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राजनीति

न्यूनतम वेतन बढ़ोत्तरी को रद्द करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी केजरीवाल सरकार

Prema Negi
8 Aug 2018 4:13 AM GMT
न्यूनतम वेतन बढ़ोत्तरी को रद्द करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी केजरीवाल सरकार
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मुख्यमंत्री केजरीवाल बोले हमारी सरकार है गरीबों को राहत दिलवाने के लिए प्रतिबद्ध, कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का खटखटाएंगे दरवाजा

बड़ी अजीब बात है जो न्याय के कर्णधार पे कमीशन द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन के आधार अपना बढ़ा हुआ वेतन उठा रहे हैं, उन्हें दिल्ली सरकार द्वारा उससे कम निर्धारित मजदूरी का फैसला भी संविधान के विरुद्ध लगता है...

रवींद्र गोयल, दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक

4 अगस्त को दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार का वो फैसला, जिसके तहत उसने दिल्ली में न्यूनतम मजदूरी बढाई थी, यह कहते हुए रद्द कर दिया की वो फैसला बिना किसी आधार पर सरकार द्वारा बिना दिमाग लगाये हुए किया गया फैसला था। कोर्ट का यह भी मानना था की ऐसा फैसला संविधान के विरुद्ध है।

लेकिन इसी के साथ यह फैसला भी दिया है कि कोई भी फैक्ट्री मालिक या फिर इंडस्ट्री बढ़ाए हुए पैसे को मजूदरों से वापस नहीं ले सकती है। मजदूरों में डर था कि कहीं उनसे उनको जो अब तक बढ़ी हुई दरों पर वेतन मिला है उसे वापस न ले लिया जाए।

मजदूर दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का मन बना रहे हैं। केजरीवाल सरकार का कहना है निश्चित तौर पर कोर्ट के इस मजदूर विरोधी फैसले को चुनौती दी जाएगी। जिस तरह से स्टैंडर्ड फ्लोर बसों के मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई, उसी तरह से मिनिमम वेज में बढ़ोतरी को लेकर भी सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी।

केजरीवाल का कहना है कि हम गरीबों को राहत दिलवाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, इसलिए कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।

कोर्ट के फैसले को मजदूर विरोधी ठहराते हुए वरिष्ठ वकील कोलिन गोंजाल्वेस कहते हैं,

न्यूनतम मजदूरी के फैसले को रद्द करने का कोर्ट का फैसला वाकई भयानक है।

बढ़े हुए वेतन को रद्द करने का निर्णय कार्यकारी न्यायाधीश गीता मित्तल एवं न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की न्यायपीठ ने व्यापारियों, पेट्रोल व्यवसाइयों तथा रेस्टोरेंट वालों की संघों द्वारा किए गए केस पर किया। केस में मांग की गयी थी कि चूंकि‍ सरकार ने उनकी बात सुने बिना ये फैसला लागू किया है इसलिए इस फैसले को रद्द किया जाए. यही नहीं, उपरोक्त न्यायपीठ ने सितम्बर 2016 में न्यूनतम मजदूरी पर बनाये गए एडवाइजरी पैनल के नोटिफिकेशन को भी प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध और बिना पर्याप्त दस्तावेज़ के बताते हुए रद्द कर दिया है।

गौरतलब है कि दिल्ली सरकार के मजदूरी बढ़ाने के फैसले को पहले पूर्व गवर्नर नजीब जंग ने भी रोका था और फिर काफी जद्दोजेहद के बाद दिल्ली सरकार ने मार्च 2017 में अकुशल, अर्ध कुशल और कुशल श्रमिकों की मजदूरी पहले के मुकाबले करीबन 40 प्रतिशत बढाई थी। बढ़ी हई दरों के बाद मजदूरी कुछ इस प्रकार थी

