कांग्रेस जिलाध्यक्ष ने श्मशान में नहीं जलाने दी दलित महिला की लाश, 22 दिन बाद भी नहीं हुई कोई कार्रवाई
दलित महिला के परिजनों का आरोप मुख्य आरोपी लक्ष्मण जाट कांग्रेस जिलाध्यक्ष और सचिन पायलट का है करीबी, इसीलिए पुलिस उसके खिलाफ़ नहीं ले रही कोई एक्शन, उल्टा हमीं से कहती है मत लो इनसे पंगा...
सुशील मानव
राजस्थान के टोंक जिले के पीपलू तहसील के गाता गांव में 19 दिसंबर, 2019 को दलित समाज से ताल्लुक रखने वाली फूला देवी की मौत हो गई थी। अंतिम संस्कार के लिए शव श्मशान घाट पर लाया गया, मगर वहां जाट समुदाय से ताल्लुक रखने वाले कांग्रेस जिलाध्यक्ष लक्ष्मण जाट की अगुवाई में पहले से मौजूद जाट समाज के लोगों ने शव को जलाने के लिए इकट्ठा की गई लकड़ियों को बाहर फेंक दिया और गाली-गलौच भी की। लाश लेकर खड़े दलितों से कहा कि तुम नीची जाति के हो, इसलिए तुम्हारे और हमारे शव एक ही जगह कैसे जल सकते।
उच्च जातियों ने यह दबंगई तब दिखायी, जबकि इससे पहले सभी के शवों को यहां जलाया जाता रहा था, लेकिन पंचायत द्वारा श्मशान के नवनिर्माण के बाद यह पहला मौका था जब दलित किसी की लाश को वहां जलाने पहुंचे थे। घंटों बाद दलितों ने फूला देवी का शव नीचे रखकर जलाया और इसके खिलाफ शिकायत दर्ज करवायी। कांग्रेस जिलाध्यक्ष लक्ष्मण जाट समेत 15 लोगों के खिलाफ इस मामले में एफआईआर भी दर्ज हुई है, मगर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गयी है।
इसी के विरोध में शनिवार 11 जनवरी को दिल्ली और राजस्थान से गोंडवाना समाज के दर्जनों लोगों ने जंतर मंतर पर इकट्ठा होकर इस घटना के मुख्य आरोपी लक्ष्मण जाट के पुतले को जूते मारे और सरकार और प्रशासन के खिलाफ़ जमकर नारेबाजी की। साथ ही मांग की कि आरोपियों को गिरफ्तार करके सख्त सजा दी जाये।
मृतका फूला देवी के देवर राम करण बताते हैं, “19 दिसंबर 2019 को उनकी भावज फूला देवी का देहावसान हो गया था। उनके नाते—रिश्तेदार परिवार के लोग नजदीकी श्मसान घाट पर जलाने के लिए ले गए। पीपलु गांव के ग्राम पंचायत ने श्मसान घाट में शव जलाने के लिए चबूतरा बनवाया था। उसी पर रखकर शव जलाया जाता था। हम लोग जैसे ही शव लेकर वहाँ पहुँचे तो वहाँ पर गाँव के ही लक्ष्मण जाट अपनी बिरादरी के कई लोगों को लेकर पहुँच गए और गाली गलौज करने लगे।'
राम करण कहते हैं, 'वो लोग बोल रहे थे कि यहाँ चबूतरे पर दलित की लाश नहीं जलाने देंगे। यहां से हटाओ और नीचे ले जाकर जलाओ। हम लोगों ने नजदीकी थाने में सूचना दी तो थानाध्यक्ष अपनी टीम लेकर पहुँचे। थानाध्यक्ष भी उनके पक्ष में थे। बोल रहे थे कि इनसे पंगा मत लो। नीचे रखकर लाश जला लो, हम तुम लोगों के लिए अलग से एक चबूतरा बनवा देंगे। 9 घंटे लाश को लेकर हम लोग खड़े रहे, लेकिन हमारी सुनवाई नहीं हुई। फिर हमने लाश को नीचे ले जाकर ही दाह संस्कार किया।'
