने 11 सितंबर को सत्येंद्र को मृत घोषित कर दिया।

मौके पर 7 नंबर गली के सैकड़ों लोग जुटे हैं। सबके पास कहने को बहुत कुछ है। सब चाहते हैं सत्येंद्र को न्याय मिले और उसके हत्यारों को सजा। 7 नंबर गली में ही सत्येंद्र के पड़ोस में रहने वाले एक परचून के दुकानदार कहते हैं, 'वह बहुत सीधा—सच्चा इंसान था। ट्रकों-गाड़ियों पर दो-तौन सौ रुपए की दिहाड़ी में मजदूरी करता था। शाम को कई बार दारू पीता था। पर उस दिन सुबह का ही समय था। उसने दारू नहीं पी थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी यह बात सामने आई है। यहां का लोकल होता या थोड़ा सक्षम होता तो किसी हिम्मत होती कि वह घर में बंद करके मार दे और पुलिस किसी को गिरफ्तार न करे। आधा छूट अपराधियों को इसलिए मिल जाती है कि हम लोग बिहारी हैं। सत्येंद्र को भी बिहारी बोल के मारा कि मार साले बिहारी को। बिहारी बोलना भी एक तरह की गाली और दबा के रखने का तरीका है।'

जिस कमरे में रहता था सत्येंद्र अपने परिवार के साथ वह जमीन से 8 फीट नीचे है

जदूर के बीच पिछले 40 वर्षों से काम कर रहे मजदूर नेता विमल त्रिवेदी के मुताबिक, 'ऐसी घटनाएं बताती हैं कि संसद और संविधान आजादी के 70 वर्षों बाद भी आम आदमी से कितना दूर है। दिल्ली-एनसीआर के किसी भी कामगारों-मजदूरों बस्ती में चल जाइए और वहां के लोगों के अधिकारों की स्थिति पूछ लीजिए, आपको लगेगा लाखों लोग बड़े व पैसे वालों के गुलामों की तरह पीढ़ी दर पीढ़ी रहते चले आ रहे हैं।'

दिल्ली-एनसीआर में बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, नेपाल के तराई, झारखंड और बिहार से सटे बंगाल के इलाकों से आने वाले गरीबों-मजदूरों को बिहारी कहने का चलन है। इसे लेकर कई बार संसद से सड़क तक विवाद हुए हैं। यहां भी सत्येंद्र के पड़ोसियों का कहना है कि बिहारी बोलकर बेइज्जत करना, दबा के रखना, सही बोलने से रोकना आम बात है। करीब 40 वर्ष की एक महिला कहती हैं, 'हमलोग काम पर जाती हैं वहां औरतें भी हमें बिहारी कहती हैं। मैं तो बिहारी का एक ही मतलब समझती हूं, दबाने का लाइसेंस।'

यह भी पढ़ें : डिजिटल ​इंडिया की सबसे हिंसक खोज ‘वाट्सअप अफवाह’

त्येंद्र की पत्नी की बहन की बेटी को छोड़ कोई दूसरा परिजन नहीं मिलता है, लेकिन मौके पर जमा हुए लोग एक स्वर में पुलिसिया कार्रवाई पर सवाल उठाते हैं। गली में गेरुआ गमछा बांधे सफेद दाढ़ी वाले बुजुर्ग राकेश सिंह कहते हैं, 'पुलिस ने गैरइरादतन हत्या का मामला दर्ज किया है। किसी को आप घर में कैद करके मारेंगे, जान ले लेंगे, पुलिस को नहीं बुलाएंगे और पुलिस इतनी खैरख्वाह की मुकदमा भी गैरइरादतन का दर्ज करती है।'

पुलिस ने सत्येंद्र की हुई 'मॉब लिंचिंग' के मामले में अभी तक सिर्फ मुकदमा दर्ज किया है, वह भी इसलिए कि लखनऊ में बैठे अधि​कारियों का आदेश है कि अफवाहों के नाम पर हो रही हत्याओं के मामलों में मुकदमा जरूर दर्ज हो। हालांकि प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मुआवजे की भी बात की है। लेकिन सत्येंद्र की मकान मालकिन कहती हैं, 'अब तक न कोई पुलिस आई है मामले की जांच करने और न ही प्रशासन की ओर से कोई अधिकारी ही आया है।'

सत्येंद्र के कमरे के बाहर इकट्ठा लोग

पिछले 30 वर्षों से साबुन की फैक्ट्री में काम करने वाले कामगार और कवि कमलेश कमल कहते हैं, 'यह एक सत्येंद्र की कहानी नहीं है, बल्कि हजारों प्रवासी कामगार इस बस्ती में हैं जो यहां के स्थानीय दबंगों और पुलिस की ज्यादती के शिकार हैं, जो कभी सत्येंद्र के नाम से चर्चा में आते हैं तो कभी किसी और के नाम से। हम मजदूरों की नियति बन गयी है गलत को सहना और सही पर चुप रहना।'

यह भी पढ़ें : वाट्सअप यूनिवर्सिटी पर फैली अफवाह के कारण भीड़ ने मार डाले दो युवा कलाकार

वो आगे कहते हैं, 'जाति, जनेऊ और धर्म के नाम पर सरकारों ने मजदूरों-गरीबों को इस कदर बांट दिया है वे अपनी तकलीफ को नसीब मान लेते हैं। सत्येंद्र के बाद उसकी पत्नी का क्या होगा, उसको कुछ मुआवजा मिले, ​जीवन यापन का कोई साधन दे सरकार, सत्येंद्र को कैसे न्याय मिले इसकी चिंता आखिर किसको है? और सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या इस मामले में सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है?'

Prema Negi

Prema Negi

    Next Story

    विविध