मजदूर श्रेणी बढ़ोत्तरी से पहले प्रतिमाह मजदूरी बढ़ोत्तरी के बाद प्रतिमाह मजदूरी

अकुशल मजदूर Rs.9724 Rs.13950

अर्ध कुशल मजदूर Rs.10764 Rs.14698

कुशल मजदूर Rs. 11830 Rs.16182

दिल्ली सरकार ने उपरोक्त राशि किस हिसाब से तय की यह तो पता नहीं, लेकिन भारत में 1948 में एक ब्रिटिश पोषण विशेषज्ञ Mr Wallace R Ayckroyd ने एक भारतीय मजदूर की खाद्य सम्बन्धी जरूरतों को 2700 कैलोरी प्रतिदिन पर (जिसमें 65 ग्राम प्रोटीन और 45 से 60 ग्राम) आँका था।

1957 में इंडियन लेबर कांफ्रेंस ने इस मानदंड को न्यूनतम मजदूरी तय करते समय स्वीकार किया और उसकी सिफारिशों के अनुसार एक काम करने वाले व्यक्ति को कम से कम इतनी मजदूरी तो मिलनी ही चाहिए की वो 3 उपभोग इकाइयों के परिवार का भरण पोषण कर सके।

यह इस मान्यता पर आधारित है कि औसत परिवार संख्या 4 की है, यानी की 2 व्यस्क और 2 बच्चे। प्रति परिवार 72 गज प्रतिवर्ष कपड़ा मिल सके, सरकार की औद्योगिक आवास योजना के तहत प्रदान किए गए न्यूनतम क्षेत्र का मकान किराये पर मिल सके तथा इस पर 20% खर्च के रूप में ईंधन, प्रकाश और अन्य विविध वस्तुओं के लिए मिल सके। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने (Unichoy vs State of Kerala in 1961 and Reptakos Brett Vs Workmen case in 1991) बच्चों की शिक्षा, चिकित्सा उपचार, मनोरंजन, त्यौहारों और समारोहों का खर्च शामिल करने के लिए उपरोक्त मजदूरी में 25% और जोड़ने का फैसला दिया।

अर्थशास्त्रियों के मुताबिक उपरोक्त सभी मदों को शामिल करने पर आज की कीमतों के हिसाब से मजदूर को कम से कम 26000 रुपये प्रतिमाह वेतन मिलना चाहिए। सातवें वेतन आयोग ने भी उपरोक्त आधार को स्वीकार करते हुए 1 जनवरी 2016 के लिए न्यूनतम मजदूरी 18000 रुपये महीना तय की।

वास्तव में यह राशि ज्यादा बनती थी, पर आयोग ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों को अन्य भत्ते भी मिलेंगे जैसे शिक्षा भत्ता, यात्रा भत्ता, परिवहन भत्ता आदि आदि। इसलिए इस राशि को 18000 रुपये महीना ही रखा। यह भी ध्यान रहे की सरकारी कर्मचारियों को महंगाई के लिए महंगाई भत्ता भी दिया जाता है। यह भत्ता, 1 जून 2018 से, 1 जनवरी 2016 के तय वेतन का 7 प्रतिशत है। अर्थात सातवें वेतन आयोग के अनुसार, न्यूनतम मजदूरी, यदि विभिन्न भत्तों को छोड़ भी दिया जाये तो, 19260 रुपये महीना बनती है।

यह 7वें पे कमीशन द्वारा न्यूनतम मजदूरी, हाईकोर्ट के जजों समेत सभी सरकारी कर्मचारियों के ताज़ा वेतन का आधार है। बड़ी अजीब बात है की जो न्याय के कर्णधार पे कमीशन द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन के आधार अपना बढ़ा हुआ वेतन उठा रहे हैं, उन्हें दिल्ली सरकार द्वारा उससे कम निर्धारित मजदूरी का फैसला भी संविधान के विरुद्ध लगता है।

बहुत पहले निशांत नाट्य मंच द्वारा गया जाने वाला, बेर्टोल्ट ब्रेख्त लिखित गीत याद आता है, उसके कुछ शब्द यूँ हैं :

वो सब कुछ करने को तैयार

सभी अफसर उनके

जेल और सुधार- घर उनके

सभी दफ्तर उनके

वो सब कुछ ...

कानूनी किताबें उनकी

कारखाने हथियारों के

पादरी प्रोफ़ेसर उनके

जज और जेलर तक उनके

सभी अफसर उनके

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