भारत-पाक नहीं कर सकते अपनी गरीब आबादी की मूलभूत जरूरतों की पूर्ति
बंग्लादेश ने साक्षरता, कुपोषण, बच्चों व महिलाओं का स्वास्थ्य, शौचालय की उपलब्धता, महिला सशक्तीकरण आदि में भारत व पाकिस्तान को छोड़ दिया है बहुत पीछे, जिसकी एक वजह है भारत-पाकिस्तान ने बेहिसाब सुरक्षा के नाम पर संसाधन खर्च किए, जिसमें खतरनाक नाभिकीय शस्त्रों का निर्माण भी शामिल...
बॉर्डर पर 290 किलोमीटर की भारत एवं पाकिस्तान मैत्री व शांति पदयात्रा करके लौटे सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडेय साझा कर रहे हैं अपना अनुभव
भारत एवं पाकिस्तान मैत्री व शांति पदयात्रा अहमदाबाद से 19 जून, 2018, को शुरू होकर 29 जून को ग्यारह दिनों और 250 किलोमीटर के पश्चात नदेश्वरी माता के मंदिर पर समाप्त हुई।हालांकि पहले दिन अहमदाबाद पुलिस ने गांधी आश्रम से प्रारम्भ होते ही यात्रियों को 3 घंटों के लिए रानिप पुलिस चौकी पर हिरासत में रखा और आखिरी दिन सीमा सुाक्षा बल ने यात्रा को नदेश्वरी माता मंदिर से नडा बेट सीमा तक 25 कि.मी. चलने की अनुमति नहीं दी।
गांधी आश्रम से शुरू होने के बाद यात्रा अडालज, कलोल, छत्राल, नंदासन, मण्डाली, मेहसाणा, बोकरवाडा, सिही, बलिसणा, पाटन, दुनावडा, रोडा, लोटाणा, थरा, देवदरबार, दियोदर, कुवाला, भाभर, दुधवा, सुईगाम होते हुए नदेश्वरी माता मंदिर पर समाप्त हुई।
पदयात्रा भारत और पाकिस्तान की सरकारों से यह मांग करने के लिए निकाली गई थी कि सीमा पर दोनों तरफ के सैनिकों का मरना बंद हो। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर भारत व चीन के सैनिकों ने 21 जून, 2018 को पूर्वी लद्दाख में दौलत बेग ओल्डी नामक स्थान पर संयुक्त योगाभ्यास किया। इस तरह का दोस्ताना माहौल भारत-पाकिस्तान की सीमा पर भी क्यों नहीं निर्मित किया जा सकता?
दोनों मुल्कों को एक-दूसरे के नागरिकों को सीमा पार यात्रा के लिए आसानी से वीजा देना चाहिए। सम्भव हो तो बच्चों, बूढ़ों, बिमार, छात्रों, पत्रकारों, प्राध्यापकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, धार्मिक नेताओं व मजदूरों के लिए वीजा की अनिवार्यता खत्म कर देनी चाहिए। गुजरात से पाकिस्तान जाने का एक रास्ता नडा बेट अथवा खावड़ा में खुलना चाहिए। 1972 तक सुईगाम से नगरपारकर तक जो बस सेवा सक्रिय थी उसे बहाल किया जाना चाहिए।
वैसे खावड़ा मार्ग खुलने से उन मछुआरे परिवारों को बहुत राहत मिलेगी जिनके सदस्य पाकिस्तानी जेलों में बंद हो जाते हैं और फिर सालों वहां सड़ते रहते हैं। कई बार तो यहां मछुआरा परिवारों को मालूम ही नहीं पड़ता कि उनका कोई सदस्य सीमा पार जेल में है।
भारत-पाकिस्तान की सीमाएं खोलना ही शांति का एकमात्र रास्ता
