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समाज

कुछ दिनों ​बाद ईद है, लेकिन मैं बहुत डरी हुई हूं

Prema Negi
26 May 2019 11:22 AM GMT
कुछ दिनों ​बाद ईद है, लेकिन मैं बहुत डरी हुई हूं
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हम विभाजन के समय ही अपने वतन को छोड़कर पाकिस्तान चले जाते तो आज न हिंदुओं को हमारे नाम से डराया जाता, न हमें अपने वतन हिंदुस्तान में डर लगता...

जनज्वार। मेरा नाम रजिया (परिवर्तित नाम) है और मैं एक मुस्लिम महिला हूँ। मैं दिल्ली में महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली एक संस्था में काउंसलर का काम करती हूं। मैं उन लड़कियों-औरतों को जीवन की मुश्किल घड़ी में संघर्ष करने की कानूनी सलाह देती हूं जो परिवार, पति, पड़ोसियों और सहयोगियों से प्रताड़ित होती रहती हैं। उन्हें यह भी बताती हूं कि सबसे जरूरी व्यक्तिगत तौर पर वह सक्षम होना है, इससे आदमी बेचारा नहीं बनता और उसमें अपने अधिकारों की रक्षा करने की इच्छा​शक्ति बची रहती है।

पर इन दिनों खुद बहुत कमजोर महसूस कर रही हूं। हर वक्त ऐसा लगता है कि कहीं कोई कुछ बोल न दे, सीधे पर टोक न दे कि चुप रहो मुसलमान हो, तुम लोग ऐसे ही होते हो, मोदी जी आए तो मुस्लिम औरतों को अधिकार मिला, मदरसे की पढ़ी हो तुम क्या जाना भारत की भावना, अब मोदी जी के कामों पर बहुल लेक्चर दे रही हो, औकात में रहो, कटुओं को औकात में ला दिया मोदी ने, आदि—इत्यादि।

यह आशंका मुझे इसलिए है कि अक्सर ही सार्वजनिक स्थानों पर, कभी मुस्लिमों मर्दों-औरतों की उपस्थिति में तो कभी अनुपस्थिति, ऐसी बातें मैं सुनती रहती हूं। एक दिन मेट्रो पर सुना सारे अपराधी मुसलमान ही क्यों होते हैं? इससे पहले तक आतंकवादी सुनती थी। मैं पूरी कोशिश करती हूं कि मुसलमान जैसी न दिखूं, पर जब कुछ सुनती हूं तो डर जाती हूं। ऐसा लगता है जैसे चोरी पकड़ी गयी हो या फिर ग्लानि होती है कि क्यों छुपाती फिरती हूं अपनी पहचान।

हालांकि मेरी यह मानसिक स्थिति प्रधानमंत्री मोदी जी के आने के बाद नहीं हुई है। पिछले पांच सालों में भी नहीं हुई है, बल्कि थोड़ा-बहुत डर पहले भी था। पर पांच साल पहले तक लगता था कि किसी अनहोनी की हालत में, सांप्रदायिक-धार्मिक गुंडई की स्थितियों में फंसने पर पुलिस, समाज और पड़ोसी तो साथ खड़ा हो जाएगा, पर पांच सालों में स्थितियां बदली हैं, अब नहीं लगता कोई खड़ा होगा। रपटों में पढ़ती हूं, गौ रक्षा के नाम पर मा​र दिया गया, पीट दिया गया, दाढ़ी काट दी और मुकदमा भी उसी के खिलाफ लिखा गया तो सिहर जाती हूं।

तीन दिन पहले मैंने खबरों में आए एक वीडियो को देख रही थी जिसमें मध्य प्रदेश में कुछ गौ रक्षक गौ मांस रखने के शक के आधार पर कुछ मुस्लिम लोगों को बेहरमी से पीट रहे हैं। उनके साथ एक मुस्लिम महिला को भी पैर की जूती से पीट रहे हैं। कल ही हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने सबका साथ सबका विकास का नारा दोहराया था। मुझे पूरा भरोसा है कि वे ऐसे कृत्य करने वाले को प्रज्ञा ठाकुर की तरह कभी मुआफ़ नही करेंगे और एमपी में कांग्रेस की सरकार है कानून व्यवस्था की ज़िम्मदारी उसकी है। क्या कांग्रेस के सीएम में इतना साहस नहीं बचा है कि वे इन गौ रक्षकों के खिलाफ कार्यवाई कर सजा दें।

मैं बहुत उलझी रहती हूं इन दिनों। मैं कभी इतना राजनीति के बारे में नहीं सोचती थी जितना आजकल सोचती रहती हूं। कोई खबर आती है तो ऐसा लगता है कि फिर कोई मुसलमान किसी नाम पर बलि का बकरा बना। मैंने मोबाइल में 'न्यूज एलर्ट' के आप्शन हटा डाले।

