नाबालिग लड़की के गायब होने की शिकायत लेकर थाने पहुंचे परिजन तो पुलिस ने कहा पहले जमा करो 20,000 रुपये
गायब बच्ची के पिता कहते हैं शिकायत लिखवाने गये थाने तो दारोगा बोला, तेरी बेटी को खोजने में कम से कम 20,000 हजार का खर्च आयेगा, अगर तू पैसे नहीं दे सकता तो एफआईआर क्यों दर्ज कराई...
जनज्वार। उत्तर प्रदेश के कानपुर में पुलिसिया तानाशाही और मनमानी का मामला सामने आया है। 16 नवंबर से एक नाबालिक लड़की घर से गायब है, इस बात की शिकायत जब परिजनों ने पुलिस से की तो, नौबस्ता थाना के दरोगा ने कहा लड़की को ढूंढने में 15,000 से 20,000 हजार तक का खर्च आएगा। जबतक 20,000 रुपये जमा नहीं करोगे, तब तक लड़की को हम नहीं ढूंढ सकते हैं।
परिजनों का आरोप है कि पुलिस ने एक बार भी बच्ची को खोजने का प्रयास नहीं किया। उल्टा हमसे पैसा मांगा जा रहा है। हमारी बच्ची को पड़ोसियों ने ही गायब किया है। थाने में घूस नहीं दे सकते, इसलिये बच्ची को पुलिस वाले नहीं ढूंढ रहे हैं और आशंका जताने के बावजूद पड़ोसियों से भी कोई पूछताछ नहीं की जा रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' अभियान की शुरुआत की थी, लेकिन उत्तर प्रदेश में उन्हीं की पार्टी की सरकार है। ऐसे में बेटी बचाओ की बातें केवल हवा-हवाई साबित हो रही हैं। कानपुर के इस मामले ने उत्तर प्रदेश पुलिस की मंशा पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
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गौरतलब है कि पीड़ित राकेश अपनी पत्नी और बेटी के साथ कानपुर में नौबस्ता इलाके में रहते हैं। 16 नवंबर को उनकी 16 साल की बेटी गायब हो गई। इसके बाद उन्होंने बहुत ढूंढने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली। फिर 17 नवंबर को राकेश और उनकी पत्नी ने नौबस्ता थाना में एफआईआर दर्ज कराई। 17 नवंबर से अब तक राकेश रोजाना चौकी का चक्कर काट रहे हैं, लेकिन बेटी का कोई पता नहीं है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य सरकार अपने नागरिकों को कानूनी सुरक्षा देने पर केवल एक रुपये का खर्च करती है। गायब बच्ची के पिता राकेश कहते हैं, 'दरोगा सतीश चंद्र यादव ने बेटी को खोजने के लिये 20,000 की मांग की है। दरोगा साहब कहते हैं कि ‘तेरी बेटी को खोजने में कम से कम 20,000 हजार का खर्च आयेगा, अगर तू पैसे नहीं दे सकता तो एफआईआर क्यों दर्ज कराई’।
इस पूरी घटना को जानने के लिये जनज्वार ने कानपुर के नौबस्ता थाना के पुलिस अधीक्षक आशीष शुक्ला से बात की। उनका कहना था कि इस खबर की जानकारी मुझे अखबर के माध्यम से हुई। मैंने जब आरोपी दारोगा सतीश चंद्र यादव को बुलाया और उनसे पूछा कि क्या इस तरह की घटना हुई है तो सतीश चंद्र का साफ तौर पर कहना था कि मुझे पता ही नहीं है कि लड़की कहां है, तो मैं किस बात के पैसे मांगूगा। इस घटना की जानकारी जांच उच्च अधिकारियों द्वारा की जा रही है, जो भी दोषी पाया जायेगा उन पर सख्त कार्यवाही की जाएगी।'
पुलिस अधीक्षक आशीष शुक्ला ने कहा कि, 'पुलिस होने के नाते हमारी ये जिम्मेदारी बनती है कि हम लोगों की बिना शर्त मदद करें। हम प्रयास कर रहे हैं। लड़की को जल्द ढूंढने की कोशिश करेंगे।'
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वहीं दूसरी तरफ लापता बच्ची के पिता राकेश रोजाना पुलिस स्टेशन के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उनकी बेटी कहां है ये किसी को पता नहीं है। जब भी पुलिस वाले से बेटी के बारे में पूछते हैं, तो दरोगा सतीश चंद्र यादव 20,000 की मांग करते हैं। गरीब होने के नाते राकेश के पास इतने पैसे नहीं है। मामले को दस दिन बीत जाने के बाद नाबालिग का कोई पता नहीं है। इसकी शिकायत परिजनों ने उच्च अधिकारियों की है।
राकेश कहते हैं, 'मेरी बेटी को किसी दबंग ने अगवा कर लिया है, इसीलिये पुलिस वाले मेरी बेटी को नहीं खोज रहे और बहाना बना रहे हैं, मुझसे पैसे की मांग कर रहे हैं। ऐसा पुलिस तब कर रही है जबकि मुझे अपने पड़ोसियों पर शक है कि उन्होंने ही मेरी बेटी को गायब किया है।
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केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2015 से 2017 के बीच यानी महज तीन साल में पूर्वोत्तर इलाके के आठ राज्यों के लगभग 28 हजार लोग लापता हो गए। इनमें से 19,344 लोग अकेले असम के हैं। इसमें 2,613 केवल महिलाएं हैं।