हाल ही में देवाराम बरैया नामक गुजरात के मछुआरे का करांची जेल में देहांत हो गया और आज तक उसके परिवार को न तो दोनों सरकारों में से किसी का कोई संदेश मिला है और न ही देवाराम का मृत शरीर। गुजरात के दो अन्य मछुआरों दाना अर्जुन चौहान व रामा मानसी गोहिल को गम्भीर रूप से बीमारी की हालत में वाघा सीमा पर छोड़ा गया है।
बीमारी की हालत में सीमा के दोनों पार हजारों कि.मी. की यात्रा इनके लिए कितनी कष्टदायक होगी, इसकी कल्पना ही की जा सकती है। दोनों सरकारों को अपनी जेलों में दूसरे देश के कौन से नागरिक बंद हैं उनकी सूचियों को सार्वजनिक करना चाहिए और इनको जल्द से जल्द रिहा कर छोटे से छोटे मार्ग से वापस भेजना चाहिए।
जिनके पास पासपोर्ट या वीजा नहीं है उनके लिए रोज शाम वाघा-अटारी सीमा पर होने वाले सैन्य अभ्यास की जगह एक शांति पार्क बनाया जाना चाहिए, जिसमें दो घंटों के लिए दोनों ओर के नागरिकों को उनका एक पहचान पत्र जमा कराकर व पूरी सुरक्षा के इंतजाम के साथ खुलकर मिलने की छूट दी जानी चाहिए। ऐसा शांति पार्क जहां जहां सीमा पर आने-जाने की रास्ता है वहां वहां बनाया जाना चाहिए। उत्तर कोरिया से प्रेरणा ग्रहण कर भारत, चीन व पाकिस्तान को अपने अपने नाभिकीय शस्त्र खत्म कर एशिया को नाभिकीय शस्त्र मुक्त क्षेत्र घोषित करना चाहिए ताकि इस इलाके के लोगों पर कभी इस भयानक शस्त्र के चलने का खतरा न रहे।
उपर्युक्त बिंदुओं पर करीब 500 हस्ताक्षर पदयात्रा के दौरान एकत्रित किए गए जो भारत व पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों को भेजे जा रहे हैं।
पदयात्रा का मनोबल तब और मजबूत हो गया जब प्रधानमंत्री की पत्नी जशोदाबेन 23 जून को बलिसणा के समीप यात्रियों से आधे घंटे के लिए मिलने पहुंचीं। उन्होंने यात्रा के उद्देश्य को अपना समर्थन प्रदान किया। उन्होंने विश्व शांति की वकालत करते हुए भारत और पाकिरूतान के बीच भी शांति स्थापित हो ऐसी मनोकामना की।
सीमा पर सैनिकों के मरने को उन्होंने अनावश्यक बताया। जशोदाबेन के यात्रा को समर्थन देने से जो उग्र राष्ट्रवादी मानसिकता वाले लोग पदयात्रा के उद्देश्यों पर सवाल खड़ा कर रहे थे, वे शांत हो गए। जशोदाबेन व उनके भाई अशोक मोदी ने यात्रा के साथ चले रहे हस्ताक्षर अभियान पर भी अपने दस्तखत किए।
पदयात्रा के बलिसणा पहुंचने पर आयोजित सभा में यह भी मांग रखी गई कि पाकिस्तानी दूतावास का एक वीजा कार्यालय अहमदाबाद में भी होना चाहिए, ताकि गुजरात के लोगों को दिल्ली जाकर वीजा लेने व सीमा के दोनों ओर लम्बी यात्रा कर सिंध पहुंचने की कठिनाई से निजात मिल सके।
26 जून को दिन के समय पदयात्रा देवदरबार के एक मुदिर में रुकी, जहां के महंथ बलदेवनाथ बापू लोहाणा ठक्कर बिरादरी के धार्मिक गुरू हैं और उनके पांच सौ अनुयायी सीमा पार रहते हैं। अक्टूबर 2017 में बलदेवनाथ बापू पहली बार पाकिस्तान गए व एक माह सलेमकोट, हैदराबाद व करांची रहे। उन्हें वहां जो चंदा मिला उससे सलेमकोट में एक अस्पताल निर्माण शुरू किया है।
