Begin typing your search above and press return to search.
जनज्वार विशेष

भोपाल गैस त्रासदी में माँ-पिता, भाई को खोने वाले जब्बार भाई ने 1992 के दंगों में रातभर दिया था सड़कों और गलियों में पहरा

Nirmal kant
16 Nov 2019 2:16 AM GMT
भोपाल गैस त्रासदी में माँ-पिता, भाई को खोने वाले जब्बार भाई ने 1992 के दंगों में रातभर दिया था सड़कों और गलियों में पहरा
x

भारत में आजकल एक सामान्य समझ बनायी जा रही है कि सभी सामाजिक कार्यकर्ता या तो भ्रष्ट होते हैं, खूब धन इकठ्ठा करते हैं या फिर बढ़ाते हैं हिंसा और लोगों को भड़काते हैं सरकार के खिलाफ, मगर जब्बार भाई ने भोपाल के 1992 के साम्प्रदायिक दंगों के दौरान घर घर जाकर, रात-रात भर सड़कों-गलियों में पहरा देकर मासूम प्रेम और मोहब्बत की बिखेरी थी आभा...

जब्बार भाई को याद कर रहे हैं सचिन कुमार जैन

ब्बार भाई बात माफी के लायक तो नहीं है, पर फिर भी कहना चाहता हूँ माफ कर दीजियेगा। हमने बहुत देर कर दी। यह तो नहीं ही कहा जा सकता है कि आपने हमें वक्त नहीं दिया, खूब वक्त दिया समझने के लिए और कुछ कर पाने के लिए। हमने लापरवाही और उपेक्षा का बहुत बड़ा अपराध कर दिया। हमें पता भी था कि आप कौन हैं? आप अब्दुल जब्बार थे, वही अब्दुल जब्बार जिसने भोपाल गैस त्रासदी को देखा और उसका आक्रमण झेला था। वह आक्रमण कइयों ने झेला था। मैंने भी झेला था।

मैंने भी उस जहर की जलन को महसूस किया था अपनी आँखों में, अपने सीने में किन्तु आपने उस जलन के दर्द को इतना महसूस किया कि समाज के दर्द को दूर करने में यह भूल ही गए कि आपकी खुद की स्थिति क्या है? पिछले चार दिन हमें यह बता रहे थे कि हम क्या क्या नहीं जान पाए? आप समाज का ध्यान रख रहे थे, हम आपका ध्यान नहीं रख रहे थे। कुछ दोस्तों ने ध्यान रखा, किन्तु हमने तो नहीं!

ब्बार भाई ने भोपाल गैस त्रासदी में अपनी माँ, पिता और भाई को खो दिया था। उनकी आंखों की 50 फ़ीसदी रोशनी भी चली गयी थी। उन्हें लंग फाइब्रोसिस भी हो गया था। खुद को भीतर से बीमार करते हुए आप आन्दोलन को, जन संघर्ष को, संगठन को मज़बूत करने में जुटे रहे। एक निर्माण मजदूर ने जहरीली गैस से ऐसी लड़ाई लड़ी कि वह अब्दुल जब्बार से भोपाल के लोगों के लिए जब्बार भाई बन गया। हज़ारों लोगों की जान लेने और लाखों लोगों को बीमार करने वाली इस औद्योगिक घटना को राजनीतिक और आर्थिक अपराध भी घोषित किया जाना चाहिए, जिसमें तत्कालीन सत्ताओं और न्यायपालिका ने भयंकर उपेक्षा और अमानवीयता का खुला प्रदर्शन किया। जब्बार भाई व्यवस्था से जूझ रहे थे। वे लगातार लड़ रहे थे, पर हमारा हिस्सा उनके संघर्ष में कम से कम होता जा रहा था।

यह भी पढ़ें : आखिर जब्बार भाई कौन थे, जिनसे सोशल मीडिया पर मांगी जा रही है माफी

ब्बार भाई, आपको बताऊं कि हम सहयोग का कार्यकाल भी तय कर देते हैं। सोचते हैं, चलो आप इतना काम कर रहे हैं, तो कुछ हाथ हम भी लगा दें पर कुछ महीनों या सालों में वह हाथ हट जाता है। हम विद्वान् भी बन जाते हैं और विशेषज्ञ भी। फिर दुनिया में घूम-घूम के व्याख्यान देने लगते हैं। विज्ञान की व्याख्या भी करने लगते हैं और राजनीतिक अर्थव्यवस्था और पूंजीवाद की भी। उस व्याख्या में जब्बार भाई धीरे-धीरे ओझल होते जाते हैं और फिर पूरी तरह से गुम हो जाते हैं। किताबें लिख ली गयीं, प्रचार हो गए; लेकिन जब्बार भाई का क्या हुआ?