पीड़ित दलित परिवार के मुतातिब शव का अंतिम संस्कार करने के बाद लक्ष्मण जाट ने हमारे परिवार को धमकाया कि यदि हम मामले को आगे बढ़ाएंगे तो वो लोग हमें गाँव में नहीं रहने देंगे। इसी के बाद हम फिर से शिकायत लेकर कमिश्नर के पास गए। कमिश्नर ने हमें आश्वासन दिया कि वो कार्रवाई करेंगे। 22 दिसंबर को हमारी एफआईआर दर्ज़ हुई, लेकिन तब से आज तक 20 दिन बीत चुके हैं आरोपियों को आज तक गिरफ्तारी नहीं हुई है।
राम करण कहते हैं, 'मुख्य आरोपी लक्ष्मण जाट कांग्रेस पार्टी से जुड़ा हुआ है और सचिन पायलट का करीबी है, इसीलिए पुलिस उसके खिलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं कर रही है।
बकौल रामकरण “पीपलु गाँव में 10 घर बैरवा जाति के लोग हैं, जबकि जाट घरों की संख्या 35-40 के करीब है। हमें डर है कि कहीं बैरवा जाति के लोगों के साथ बथानी टोला, शंकरबीघा, लक्ष्मणपुर बाथे या सहारनपुर जैसी घटना न घटित हो जाए, क्योंकि प्रशासन हमारी सुरक्षा के प्रति तनिक भी संवेदनशील और जवाबदेह नहीं दिखती है।”
आरोपियों पर कार्रवाई किये जाने की मांग करते गोंडवाना समाज और मृतक दलित महिला के परिजन
इस मसले पर अंबेडकरनगर दिल्ली में रहने वाले पीपलु गांव के राजकुमार गोठवाल कहते हैं, “आरोपी लक्ष्मण जाट कांग्रेस का टोंग जिले का जिलाध्यक्ष है, जबकि स्थानीय विधायक और मंत्री सब कांग्रेस के हैं। हम लोगो ने 15 लोगों के खिलाफ़ नामजद एफआईआर करवायी है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। उन्होंने चबूतरे पर से हमारी लकड़ियां उठाकर नीचे फेंक दी और हमें जातिसूचक और माँ बहन की गालियां दीं। हम केंद्र सरकार से आरोपी के खिलाफ़ सख्त कार्रवाई की मांग करते हैं।”
गौरतलब है कि पिछले साल के अंतिम माह यानी 19 दिसंबर 2019 को टोंक जिले के गाता गाँव में दलित समुदाय की महिला फूला देवी का निधन हो गया। परिजन लाश को नजदीकी श्मशान घाट गए, मगर लक्ष्मण जाट की अगुवाई में गांव की जाट बिरादरी ने दलित समुदाय को श्मशान के चबूतरे पर दाह संस्कार नहीं करने दिया। लाश को 9 घंटे तक जलाने से रोके रखा, जबकि पुलिस प्रशासन की भूमिका भी अपराधियों को संरक्षण देने वाली रही।
घटना के 3 दिन बाद 22 दिसंबर को दलित समुदाय द्वारा जिला मुख्यालय घंटाघर चौराहे पर धरना आंदोलन किया गया। उस दिन धरने के दौरान आरोपियों पर मुकदमा दर्ज कर कार्यवाही की मांग को लेकर उस समय मामला गर्मा गया, जब बैरवा समाज व भीम आर्मी सेना के लोगों ने बैरवा धर्मशाला में बैठक के बाद मुख्य बाजार होते हुए रैली निकाली। रैली के बाद ये लोग घंटाघर चौराहे के बीच में आकर जाम लगा दिया और मुकदमा दर्ज करने व इस घटना के दौरान मौजूद अधिकारियों को एपीओ करने की मांग कर डाली।