उन्होंने पूछने पर यह भी बताया कि अपने एक माह के प्रवास के दौरान न तो उन्हें किसी ने इस बात की शिकायत की कि पाकिस्तान में हिंदुओं का बलात इस्लाम में धर्म परिवर्तन करा दिया जाता है और न ही कोई मंदिर तोड़े जाने की कोई शिकायत उन्हें मिली। उन्होंने यह भी खुलासा किया कि पाकिस्तान में ऐसी चर्चा है कि 2020 या 2022 तक सुईगाम-नगरपारकर मार्ग चलने लगेगा।
इससे पहले पदयात्रा लोटाणा में सदाराम बापू से आशीर्वाद लेने पहुंची जिनकी उम्र सौ वर्ष से ऊपर है और जिन्होंने इस इलाके में साम्प्रदायिक सद्भावना को मजबूत बनाए रखने का काम किया है। ऐसा प्रतीत होता है कि गुजरात-सिंध की सीमा पर धार्मिक गुरुओं की शांति व सद्भाव बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका है।
पदयात्रा का औपचारिक समापन कार्यक्रम 30 जून को अहमदाबाद में रखा गया, जिसमें पाकिस्तान से सामाजिक कार्यकर्ता करामत अली व सईदा दीप भी इंदरनेट के माध्यम से शामिल हुईं। उद्यमी पियूष देसाई जो वाघ बकरी चाय कम्पनी के मालिक हैं पदयात्रा से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने तय किया कि प्रत्येक सप्ताह गांधी आश्रम में शांति व सद्भावना के विचार को मजबूत करने के लिए बैठकों को आयोजन होगा।
पदयात्रा की ओर से नरेन्द्र मोदी को एक पत्र लिखा गया है कि जिस तरह भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दिल्ली से लाहौर बस सेवा शुरू कर वाहवाही लूटी, उसी तरह यदि वे चाहें तो अहमदाबाद से करांची बस सेवा शुरू कर सकते हैं।
आजादी के बाद भारत के तीन टुकड़े हुए। इनमें से आज बंग्लादेश ने सामाजिक मानकों जैसे साक्षरता, कुपोषण, बच्चों व महिलाओं का स्वास्थ्य, शौचालय की उपलब्धता, महिला सशक्तीकरण, प्रति परिवार बच्चों की संख्या आदि में भारत व पाकिस्तान को बहुत पीछे छोड़ दिया है, जिसकी एक वजह यह भी है कि भारत व पाकिस्तान ने बेहिसाब सुरक्षा के नाम पर संसाधन खर्च किए हैं, जिसमें खतरनाक नाभिकीय शस्त्रों का निर्माण भी शामिल है। जबकि बंग्लादेश ने समझदारी पूर्वक अपने संसाधनों का इस्तेमाल अपने बच्चों व महिलाएं की स्थिति को ठीक करने के लिए किया।
एक आम इंसान की सुरक्षा तो उसकी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति से ही होती है। नाभिकीय शस्त्र तो समाज के एक संभ्रांत तबके की सुरक्षा हेतु बनाए गए हैं। एक नाभिकीय शस्त्र किसी कुपोषित बच्चे को भुखमरी से व किसी किसान को आत्महत्या से कैसे रोक सकेगा? यदि हम अपनी गरीब आबादी की मूलभूत आवश्यकताओं की भी पूर्ति नहीं कर सकते तो नाभिकीय शस्त्रों का उनके लिए कोई मतलब नहीं है।
भारत और पाकिस्तान को अपने लम्बित मुद्दों को सौहार्दपूर्ण तरीके से वार्ता द्वारा हल कर लेना चाहिए और मैत्री व शांति को एक मौका देना चाहिए।