मुझे नहीं पता कि मैं अपनी बातों को ठीक से लिख पा रही हूं या नहीं। पर मुझे इतना जरूर कहना है कि गांधी ने विभाजन के वक़्त क्यों रोक लिया हमें? क्या इसलिए कि हिन्दुस्तान की सरजमीं पर हम मुसलमान हमेशा-हमेशा के लिए दूसरे दर्जे के नागरिक बने रहें और हर वक्त हमें लोग संदेह की नजरों से देखें और हम अपनी देशभक्ति का प्रमाण देते रहें। कौन जवाब ​देगा कि वो लोग क्यों बढ़ रहे हैं हमारे देश में जो गिड़गिड़ाते हुए मुसलमानों को देखना चाहते हैं?

मैं तो किसी के दुख की बात सुन लूं तो रो पड़ती हूं, कोई मेरे सामने गिड़गिड़ाए तो गड़ ही जाउं? बड़ी बात ये कि लोग हमसे नफरत किसी दुख में नहीं खुशी में कर रहे हैं, ​हम मुसलमानों को दुबक के रहने को अपना विजय मान रहे हैं।

हमारे सबसे बड़े दोषी गांधी जी हैं...!

हम सारे मुसलमान विभाजन के वक़्त ही पाकिस्तान चले गए होते तो आज हमारे देश के बहुसंख्यक समाज हिंदुओं को हमारे नाम से डराया नहीं जाता। न ही हमें हिंदुस्तान में रहते हर पल डर के साये में रहना पड़ता कि पता नहीं कब हमारे पर गौ मांस रखने या खाने का शक करके हमें मौत के घाट उतार दिया जाए।

अभी ईद में वक़्त है और रमजान का महीना चल रहा है। मेरे मां, माटी और मानुष वाले प्रदेश बंगाल में ईद पर अन्य जानवरों के अलावा गौ वंश की भी बलि दी जाती है। ये सालों से चला आ रहा है, लेकिन इस बार मुझे अजीब सा डर सता रहा है। ये डर 23 मई को बंगाल में आये लोकसभा के दौरान हुई हिंसा और चुनाव के नतीजों के बाद बीजेपी के जीतने के बाद एक भय में बदल गया है कि इस बार हम ईद शांतिपूर्ण ढंग से मना पाएंगे या नहीं।

बंगाल में करीब 27 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। क्या इतने बड़े मुल्क के इतने बड़े प्रदेश की इतनी बड़ी आबादी के पास उसके त्योहार उसके अनुसार मनाने का अधिकार भी नहीं रह जायेगा। हमारे संविधान में सबको बराबरी का हक़ दिया है। पता नहीं इस बार मेरे परिवार और मेरा परिवार ईद का जश्न किस तरह मनाएगा। यह सब सोचकर मुझे एक अजीब सा डर सता रहा है कि हम ईद मना पाएंगे या नहीं, कोई अशांति तो नहीं होगी।

मैं बहुत डरी हुई हूं। रोज सोचती हूं कि मैं अपने परिवार को लेकर दूसरे देश में बस जाऊं, जहाँ मुझे इस बात का डर न हो कि मैंने गौ मांस खा लिया तो मुझे मार दिया जाएगा। लेकिन मुझे पता है मेरा परिवार इस देश को छोड़ कर नहीं जाएगा। हम सब इस मुल्क को अपना मानते हैं। जब सुनती हूं कि पाकिस्तान चले जाओ तो सोचती हूं मुंह तोड़ दूं। पर कर क्या सकती हूं।

मैंने ये बातें दुख और भय के बीच कहीं हैं। अगर आप संदेश ये मोदी जी को पहुंचा सकते हैं तो कह दें, हमें पाकिस्तानी सुनना या पाकिस्तान जाने की बात सुनने में बहुत बुरी लगती है, बहुत ही इंसल्टिंग। किसी ने अगर मुझे बोला तो मुंह तोड़ दूंगी। हमारा परिवार इस मिट्टी को अपना मानता है और मरने के बाद इसी मिट्टी में दफन होगा, जहां जिसको लिखना है लिखकर लिख ले, पर हमारी बेइज्जती न करे। हमें इस मुल्क से बहुत प्यार है तिरंगे से भी।

(ये रिपोर्ट स्वतंत्र कुमार से हुई बातचीत पर आधारित है। रजिया दिल्ली यूनिवर्सिटी, इंग्लैंड की यूनिवर्सिटी में उच्च शिक्षा हासिल करके आजकल महिला अधिकारों के लिए काम कर रही हैं।)

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