दलित चिंतक कांचा इलैया भी थे उस कार्यक्रम में, जिसके लिए ट्रोल हो रहे सीताराम येचुरी
येचुरी, कांचा सहित कई लोग हैदराबाद में 'बहुजन लेफ्ट फ्रंट' के कार्यक्रम में शामिल हुए। यह फ्रंट तेलंगाना की राजनीति में काफी सक्रिय है। आगामी चुनाव भी लड़ने जा रहा है...
वरिष्ठ पत्रकार और संपादक उर्मिलेश की महत्वपूर्ण टिप्पणी
फेक न्यूज कितना ख़तरनाक है! इसके शिकार या इसके प्रभाव में कई बार अच्छे लोग भी आ जाते हैं! अभी देखा, फेक न्यूज फ़ैलाने वालों के साथ कुछ अच्छे लोग भी फूलों के त्योहार (बोनालू) के मौके की एक तस्वीर को सोशल मीडिया पर नकारात्मक ढंग से प्रसारित कर रहे हैं! वे बताने की कोशिश कर रहे हैं कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी और कुछ अन्य वामपंथी कार्यकर्ता किसी 'धर्म-यात्रा' या किसी 'धार्मिक अनुष्ठान' में शामिल हुए या कि वामपंथी भी अब 'कमंडल-वादी' होने लगे!
यहां पार्टी-पालिटिक्स की बात नहीं है! खबर की दुनिया की बात है! कोई चाहे तो मार्क्सवादी पार्टी पर लिखने के लिए उसके पास बहुत कुछ हो सकता है। ढेर सारे मसले और विषय हैं! पर कल और आज, इस बाबत जो सोशल मीडिया पर चल रहा है, वह 'न्यूज' या 'न्यूज-एनालिसिस' न होकर शुद्ध रूप से 'फेक-न्यूज' है!
जिस समारोह या कार्यक्रम में परसो माकपा महासचिव सीताराम येचुरी शामिल थे, वहां मेरे एक अभिन्न मित्र भी मौजूद थे। ये हैं: प्रो कांचा इलैया! अभी कांचा से मेरी उक्त कार्यक्रम के बारे में फोन पर विस्तार से बातचीत हुई! उसका सारांश नीचे दे रहा हूं। ध्यान से पढ़ें और 'फेक न्यूज' को दिमाग से बाहर फेंकिए!
येचुरी, कांचा सहित कई लोग हैदराबाद में 'बहुजन लेफ्ट फ्रंट' के कार्यक्रम में शामिल हुए। यह फ्रंट तेलंगाना की राजनीति में काफी सक्रिय है। आगामी चुनाव भी लड़ने जा रहा है! कांचा बौद्धिक तौर पर ऐसी मोर्चेबंदी के पक्षधर हैं!
कार्यक्रम बुनियादी तौर पर सांस्कृतिक-राजनीतिक था। फूलों के त्योहार (बोनालू) के मौके पर रंग-बिरंगे फूलों को सर पर उठाए सीताराम येचुरी सहित कई नेताओं की तस्वीरें स्थानीय अखबारों में भी छपी हैं! पर कौन जानता था कि हिंदी पट्टी में सोशल मीडिया पर इसे धार्मिक-अनुष्ठान या कर्मकांड नुमा कोई विशेषण दे दिया जायेगा!
दरअसल, यह तेलंगाना के दलित-आदिवासी और बहुजन समाज का महत्वपूर्ण सामाजिक-सांस्कृतिक त्योहार है, जिसमें शामिल होने दूर दूर से लोग आए थे!
कांचा इलैया पारंपरिक-वामपंथी भी नहीं हैं! वह अपने को बहुजन चिंतक कहलाना पसंद करते हैं! मेरी तरह कई मुद्दों पर वामपंथियों की आलोचना भी करते रहे हैं! पर वह माकपा सहित अन्य वामपंथियों की बहुजन समाज से बढ़ती राजनीतिक नजदीकी से बहुत खुश लग रहे हैं। उनका कहना है कि यह एक अच्छा प्रयोग है, जो यहां सूबे में आजमाया जा रहा है!
पता नहीं क्यों और कैसे इस मोर्चे के एक कार्यक्रम पर 'फेक न्यूज' के कारोबारियों की नजर लग गई! ------और कुछ अच्छे लोग भी भ्रमित हो गये!