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राजनीति

AMU में CAA के खिलाफ हुए प्रदर्शन में पुलिसिया हिंसा की एक माह में जाँच करेगा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग

Prema Negi
9 Jan 2020 9:34 AM GMT
AMU में CAA के खिलाफ हुए प्रदर्शन में पुलिसिया हिंसा की एक माह में जाँच करेगा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने SIT जाँच की बात नहीं मानी, 17 फरवरी को होगी अलीगढ़ मुस्लिम विवि में हुई हिंसा की सुनवाई...

जेपी सिंह की रिपोर्ट

लाहाबाद हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को निर्देश दिया है कि वह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में नागरिकता कानून (CAA) के विरोध प्रदर्शन के दौरान कथित रूप पुलिस द्वारा की गई हिंसा की जांच करे। यह आदेश आज 9 जनवरी को मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति विवेक वर्मा की खंडपीठ ने मोहम्मद अमन खान द्वारा 15 दिसंबर, 2019 को AMU में एक एंटी-सीएए विरोध के दौरान पुलिस कार्रवाई के खिलाफ दायर जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान दिया। आयोग को 5 सप्ताह के भीतर जांच पूरी करने का निर्देश दिया गया है और इस मामले को फरवरी 17 के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

खंडपीठ ने कहा कि वरिष्ट अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्वेस ने उच्चतम न्यायालय के एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल एक्सिक्युसन विक्टिम फैमिली एसोसिएशन एवं अन्य बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया 2017 (8) एससीसी 417 मामले में उच्चतम न्यायालय की टिप्पणियों का उल्लेख करते हुए बताया है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा जांच सिविल प्रकृति की है और यह गलत करने वाले दोषियों को दंडित करने का प्रभावी उपाय नहीं है।

गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रों पर 15 दिसंबर, 2019 को पुलिस द्वारा हिंसा के खिलाफ जनहित याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिस पर आज 9 जनवरी को फैसला सुनाया। इस याचिका में कहा गया था कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र नागरिकता संशोधन कानून, 2019 के खिलाफ 13 दिसंबर को शांतिपूर्ण विरोध कर रहे थे। हालांकि, 15 दिसंबर को ये छात्र मौलाना आजाद पुस्तकालय के आस पास एकत्रित हुए और विश्वविद्यालय गेट की ओर मार्च किया।

रिष्ठ वकील गोंसाल्वेस ने मामले के तथ्यों को देखते हुए पूरे मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल का गठन करने की मांग की है। उन्होंने एसआईटी के सदस्य के रूप में नामित होने के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस के तीन पूर्व अधिकारियों के नाम भी सुझाए हैं।

खंडपीठ ने कहा कि मानवाधिकार आयोग की शक्तियों को देखते हुए इस स्तर पर हम किसी विशेष जांच दल का गठन करने के लिए इच्छुक नहीं हैं, मगर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा पूरे मामले की जांच की जाएगी। हमारे पास राज्य मानवाधिकार आयोग द्वारा जांच का विकल्प है, लेकिन इस तथ्य के प्रकाश में कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पहले से ही दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्रों और कुछ संकाय सदस्यों द्वारा दायर की गई शिकायत पर इसी तरह के आरोपों से संबंधित जांच कर रहा है। खंडपीठ इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के माध्यम से ही जाँच करना उचित समझते हैं।

खंडपीठ ने आदेश दिया कि इस न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा अधिकृत एक अधिकारी, रिट याचिका (शिकायत) के ज्ञापन की एक फोटोस्टेट कॉपी और रजिस्ट्रार, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली के सामने या 9 जनवरी, 2020 से पहले कॉम्पैक्ट डिस्क को छोड़कर अन्य सभी रिकॉर्ड की फोटोस्टेट प्रतियां पेश करेगा।

खंडपीठ ने कहा है कि आयोग प्राधिकृत अधिकारी द्वारा शिकायत की प्रस्तुति की तारीख से एक महीने की अवधि के भीतर जांच / जांच की प्रक्रिया को तेजी से पूरा करे। खंडपीठ ने आयोग से यह भी अनुरोध किया है कि वह अपने निष्कर्षों और सिफारिशों को, यदि कोई हो, जांच / जांच के निष्कर्ष के तुरंत बाद इस न्यायालय को अवगत कराए। याचिकाकर्ता या उसके प्रतिनिधि के साथ-साथ उत्तर प्रदेश राज्य का प्रतिनिधि 10 जनवरी, 2020 को रजिस्ट्रार, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग नई दिल्ली के समक्ष पेश होगा। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग कार्रवाई का निर्धारण करेगी।

याचिकाकर्ता का आरोप है कि विश्वविद्यालय गेट पर पहुंचने पर वहां तैनात पुलिस ने छात्रों को उकसाना शुरू कर दिया, लेकिन छात्रों ने प्रतिक्रिया नहीं दी। कुछ समय बाद पुलिस ने इन छात्रों पर आंसू गैस के गोले छोड़ने शुरू कर दिए और उन पर लाठियां बरसाईं, जिसमें करीब 100 छात्र घायल हो गए।

हीं राज्य सरकार की ओर से जवाबी हलफनामा दाखिल किया गया था और पुलिस कार्रवाई का बचाव किया गया था। राज्य की योगी सरकार ने दलील दी थी कि विश्वविद्यालय का गेट छात्रों द्वारा तोड़ दिया गया था और विश्वविद्यालय प्रशासन के अनुरोध पर पुलिस ने हिंसा में लिप्त विद्यार्थियों को काबू में करने के लिए विश्वविद्यालय परिसर में प्रवेश किया और इस कार्रवाई के दौरान कोई अतिरिक्त बल प्रयोग नहीं किया गया।

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