झारखंड में डॉक्टर-दाई का इंतजार करते-करते 2 घंटे तक नाल के सहारे मां से जुड़े रहे जुड़वा, एक की मौत तो दूसरे की हालत गंभीर
गर्भवती को प्रसव पीड़ा होने पर स्वास्थ्य केंद्र था बंद तो घरवालों ने सहिया से किया संपर्क, पर उसने कर दिया आने से साफ इंकार, जुड़वा जन्मने के बाद परिजनों ने सहिया से दोबारा किया संपर्क, ताकि डॉक्टर से बात करके दोनों बच्चों को मां के शरीर से किया जा सके अलग, मगर सहिया ने उन्हें डॉक्टर का नंबर तक उपलब्ध नहीं कराया...
जनज्वार। जहां एक तरफ झारखंड डायन—बिसही, लिंचिंग समेत तमाम दूसरे अपराधों में अव्वल है, वहीं राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था बहुत बदहाल है। शायद बढ़ते अंधविश्वास का भी एक कारण लोगों को उचित स्वास्थ्य का न मिल पाना भी है। जब लोगों को इलाज नहीं मिल पाता तो वो सोखा—ओझा, बिसही—डायन के चक्कर में पड़ते हैं। यहां फिर एक ऐसी घटना सामने आयी है जिसने राज्य में स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली को सामने लाकर रख दिया है।
प्रभात खबर में छपी एक खबर के मुताबिक सारंडा के छोटानागरा स्थित मनोहरपुर प्रखंड में बदहाल स्वास्थ्य सेवा ने एक जिंदगी लील ली। सारंडा के छोटानागरा स्थित मनोहरपुर प्रखंड का स्वास्थ्य केंद्र बंद था, जिस कारण उचित इलाज न मिलने के कारण जुड़वां जन्मे बच्चों में से एक की मौत हो गयी।
जानकारी के मुताबिक मनोहरपुर प्रखंड के ग्वाला बस्ती के नारद गोप की पत्नी रश्मि गोप को शुक्रवार 24 जनवरी की रात प्रसव पीड़ा हुई तो परिजनों ने सहिया को बुलाया, मगर उसने देर रात का हवाला देते हुए पीड़िता के पास आने से मना कर दिया। ऐसे में जब परिजन गर्भवती को स्वास्थ्य केंद्र ले गये तो वह भी बंद था। इसी बीच प्रसव पीड़ा से तड़पती रश्मि ने जुड़वां बच्चों को जन्म दे दिया। इसके बाद परिजनों ने एक बार फिर सहिया संपर्क किया, ताकि मनोहरपुर के चिकित्सक से बात करके दोनों बच्चों को मां के शरीर से अलग किया जा सके, मगर सहिया ने उन्हें डॉक्टर का नंबर तक उपलब्ध नहीं कराया।
2 घंटे तक जब जच्चा—बच्चा नाल से जुड़े रहे तो गांव की ही एक महिला ने उन्हें मां से अलग किया। इसी दौरान समय पर नाल न कटने और उचित डॉक्टरी देखभाल के अलावा ठंड लगने के कारण एक बच्चे की मौत हो गयी, जबकि दूसरे की स्थिति भी नाजुक बनी हुई है।
परिजनों ने शनिवार 25 जनवरी की सुबह महिला और जुड़वा में से एक जीवित बच्ची को मनोहरपुर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लाया गया, जहां नवजात बच्ची की हालत गंभीर बनी हुई है।
इस मामले में जच्चा रश्मि कहती हजै कि 18 जनवरी को उसे गर्भावस्था का सातवां माह लगा था। शुक्रवार 24 जनवरी की शाम सात बजे से उसके पेट में दर्द होने लगा। वह पहली बार गर्भवती हुई थी तो उसे कुछ अंदाजा नहीं था कि स्थिति इतनी बिगड़ सकती है। परिजनों ने भी सातवां माह होने के कारण इसे सामान्य माना। रात 12 बजे के करीब उसकी प्रसव पीड़ा काफी तेज हो गयी और उसने एक लड़की व एक लड़के को जन्म दिया।
पीड़िता के पति नारद कहते हैं, संभवत: दो घंटे तक मां के शरीर से जुड़े रहने के कारण ठंड से मेरे एक बच्चे की मौत हो गयी। जब मेरी पत्नी को प्रसव पीड़ा शुरू हुई, तो छोटानागरा का स्वास्थ्य केंद्र बंद पड़ा था। यह केंद्र शाम तक ही खुला रहता है, इमरजेंसी की स्थिति में कोई सुविधा नहीं है। यहां कोई चिकित्सक भी नहीं हैं। यहां नियुक्त नर्स भी मनोहरपुर से ड्यूटी करती हैं। रात के वक्त लोगों के पास किसी भी तरह की आपातकालीन सुविधा मौजूद नहीं है।
वहीं इस मामले में अपना बचाव करते हुए सहिया प्रतिमा दास कहती हैं, मेरी तबीयत खराब थी, इसलिए मैं रात में नहीं गयी, मगर डॉक्टर का नंबर उपलब्ध नहीं कराने की बात पर वह बगलें झांकने लगती हैं और थोड़ा सोचने के बाद कहती हैं, मैं डॉक्टर का नंबर लेने अंदर गयी थी, मगर तब तक उसके घरवाले वापस चले गये।
साथ ही सहिया प्रतिमा दास यह कहना भी नहीं भूलतीं कि छोटानागरा अस्पताल में हर माह गर्भवती महिलाओं के लिए होने वाली एएनसी जांच के दौरान रश्मि नहीं आती थी, उसने महज एक बार ही अपनी एएनसी जांच करायी थी।