सा नहीं है कि आप अचानक चले गए। कम से कम मुझे तो पता है कि पिछले 5 सालों से आप भीतर से खोखले होते जा रहे थे, हम समझ ही नहीं पाए कि आप खुद अपने ही प्रति निष्ठुर और लापरवाह हैं। दो साल पहले की जांच से आपको पता चल गया था कि दिल का मर्ज़ बड़ा हो गया है, रक्त प्रवाह बाधित है, फिर भी आपने उसे छिपा लिया। मधुमेह ने नसों को ठोस बनाना शुरू कर दिया था पर आप दौड़ दौड़कर यह जताते रहे कि आप बिलकुल ठीक हैं। आंखों से एक वक्त पर दिखना लगभग बंद हो गया था, लेकिन कइयों को पता ही नहीं चला कि आप देख नहीं पा रहे हैं।

पने खूब वक्त दिया। मुझे याद है जब दो हफ्ते पहले एक अखबारनवीस दोस्त ने फोन किया था कि जब्बार भाई की तबियत खराब है और वे कमला नेहरू से भोपाल मेमोरियल अस्पताल के बीच ठेले जा रहे हैं। वे राज्य के बड़े राजनेता को यह संदेश जा चुका था कि वे बहुत बीमार हैं, किन्तु राजनेता जी व्यस्त थे। जिन स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आपने 34 साल लड़ाई लड़ी, उन स्वास्थ्य सेवाओं ने आपके खिलाफ पूरा पुख्ता षड्यंत्र रच दिया और कामयाब हो गए आपका जीवन छीन लेने में। कितना अजीब है न कि आदमी बीमारी से नहीं, इलाज़ के अभाव से ही मरता है। उपेक्षा से मरता है।

ब्बार भाई को जानते मुझे तो 18 साल हो गए हैं। इन 18 सालों में मैंने आपके बारे में इतना जान लिया था कि आप संस्था प्रबंधन में वक्त खराब नहीं करना चाहते हैं। आपके बहाने से पत्रकारों, आम लोगों, राजनेताओं और अधिकारियों के बताना चाहता हूं कि जब्बार भाई ने कोई पूंजी नहीं जुटाई। वे लोगों से दोस्तों से संगठन के लिए कुछ सहायता मांगते थे। हर 6 महीने में फोन करते कि भाई, बिल जमा नहीं होने से फोन कट गया है, बिल जमा करवा सकते हैं क्या? भाई, बिल जमा न होने से बिजली कट गयी है, बिजली का बिल जमा करवा सकते हैं क्या? भोपाल में गैर त्रासदी की बरसी होने पर पिछले 32-33 सालों से सारी नाउम्मीदी और उदासी को धकेल कर किनारे रखते और 2 और 3 दिसम्बर को त्रासदी की बरसी मनाते ताकि वह घटना लोगों के, सरकार के, विधायकों के जहन से उतर न जाए।

प बस यही कहते थे कि टेंट और माइक सिस्टम का बिल दे सकते हैं क्या? इन 18 सालों में जब्बार भाई ने यह नहीं कहा कि मेरे घर के, मेरे परिवार के हालात ऐसे हैं कि बच्चों के स्कूल की फीस भी दो-तीन महीनों से भरी नहीं गयी है। मुझे पता है कि मेरी आंखें जा रही हैं, मेरा हृदय अब शरीर को रक्त प्रवाहित नहीं कर रहा है, लेकिन यदि मैं इनके उपचार में लग जाऊंगा तो पैसा कहाँ से आएगा, संगठन का क्या होगा, निचली और सबसे ऊंची अदालत में चल रहे केसों का क्या होगा? सामाजिक काम करते हुए, उनके परिवार का भी बिखराव हुआ।

भारत में आजकल एक सामान्य समझ बनायी जा रही है कि सभी सामाजिक कार्यकर्ता या तो भ्रष्ट होते हैं, खूब धन इकठ्ठा करते हैं या फिर हिंसा को बढाते हैं और लोगों को सरकार के खिलाफ भड़काते हैं। जब्बार भाई ने भोपाल के 1992 के साम्प्रदायिक दंगों के दौरान घर घर जाकर, रात-रात भर सड़कों-गलियों में पहरा देकर क्या बताया था? जब्बार भाई का चेहरा मासूम प्रेम और मोहब्बत की आभा बिखेरता था। जो लोग उनसे मिले, उनमें से कितनों ने उन्हें एक बार भी किसी का अपमान करते हुए देखा? उनका मध्यप्रदेश सरकार से टकराव रहा क्योंकि सरकार लगातार गैस पीड़ितों के मुआवज़े, उनके स्वास्थ्य, आवास और पानी के हकों को नज़रंदाज़ कर रही थी, उन पर समझौते कर रही थी; लेकिन उन्होंने कभी हिंसा का सहारा नहीं लिया।

