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राजनीति

डीएसपी को मार डाला युवाओं की उन्मादी भीड़ ने

Janjwar Team
23 Jun 2017 10:28 AM GMT
डीएसपी को मार डाला युवाओं की उन्मादी भीड़ ने
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डीएसपी की हत्या के आद आखिरी यात्रा में हजारों वह कश्मीरी नहीं गए जो आतंकियों के जनाजों में जाते हैं। मुख्यमंत्री तक नहीं गयीं। स्थानीय पत्रकारों ने किनारा कसा। केवल वर्दी पहने चंद अधिकारी शामिल हुए...

जनज्वार, दिल्ली। श्रीनगर के नोहट्टा इलाके में 22 जून की रात उन्मादी भीड़ ने जिस अनजान की शख्स को मार—मार के मौत के घाट उतार दिया था, उसकी पहचान एक पुलिस अधिकारी के रूप में हुई है। पुलिस अधिकारी डीएसपी मोहम्मद अयूब पंडित को उन्मादी भीड़ द्वारा उस वक्त मार डाला गया जब वह नोहट्टा इलाके में जामिया मस्जिद के पास ड्यूटी पर तैनात थे।

वारदात के वक्त जामिया मस्जिद में शब-ए-क़दर की प्रार्थना चल रही थी और उस समय मस्जिद में कश्मीर के अलगाववादी नेता मीरवाइज फारूक जामिया मस्जिद में मौजूद थे। मस्जिद वारदात से मात्र 3 सौ मीटर की दूरी पर है।

कश्मीर रीडर में छपी खबर में प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से कहा गया है कि युवाओं के समूह ने नोहट्टा में जामिया मस्जिद के बाहर ड्यूटी पर तैनात डीआईएसपी अयूब पंडित को पकड़ा और उन्हें पीटने लगा। हाथापाई के दौरान डीवाईएसपी ने अपने बचाव में गोलियां चलाई, जिसमें तीन युवा घायल हो गए। डीवाईएसपी के गोली चलाए जाने से वहशी युवाओं की भीड़ और बौखला गयी, उनकी पिस्तौल छीन ली और उन्होंने पुलिस अधिकारी को मार—मार के मौत के घाट उतार दिया।

पुलिस अधिकारी अयूब पंडित की गोली से घायल हुए युवाओं की पहचान दानिश मीर, मुदासिर अहमद और सजाद अहमद भट्ट के रूप में हुई है, जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

कश्मीर मामलों के जानकार और खुद कश्मीरी आतंकवाद के भुक्तभोगी रहे पत्रकार और लेखक राहुल पंडिता कहते हैं, 'आखिर क्या मिला मोहम्मद अयूब पंडित को। उन्मादी भीड़ ने मार डाला उस अधिकारी को जो भारत के संविधान और उसके झंडे की रखवाली कर रहा था।'

वह आगे पूछते हैं, 'उसकी आखिरी यात्रा में हजारों वह कश्मीरी नहीं गए तो आतंकियों के जनाजों में जाते हैं। मुख्यमंत्री तक नहीं गयीं। स्थानीय पत्रकारों ने किनारा कसा। केवल वर्दी पहने चंद अधिकारी शामिल हुए।'

यह सवाल बड़ा है क्योंकि भारतीय आर्मी के मुखिया जनरल रावत लगातार सैन्य तरीकों से कश्मीर समस्या के समाधान की ओर ताकत से बढ़ रहे हैं। ऐसे में सवाल यह है कि आम नौजवानों में आतंकियों के लिए बढ़ते प्रेम को कैसे खत्म किया जाएगा?

क्या गोलियों में इतनी ताकत है कि समझ और बुद्धि से वहशी होती किशोरों—युवाओं की भीड़ को नियतंत्रित किया जा सके ???

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