- Home
- /
- जनज्वार विशेष
- /
- भारतीय खुदरा बाजार पर...
भारतीय खुदरा बाजार पर कब्जा जमाने के लिए अमेजाॅन-फ्लिपकार्ट बेच रहे हैं सेल के नाम पर सस्ता सामान
अमेरिकी ई काॅमर्स कम्पनियां अमेजाॅन व फ्लिपकार्ट आनलाईन कारोबार में देश के कानूनों व नियमों का सरेआम कर रही हैं उल्लंघन, इसलिए खुदरा व्यापारियों ने सरकार से की त्यौहारी सीजन में इन्हें प्रतिबंधित करने की मांग, मगर अमेरिकी दबाव के कारण मोदी सरकार नहीं कर रही कोई कार्रवाई...
स्वतंत्र पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता मुनीष कुमार का विश्लेषण
अमेरिकी ई काॅमर्स कम्पनियां अमेजाॅन व फ्लिपकार्ट आनलाईन कारोबार में देश के कानूनों व नियमों का सरेआम उल्लंघन कर रही हैं। भारत सरकार उनसे नियमों का अनुपालन कराने की जगह उनके सामने भीगी बिल्ली बनी हुयी है।
अमेजाॅन व फ्लिपकार्ट पर कानून के उल्लंघन का आरोप देश के खुदरा व्यापारियों के संगठन कनफिडरेशन आफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने सरकार से अमेरिकी आनलाईन रिटेल कम्पनी अमेजाॅन व फ्लिपकार्ट को आगामी त्यौहारी सीजन में प्रतिबंधित करने की मांग की है।
कैट के जनरल सेकरेटरी प्रवीन खंडेलवाल ने विभिन्न वेबपोर्टल द्वारा दिये जा रहे कैशबैक आफर को रोकने की मांग करते हुए कहा है कि आनलाईन व्यापार कैशलैस अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए शुरु किया गया था, अतः कैशआन डिलीवरी (सामान की डिलीवरी के समय पर भुगतान) को भी प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।
कैट ने सरकार से कहा है कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पालिसी के प्रेस नोट-2 के तहत ई कोमर्स कम्पनियां केवल तकनीकी प्लेटफार्म के रूप में काम कर सकती हैं तथा वे दामों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित नहीं कर सकती हैं।
यह भी पढ़ें : पेप्सी ने गुजरात के किसानों पर लगाया था 4.20 करोड़ का जुर्माना, आंदोलन के दबाव में फिलहाल लिया वापस
गौरतलब है कि पिछले वर्ष 26 दिसम्बर को भारत सरकार के डिपार्टमेंट आफ इंडस्ट्रीयल पालिसी एंड प्रमोशन के प्रेस नोट नंबर 2 के माध्यम से मोदी सरकार ने ईकार्मस क्षेत्र में विदेशी कम्पनियों को आटोमेटिक रूट के जरिये 100 प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति दी थी, इसके तहत भारत में निवेश करने वाली विदेशी ईकाॅमर्स कम्पनियों को बिजनैस टू बिजनैस (बी 2 बी) ही आनलाईन व्यापार करने की छूट प्राप्त है। उन्हें बिजनैस टू कन्जयूमर (बी 2 सी) व्यापार करने की अनुमति नहीं है।
इसका मतलब है कि भारत में निवेश करने वाली अमेरिकी कम्पनी अमेजाॅन व फ्लिपकार्ट सीधे उपभोक्ताओं को सामान नहीं बेच सकती हैं। उसे बी 2 बी के तहत केवल व्यवसायियों, फर्म व कम्पनियों को ही सामान/माल व सेवाएं बेचने की अनुमति है।
कैट ने यह भी आरोप लगाया है कि अमेजाॅन व फ्लिपकार्ट खुदरा बाजार पर कब्जा करने के लिए जान-बूझकर कम कीमतों पर सामान बेच रही हैं। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कैट के प्रतिनिधियों को कानून के अनुपालन व इसकी जांच कराने का आश्वासन दिया है।
आल इंडिया मोबाइल रिटेलर एसोसिएशन (ऐमरा) ने भारत के मुख्य स्मार्टफोन निर्माता जियोमी, सेमसंग, ओप्पो, वीवो व रीयल मी से मांग की है कि वे आनलाइन व आफलाइन स्मार्टफोन बेचने वाले रिटेलरों को एक जैसा डिस्काउन्ट उपलब्ध कराएं।
यह भी पढ़ें : मोदी सरकार की दया से अब विदेशी वकील भी हमारी अदालतों में लड़ेंगे मुकदमे
ऐमरा ने कहा है कि आफलाइन व आनलाइन मोबाइल फोन के दामों में फर्क होने के कारण फुटकर मोबाइल विक्रेताओं का पिछले वर्ष का दीपावली सीजन बेहद खराब रहा था।