चौराहे पर जाम लगाने को लेकर पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच कई बार तकरार व धक्का-मुक्की भी हुई। शाम 7 बजे के करीब बड़ी तादाद में पुलिस बल मौके पर पहुंचा। घंटाघर और घंटाघर चौराहे पर बीच रास्ते में रास्ता जाम लगाकर धरना देकर बैठे लोगों में से इसका नेतृत्व कर रहे नरेन्द्र आमली को पुलिस ने शांतिभंग के आरोप में हिरासत में लिया।
वहां मौजूद लोगों को बाबा साहब अम्बेडकर सर्किल के बाहर धरने पर बैठाया। इससे पहले मुकदमा दर्ज़ कर कार्यवाही की मांग को लेकर बैरवा धर्मशाला में बैठक हुई और उसमें इस घटना की निंदा करते हुए इस प्रकरण में दोषी लोगों एवं अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने की मांग का प्रस्ताव पारित किया गया। बैठक के बाद जिला कलेक्टर को ज्ञापन देने के लिए सभी लोग जुलूस निकालकर बैरवा धर्मशाला से रवाना होकर बड़ा कुआ से मुख्य बाजार होते हुए घंटाघर पहुंचे। यहां प्रर्दशनकारी घण्टाघर चौराहे पर ही धरना लगाकर बैठ गये।
इस दौरान प्रदर्शनकारियों में से कुछ युवकों ने जाम लगाने के प्रयास किया। आक्रोशित लोगों ने मौके पर जिला कलेक्टर को बुलाने की मांग की, जिस पर अतिरिक्त जिला कलेक्टर सुखराम खोखर, एसडीएम रतनलाल योगी, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक विपिन कुमार शर्मा मौके पर आये। यहां बैरवा समाज के नेताओं ने मुकदमा दर्ज़ करने के लिए नामजद ज्ञापन दिया।
ज्ञापन में छोगालाल बैरवा की मृतक पत्नी फूला देवी का दाह-संस्कार करने से रोकने को लेकर विरोध कर रहे लोगों ने एफआईआर की प्रतिलिपि मौके पर देने और दोषी अफसरों पर कार्यवाही की मांग की। साथ ही मांग पूरी न होने पर घंटाघर चौक से नहीं की चेतावनी भी दे डाली। इस पर उपखण्ड अधिकारी रतनलाल योगी ने आक्रोशित लोगों को समझाकर 5 लोगों के शिष्टमंडल की जिला कलेक्टर केके शर्मा से वार्ता करवाई, लेकिन अभी तक आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया गया और दबंग आरोपी पीड़ित परिवार समुदाय को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दे रहा है।
दलित उत्पीड़न की यह पहली घटना नहीं है। देश में रोज न जाने कितनी ऐसी घटनायें होती हैं, मगर मीडिया की सुर्खियां कुछ ही घटनायें बन पाती हैं। यदि सचमुच भारत को आजाद हुए 7 दशक से भी ज्यादा का वक्त बीत चुका है और यह बराबरी का समाज है तो क्यों मधेपुरा के बिहार में 13 सितंबर 2018 को एक महादलित भूमिहीन हरिनारायण रिषिदेव को अपनी 35 वर्षीय पत्नी सहोगिया देवी की लाश अपनी झोपड़ी में दफ़नाने के लिए विवश होना पड़ा?
मार्च 2018 में गुजरात के भावनगर जिले के टींबा गांव में घोड़ी चढ़ने के जुर्म में 21 वर्ष के दलित युवक प्रदीप राठौर की हत्या कर दी गई। 2018 में ही कासगंज यूपी के दलित युवक संजय को अपनी बारात निकालने के लिए प्रशासन से लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट तक गुहार लगानी पड़ी और बाद में शादी की तारीख तक बदलनी पड़ी।