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विमर्श

दुनिया बदलने की बातें करके अपनी संपत्ति बढ़ाते हैं धनवान

Prema Negi
27 Aug 2018 5:46 AM GMT
दुनिया बदलने की बातें करके अपनी संपत्ति बढ़ाते हैं धनवान
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करोड़ों लोगों को यह पता ही नहीं है कि कुछ लोग दुनिया को झूठ बदलाव फेक चेंज बेच रहे हैं...

आनंद गिरधरदास, अमेरिकी लेखक और स्तंभकार

पिछले कुछ वर्षों के दौरान हमने कई बार 'चेंज द वर्ल्ड' शब्द सुना है। यह पीड़ितों को राहत पहुंचाने के लिए अकसर इस्तेमाल किया जाता है। हाल के वर्षों में दुनिया बदलने की कथित जिम्मेदारी उन्होंने ले ली, जो या तो बहुत रईस हैं या शक्तिशाली हैं। यह वर्ग दुनिया बदलने की बातें करके खुद अपनी संपत्ति बढ़ाता है।

करोड़ों लोगों को यह पता ही नहीं है कि कुछ लोग दुनिया को झूठ बदलाव फेक चेंज बेच रहे हैं। यह सही है कि बदलाव की बात करने वाले सारी पहल को संपन्न लोग ही बढ़ावा देते हैं जिससे गरीबों का भला हो। ऐसे रईस जो 'बदलाव' की बातें करते हैं वे अर्थव्यवस्था के खिलाड़ी होते है।। इसी से उनकी संपत्ति कई गुना बढ़ती है।

ख्यात अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी के शोध पत्र के अनुसार अकेरिका के एक फीसदी वो रईस जिनके पास सबसे ज्यादा धन है, 1980 के बाद उनकी आय तीन गुना बढ़ी है। उनमें भी 0.001 फीसदी की आय सात गुना बढ़ी है। अमेरिकी रईसों ने तरक्की पर एकाधिकार जमा लिया हे, लेकिन उसे तोड़ा जा सकता है।

नीतियां सख्त हों तो कर्मचारियों को संरक्षण प्रदान किया जा सकता है। आय का संतुलन कायम हो सकता है और शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाएं सभी की पहुंच में हो सकती हैं। ऐसा हो तो ही सही बदलाव हो सकेगा। लेकिन इस तरह के प्रयास उच्च रईस वर्ग एलिट क्लास के लिए महंगे साबित होते हैं।

हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के प्रोफेसर माइकल ई पोर्टर कहते हैं, बिजनेस में रहकर किए गए कार्य बिजनेस ही होते हैं, न कि चैरिटेबल कार्य।' जो पूंजीपति होते है। उन्हें उनकी विनम्रता से फायदा पहुंचता है क्योंकि उन्होंने बदलाव की परिभाषा अपने तरीके से गढ़ ली है।

यह सच है कि अमेरिकी प्रशासन की तरह अन्य जगहों पर भी रईस वर्ग को बढ़ा दिया जाता है। कैसे वे अपनी छवि चमकाने में सरकार की मदद लेते हैं। लोगों के सामने बदलाव का प्रचार किया जाता है, जबकि इसके पीछे बिजनेस के फॉर्मूले काम करते हैं। मौजूदा अमेरिकी व्यवस्था में यही होता है। एक समृद्ध समाज वही है, जहां तरक्की और आविष्कार लगातार होते रहें, समृद्धिपूर्ण विकास का लाभ सभी को मिलता रहे। परंतु अमेरिका की यह व्यवस्था ढह रही है।

हमें ऐसे मूल सुधारों की जरूरत है, जिसमें लोग व्यवस्थित जी सकें। वह नई व्यवस्था तय करे कि सभी बच्चे स्कूल जाएं और अच्छी शिक्षा हासिल करें। वही सुनिश्चित करे कि नेता दानदाताओं की तरफ देखें या जनता की तरफ। उस व्यवस्था में कर्मचारियों को उपर्युक्त वेतन मिले, ताकि वे दृढ़तापूर्वक योजनाएं बनाकर परिवार का पालन कर सकें।

न्यूयॉर्क टाइम्स से अनुदित लेख दैनिक भास्कर में पहले प्रकाशित

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