कुछ मोबाइल रिटेलरों का कहना है कि जो स्मार्टफोन उन्हें बेचने के लिए 7 हजार रुपए में मिलता है, वह फोन आनलाईन ग्राहकों को 6 हजार रुपए में मिल रहा है। अमेजाॅन व फ्लिपकार्ट द्वारा विगत 30 सितम्बर से देश में शुरु की गयी 6 दिवसीय आनलाईन सेल में 19 हजार करोड़ रुपये से भी अधिक का माल बेचने का दावा किया गया है।
इस 19 हजार करोड़ रुपए की सेल में बड़ा हिस्सा देश के छोटे व मध्यम शहरों से आया है। उधार व किस्तों पर सामान मिलने के कारण लोगों ने जमकर खरीददारी की है। बताया जा रहा है कि 70 प्रतिशत खरीददारी कर्ज लेकर व किश्तों पर की गयी है।
12 अक्टूबर से अमेजाॅन व फ्लिपकार्ट द्वारा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नियमों का उल्लंघन कर फिर से सेल शुरू की जा रही है।इस मेगासेल में 20 हजार करोड़ रुपए से भी अधिक की सेल होने की उम्मीद की सम्भावना है।
भीमकाय वालमार्ट व अमेजाॅन वाल-मार्ट के 27 देशों में 11675 से भी अधिक स्टोर हैं, जोकि 55 अलग-अलग नामों से व्यापार करती है। वालमार्ट भारत में वेस्ट प्राइस होलसेल के नाम से 24 स्टोर चलाती है। भारत में वालमार्ट ने पिछले वर्ष फ्लिपकार्ट के 77 प्रतिशत शेयर 11 सौ अरब रुपए (16 अरबडालर ) में खरीद लिए थे।
विदेशी होने के कारण फ्लिपकार्ट को ई कामर्स के तहत देश में बिजनैस टूबिजनैस की ही अनुमति है, परन्तु वह भी धड़ल्ले के साथ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पालिसी के प्रेस नोट-2 का खुला उल्लंघन कर उपभोक्ताओं को सीधे सामान बेच रही है।
अमेरिकी भीमकाय कम्पनी वालमार्ट का सालाना राजस्व 36 लाख करोड़ रुपयों (514 अरब डॉलर) का है। वहीं अमेजाॅन का राजस्व 16 लाख करोड़ रुपयों (233 अरब डालर) का है।
अमेजाॅन 233 अरब डॉलर व वालमार्ट का 514 अरब डॉलर मिलाकर इनका सालाना व्यापार 747 अरब डॉलर (52 लाख करोड़ रुपये) का है, जोकि भारत सरकार के वर्तमान वित्तीय बजट 27.86 लाख करोड़ के मुकाबले लगभग दोगुने के बराबर है। दुनिया की मात्र 18 अर्थव्यवस्थाएं ही इनसे बड़ी हैं।
बहुराष्ट्रीय निगमों का मकसद रोजगार सृजन नहीं, अपना आधिपत्य स्थापित करना है। ये साम्राज्यवादी कम्पनियां हमारे देश में इसलिए निवेश नहीं कर रही हैं कि वे भारत की अर्थव्यवस्था को सुधारना चाहती हैं, वे देश में रोजगार का सृजन करना चाहती हैं।
इनका भारत में आने का केवल एक ही मकसद है कि ये देश की अर्थव्यवस्था व उत्पादन के साधनों पर अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहती हैं। अप्रैल 2019 में वालमार्ट ने लेबर कास्ट (मजदूरी लागत) कम करने के लिए अपने स्टोरों में रोबोट के इस्तेमाल की घोषणा की है।
हमारे देश में मात्र अमेजाॅन व वालमार्ट ही अपना आधिपत्य स्थापित नहीं कर रही हैं बल्कि कोक, पेप्सी, कारगिल, मैनसेंटो, माइक्रोसाफ्ट, डिलाॅयटी, यूनीलीवर, सुजुकी, टोयोटा जैसी सैकड़ों कम्पनियां भारत में पैर अपने पसार चुकी हैं।
मोदी सरकार अमेरिका व अन्य साम्राज्यवादियों के दबाव के कारण अमेजाॅन व वालमार्ट कार्यवाही करने को तैयार नहीं है, जबकि स्पष्ट है कि उन्होंने देश के कानूनों व अनुबंधों का खुला उल्लंघन किया है।
सरकार नग्नता के साथ देश के मजदूर, किसान व आम आदमी के हित में काम करने की जगह खुलकर देशी-विदेशी पूंजी के हित में काम कर रही है। देश में खुदरा व्यवसायियों की संख्या लगभग 6 करोड़ है। भारत सरकार की प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दिये जाने व अमेजाॅन व वालमार्ट व रिलायंस जैसे देशी-विदेशी कोरपोरेट घरानों के खुदरा व्यापार में उतरने से देश के छोटे व मध्यम व्यावसायियों के हितों पर प्रतिकूल असर पड़ा है।
कैट जैसे संगठन अपनी मांगों के लिए देर-सवेर सड़कों पर दिखाई देने लगें तो इसमें अचरज की बात नहीं होनी चाहिए। देश में मोदी सरकार के अच्छे दिनों के झूठ का तिलिस्म अब टूट रहा है। लोग अब पाकिस्तान, गाय, मंदिर-मस्जिद के मुकाबले देश की अर्थव्यवस्था व जिन्दगी की वास्तविक समस्याओं के बारे में भी बात करने लगे हैं।
(मुनीष कुमार समाजवादी लोकमंच के सहसंयोजक हैं।)