ब्बार भाई, आप हमारे लिए सामाजिक कार्यकर्ता की वह मिसाल बन गए, जिसे हम मीडिया, सरकार, राजनीतिक दलों के सामने रख सकते हैं और बता सकते हैं कि सामाजिक कार्यकर्ता के पास न तो राज्य जितनी शक्तियां हैं, न ही संसाधन; लेकिन वास्तव में इंसानों के दिल पर सरकार तो उन्हीं की चलती है। जरा सोचियेगा कि दशक भर से बीमारियों की पोटली लिए घूम रहे जब्बार भाई अपना इलाज़ क्यों नहीं करवा पाए? क्योंकि हम अपनी सीमित निजी दुनिया और खंड-खंड हो रही जन मुद्दों की लड़ाई से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं।

वाल यह भी कि यदि कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह आम लोगों के मुद्दों के लिए अपना जीवन लगा देता है, तो उसके खुद के जीवन, उसके परिवार की जरूरतों को पूरा करने में मदद देना किसकी जिम्मेदारी है? जब्बार भाई, आप उदाहरण हैं कि हमारी सामाजिक व्यवस्था संवेदनाहीन हो चुकी है। हमें आपके योगदान से कोई मतलब नहीं रहा। यह कैसे हुआ कि आपके जीवन और दुखों के बारे में हम सचेत नहीं हो पाए!

मारा मध्य प्रदेश संघर्ष में विश्वास ही नहीं रखता है। उसे किसी अदृश्य शक्ति में इतना विश्वास है कि कोई और आएगा, नाली भी साफ़ करेगा, पेड़ भी लगाएगा, झील भी साफ़ करेगा; और हम आराम से अपनी खाट पर पड़े रहेंगे! अब हमारा प्रदेश एक पुरुषार्थहीन प्रदेश है। जिसनें सीख लिया है श्रृद्धांजलि देने का कौशल और फिर खुद में खो जाने का!

मुझे कुछ साल पहले पता चला कि उन्हें पैरालिसिस हुआ है। हमीदिया में भर्ती हैं। अस्पताल में उनके कमरे में गया तो वे वहां नहीं थे। नर्स आई। उसे इन्सुलिन देना था। लेकिन जब्बर भाई अस्पताल के कमरे में नहीं थे। कहाँ गए? ढूंढना शुरू किया गया? तीन घंटे बाद देखा कि वे धीरे धीरे चले आ रहे हैं। पता चला कि संगठन की नियमित रूप से होने वाली बैठक के लिए चले गए थे, बैठक करके लौट आये। फिर एक ही वाक्य कहा 'अस्पताल में रहना अच्छा नहीं लगता।” नर्स से बोले अब तो पैरों में कोई संवेदन ही नहीं है, इस इन्सुलिन को लगाने का क्या फायदा?'

पिछले पांच-छह महीनों से जब्बार भाई को साम्प्रदायिक राजनीति चुनौती देने लगी थी। कुछ कोशिशें शुरू हुई थीं कि उनका पुश्तैनी घर उनसे बिकवाया जाए। एक तरह से उस घर को छीनने की कोशिशें शुरू हो रही थीं। उनके पास वही एक आसरा था। वे परेशान थे और भयभीत भी। शायद उन्हें अपने अपनों का भी सहयोग नहीं मिल रहा था। इस नए समाज के जन प्रतिनिधियों और उसकी राजनीति का औछापन देखिये कि वह जब्बार भाई से उनका घर भी छीन लेना चाहते थे। बस यही एक झटका उनकी जान ले गया।

नके द्वारा स्थापित स्वाभिमान केंद्र ने 5000 से ज्यादा महिलाओं के कौशल विकास का काम करने, मुआवज़े की लड़ाई को लड़ने, भोपाल के पर्यावरण के संरक्षण और शहर के स्वास्थ्य के लिए लड़ने वाले जब्बार भाई के प्रति हमारा समाज असहिष्णु साबित हुआ। आज सबसे बड़ी चिंता यह है कि उनके परिवार का सम्मानजनक जीवनयापन कैसे होगा? शहर के लोगों को लगभग 2000 करोड़ रुपए का मुआवजा दिलाने में जब्बार भाई की सबसे अहम् भूमिका रही। अस्पताल का संघर्ष रहा, आज वक्त है कि मध्यप्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकार उनका नागरिक सम्मान करे। उनके परिवार को हमारा साथ मिलना चाहिए।

ब्बार भाई हम भी कहेंगे कि आपके देहांत से हमें दुख है। ईश्वर आपकी आत्मा को शान्ति दे, पर सच कहूँ ईश्वर आपकी आत्मा को शान्ति न दे। जो काम आप छोड़ गए हैं, उसे पूरा करने के लिए हमें जब्बार भाई चाहिए ही।

Next Story

विविध