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जिंदा बच्चे को कफन में लपेटने वाले मैक्स के डॉक्टरों को मेडिकल काउंसिल ने दी क्लीनचिट

Janjwar Team
8 May 2018 6:58 PM GMT
जिंदा बच्चे को कफन में लपेटने वाले मैक्स के डॉक्टरों को मेडिकल काउंसिल ने दी क्लीनचिट
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कहा जीवित बच्चे को मृत घोषित करने में मैक्स के डॉक्टरों की नहीं थी कोई गलती

दिल्ली, जनज्वार। दिल्ली मेडिकल काउंसिल ने दिल्ली के शालीमार बाग स्थित उस मैक्स अस्पताल के डॉक्टरों को क्लीनचिट दे दी है, जिन्होंने जिंदा बच्चे को कफन में लपेट मृत बता दिया था। दिल्ली मेडिकल काउंसिल ने अब यह जांच यहीं पर समाप्त कर दी है और डॉक्टर फिर से पहले की तरह काम करने लगेंगे।

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सवाल है कि दिल्ली मेडिकल काउंसिल ने इन डॉक्टरों को किस आधार पर क्लीनचिट दी है, क्योंकि घोर लापरवाही बरतते हुए डॉक्टरों ने न सिर्फ जिंदा बच्चे को कफन में लपेट दिया था, बल्कि अपनी गलती भी नहीं स्वीकारी थी। अस्पताल प्रबंधन ने कहा था कि हम इस घटना से खुद शॉक्ड हैं। आखिर क्या हुआ उस शॉक का।

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गौरतलब है कि जब इस मामले की जांच मेडिकल काउंसिल को सौंपी गई थी, तभी सवाल उठने शुरू हो गए थे कि वह इस मामले में फेयर नहीं रहेगा और डॉक्टरों के पक्ष में फैसला देगा और हुआ भी ऐसा ही।

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घटनाक्रम के मुताबिक राजधानी दिल्ली स्थित शालीमार बाग के मैक्स अस्पताल के डॉक्टरों ने पिछले साल नवंबर में 22 हफ्ते में पैदा हुए दो जुड़वा नवजातों को मृत घोषित कर परिजनों को सौंप दिया था। परिजन जब बच्चों के शव लेकर अंतिम संस्कार के लिए जा रहे थे तो उन्हें कुछ हरकत महसूस हुई। देखा तो उनमें से एक बच्चे की सांस चल रही थी। तुरंत बच्चे को पास के ही एक नर्सिंग होम में ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने जांच कर बताया कि बच्चा स्वस्थ है। हालांकि इलाज के दौरान उस बच्चे की भी मौत हो गई थी।

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इस मामले में देश के नामी—गिरामी अस्पताल द्वारा बरती गई इस भारी और अक्षम्य गलती पर पुलिस ने बजाय प्राथमिकी दर्ज करने के इसे दिल्ली मेडिकल काउंसिल की लीगल सेल में डाल दिया। बच्चे के परिजनों ने मैक्स में पहुंचकर खूब हंगामा किया था, और अब मेडिकल काउंसिल ने वही किया जिसकी आशंका व्यक्त की जा रही थी।

अस्पताल प्रबंधन ने अपना कॉलर बचाने के लिए कहा था कि हम खुद इस घटना से सदमे में हैं। हमने जिंदा बच्चे को मृत घोषित करने वाले डॉक्टर को मैक्स छुट्टी पर भेज चुका है।

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नागलोई की वर्षा नाम की महिला को 28 नवंबर की दोपहर को मैक्स अस्पताल में भर्ती कराया था। 30 नवम्बर की सुबह 7.30 बजे उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया और 7.42 बजे एक बेटी को। जन्म के कुछ ही देर बाद डॉक्टर ने कहा कि बच्ची की जन्म के बाद ही मौत हो गई, जबकि नवजात बच्चे का इलाज चल रहा था। मगर एक घंटे वेंटीलेटर पर रखने के बाद डॉक्टरों ने दूसरे जीवित बच्चे के बारे में भी कहा कि वह मर चुका है।

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इसके बाद अस्पताल ने दोनों बच्चों के मृत शरीर को कागज और कपड़े में लपेटने के बाद टेप लगा परिजनों को दे दिया। दोनों बच्चों के मृत शरीर को वर्षा के पिता ने पकड़ा हुआ था। उन्हें रास्ते में एक पार्सल में कुछ हरकत महसूस हुई, उन्होंने कपड़ा फाड़कर देखा तो बच्चा सांस ले रहा था। वे तुरंत उसे एक नजदीकी अस्पताल गये, जहां उसका इलाज चल रहा है।

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जब इस मामले ने तूल पकड़ा तो केंद्र और राज्य सरकार दोनों जांच की बात कहने लगे। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने दिल्ली सरकार को मैक्स मामले की जाँच करने के आदेश दिए। केंद्रीय स्वास्थय मंत्री जेपी नड्डा ने मैक्स अस्पताल की इस लापरवाही को गंभीरता से लेते हुए तुरंत ही स्वास्थ्य सचिव से बात कर इसकी जांच करने को कहा। पर हुआ वही ढाक के तीन पात। डॉक्टर निर्दोष साबित हो गए और दोषी मां बाप, क्योंकि उन्होंने एक नामी अस्पताल के डॉक्टरों पर भरोसा किया।

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इससे और कुछ हो न हो, निजी अस्पतालों के हौसले जरूर बुलंद होंगे कि हम कोई भी जुर्म करेंगे तो बच निकलेंगे, क्योंकि मेडिकल काउंसिल बैठा ही हमें बचाने के लिए है।

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