तीनों राज्यों में आम आदमी पार्टी को उतने भी वोट नहीं जितने नोटा को
कहावत है 'गए थे छब्बे बनने, दूबे बनकर लौटे' आज यही कहावत आम आदमी पार्टी के साथ बिल्कुल सटीक बैठ रही है, क्योंकि उसे नोटा से भी कम इतने वोट मिले कि ज्यादातर सीटों पर प्रत्याशी अपनी जमानत भी नहीं बचा सके....
राष्ट्रीय पार्टी बनने की आस में केजरीवाल ने दिल्ली पार्टी कार्यकर्ताओं का भी गिराया मनोबल, इस योजना के मास्टर माइंड थे केजरीवाल के प्रिय संजय सिंह, पार्टी में चर्चा तेज कि इस खराब प्रदर्शन का बुरा असर पड़ेगा लोकसभा चुनावों में
जनज्वार। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान सहित पांच राज्यों में अबकी बार आम आदमी पार्टी विधानसभा चुनाव लड़ी थी। कल आए परिणामों में तीनों राज्यों में आप को नोटा से कम वोट मिले हैं। मध्य प्रदेश की 230 सीटों में से आप ने 208 पर उम्मीदवार उतारे थे। इनमें से ज्यादातर प्रत्याशी अपनी जमानत भी नहीं बचा सके। राज्य में आप को मात्र 0.7 प्रतिशत वोट ही मिले, जबकि 1.5 प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा को वोट देना पसंद किया।
इससे दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी के अन्य राज्यों में विस्तार करने की कोशिशों और महत्वाकांक्षा को करारा झटका लगा है। इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि आप द्वारा मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के दावेदार घोषित आलोक अग्रवाल को सिर्फ 823 वोट मिले। नर्मदा बचाओ आंदोलन के सदस्य अग्रवाल ने भोपाल दक्षिण पश्चिम सीट से चुनाव लड़ा था।
आम आदमी पार्टी ने छत्तीसगढ़ की 90 सदस्यीय विधानसभा की 85 सीटों पर तो तेलंगाना की 119 सदस्यीय विधानसभा की 41 सीटों अपने प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे थे। वहीं राजस्थान में भी 200 सीटों में से 142 सीटों पर आम आदमी के उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे।
इस करारी शिकस्त को पार्टी के अंदरखाने भी मिशन विस्तार के लिये तगड़ा झटका माना जा रहा है। इस बार आप द्वारा तीनों राज्यों की विधानसभाओं में उपस्थिति दर्ज कराने के कयास लगाए जा रहे थे। दिल्ली में मिली बड़ी जीत के बाद पंजाब में भी पार्टी ने अच्छी खासी सीटें जीती थीं और मुख्य विपक्षी दल के बतौर सामने आई।
पार्टी सूत्रों का कहना है, राष्ट्रीय पार्टी बनने की आस में केजरीवाल ने दिल्ली पार्टी कार्यकर्ताओं का भी मनोबल गिराया है। इस योजना के मास्टर माइंड दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के प्रिय और राज्यसभा सदस्य संजय सिंह रहे हैं। पार्टी में यह भी चर्चा तेज है कि इस खराब प्रदर्शन का बुरा असर लोकसभा चुनावों में भी दिखाई देगा।
हालांकि चुनावों में मुंह की खाने के बाद मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार आलोक अग्रवाल ने यह कहकर खुद को बचाने की कोशिश की कि 'आम आदमी पार्टी ने चुनाव में खुद को बीजेपी और कांग्रेस की तरह पेश नहीं किया था। हम भारी भरकम संसाधनों वाली बीजेपी और कांग्रेस से अपनी तुलना नहीं कर सकते।'
अंदरखाने यह भी चर्चा आम है कि आप ने इन चुनावों में एड़ी—चोटी का जोर लगाया था। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी अपने प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार किया, मगर जनता ने आम आदमी पार्टी को सिरे से नकार दिया।
आप दिल्ली इकाई के संयोजक गोपाल राय कहते हैं, 'हमारी पार्टी संगठन विस्तार के मकसद से इन चुनावों में उतरी थी और इस मकसद में हम कामयाब हुए हैं। चुनाव परिणाम से स्पष्ट है कि बीजेपी को हराना जनता का लक्ष्य है इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए आप दिल्ली की सभी लोकसभा सीटों पर चुनावों में अपने प्रत्याशी खड़े करेगी।'
वहीं पार्टी के तेलंगाना प्रभारी सोमनाथ भारती कहते हैं, आप ने तेलंगाना में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिये उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे थे। इसका मकसद संगठन को मजबूत करना था।