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मॉब लिंचिंग में जलाये गये दलित युवक की मौत के बाद रिहाई मंच ने पुलिस पर लगाया हत्यारों को बचाने का आरोप
मुख्यमंत्री आवास के समीप जिला अस्पताल में इलाज़ के अभाव में मॉब लिंचिंग के शिकार युवक सुजीत ने तोड़ा दम, मौत के बाद रिहाई मंच प्रतिनिधिमंडल पंहुचा गांव, पीड़ित परिवार की गुहार के बावजूद नहीं पहुंचे डीएम...
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में भीड़ द्वारा एक दलित युवक की मॉब लिंचिंग में पहले जमकर पिटाई और फिर आग के हवाले कर दिया गया था। बुरी तरह से जल चुके सुजीत कुमार की लखनऊ के सिविल अस्पताल में इलाज के दौरान 22 जुलाई को मौत हो गई थी।
रिहाई मंच ने मॉब लिंचिंग के शिकार बाराबंकी के सुजीत गौतम की मौत के बाद योगी प्रशासन द्वारा 5 लाख के मुआवजे दिये जाने को रेवड़ी करार देते हुए सवाल किया कि प्रतापगढ़ में आपसी रंजिश में मारे गए हिन्दू युवा वाहिनी जिलाअध्यक्ष ओम मिश्रा को 10 लाख, लखनऊ में पुलिस की गोली का शिकार हुए विवेक तिवारी के परिवार को 40 लाख रुपए और अधिकारी स्तर की नौकरी किस आधार पर दी गई।
रिहाई मंच ने आरोप लगाया कि एक तरफ सुप्रीम कोर्ट और विधि आयोग मॉब लिंचिंग पर कानून बनाने की बात कर रहा है, दूसरी तरफ राजधानी लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास से मात्र 200-300 मीटर की दूरी पर जिला अस्पताल में दलित युवक इलाज के आभाव में तिल तिल कर मर जाता है। योगी तो दूर शासन प्रशासन के किसी ज़िम्मेदार ने मिलने की ज़हमत नहीं की। सुजीत की मौत के बाद बाराबंकी पुलिस कह रही है कि यह मॉब लिंचिंग की घटना नहीं है, तो क्या बाराबंकी पुलिस इतना कहने के लिए उसकी मौत का इंतज़ार कर रही थी।
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गौरतलब है कि बाराबंकी पुलिस ने थाना देवा में घटित घटना को मॉब लिंचिंग कहे जाने को भ्रामक बताया। पुलिस के बयान का खंडन करते हुए रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि खुद पुलिस कह रही है कि वहां के लोगों के द्वारा चोर समझ कर मारा पीटा गया तथा जलाने का प्रयास किया गया। जिन अभियुक्तों द्वारा घटना को अंजाम दिया गया, वह सब एक ही परिवार के हैं तथा वहां उन्हीं लोगों का घर है।
अगर किसी दलित युवा को पहले जमकर पीटने के बाद आग के हवाले कर दिया जाना मॉब लिंचिंग नहीं है तो फिर क्या है। फिर तो पुलिस को यह भी ज्ञान देना चाहिए था की मॉब लिंचिंग किसे कहते हैं, जबकि इस घटना में आरोपियों की वल्दियत भी अलग-अलग है जिसे पुलिस के कथन से भी जाना जा सकता है कि वहां उन्हीं लोगों का घर है।
बकौल रिहाई मंच एक ही परिवार के लोगों द्वारा घटना के अंजाम देने के नाम पर मॉब लिंचिंग का केस न मानकर पुलिस दोषियों को बचाने की फ़िराक में है। उन्होंने कहा कि सामूहिक बलात्कार के मामले में जिस तरह गैंगरेप की धारा के तहत कार्रवाई होती है ठीक उसी तरह मॉब चाहे एक परिवार, एक समाज, एक गाँव का हो उसके द्वारा की गई हत्या मॉब लिंचिंग ही कही जाएगी।
रिहाई मंच नेता शकील कुरैशी ने कहा कि बाराबंकी के देवा में 17 जुलाई को मॉब लिंचिंग के शिकार हुए सुजीत की मौत के बाद 22 जुलाई को सृजनयोगी आदियोग के साथ रिहाई मंच के राजीव यादव, शाहरुख़ अहमद और रॉबिन वर्मा उनके गाँव पहुंचे थे।
शकील कुरैशी कहते हैं दलित युवक को पानी के ड्रम में डुबोकर, करंट लगाकर प्राइवेट पार्ट में पेट्रोल डालकर ज़िन्दा जलाने जैसी जघन्य घटना के बाद ग्रामवासियों के दबाव में शासन-प्रशासन ने सुजीत गौतम के परिवार को 5 लाख रुपये व 4 बीघा जमीन के मुआवजे का आश्वासन दिया। बाद में मुआवजे को किसान दुर्घटना योजना के तहत दिए जाने की बात कही। यह पूरा घटनाक्रम मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं पर शासन प्रशासन की असंवेदनशीलता को उजागर करता है।
रिहाई मंच के मुताबिक योगी सरकार जहां दलितों के लिंचिंग में मारे जाने पर नाममात्र का मुआवजा देकर उन्हें झांसा देती है, वहीं मुसलमानों के मारे के जाने पर मुआवजा भी नहीं देती। सवर्ण समाज के लोगों की मौत के बाद योगी सरकार की मुआवजा नीति साफ़ करती है कि हत्या जैसे सामाजिक अपराध को भी वह मनुवादी चश्मे से देखती है।
मंच ने सबका साथ सबका विकास वाली सरकार पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि हत्या हत्या होती है और सरकार सबकी होती है। इस मामले में अभी तक सभी दोषियों की गिरफ्तारी न होना प्रशासन पर सवाल खड़ा करता है। उसे तनिक भी चिंता नहीं कि पीड़ित परिवार अभी भी घटना से भयभीत है और अपनी सुरक्षा को लेकर सशंकित है।