सनी लियोनी मां बनने लायक नहीं तो क्या सिर्फ काम पिपासा को तृप्त करने लायक हैं
सूरज कुमार बौद्ध
पुरुषवादी समाज महिलाओं के प्रति अपनी संकुचित मानसिकता को बदलने का नाम नहीं ले रहा। महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक माना जाना तथा उनकी आजादी पर पाबंदी पुरुषवादी समाज का प्रमुख अंश है। अब सवाल यह होता है कि समाज कब मानेगा कि एक औरत को वेश्या बनने पर मजबूर करने की असली वजह पुरुषवादी समाज ही है।
हाल में ही एक खबर आई है कि पोर्न स्टार सनी लियोनी ने 21 महीने की एक बच्ची को गोद लिया है। यकीनन सनी लियोनी का यह कदम काबिलेतारीफ़ है। लेकिन समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो सनी लियोनी के इस अच्छे कदम को गलत ठहरा रहे हैं। फेसबुक पर तो मनुवाद की बीमारी से ग्रस्त कुछ लोग 21 महीने के बच्ची को "भविष्य की सनी लियोनी या भविष्य की वेश्या" करार दे रहे हैं।
एक बंदा टिप्पणी करता है कि सनी लियोनी को कोई हक नहीं है किसी बच्चे को गोद लेने का तो दूसरा और भी आगे बढ़ते हुए टिप्पणी करता है की सनी लियोनी मां बनने लायक नहीं है। शर्म आती है ऐसे लोगों की सोच समझ पर। आखिर उनकी नजर में सनी लियोनी मां बनने लायक नहीं है तो क्या सनी लियोनी केवल इनकी काम पिपासा को तृप्त करने लायक है?
बच्ची के गोद लिए जाने पर सनी लियोनी कहती हैं कि "सामान्यतः एक बच्चे के लिए एक मां को 9 महीने का इंतजार करना पड़ता है, लेकिन मैंने इस बच्ची के लिए 21 महीने का इंतजार किया है। हमने बच्ची को नहीं बल्कि बच्ची ने हमें मां-बाप के रुप में चुना है।"
बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर बिना किसी भेदभाव के देश की सभी महिलाओं के मान सम्मान और स्वाभिमान की लड़ाई लड़कर उन्हें बराबरी का हक दिलवाया। आज यह आंबेडकर के संविधान और हिंदू कोड बिल का वर्तमान कानूनी रूप हिंदू लॉ ही है, जिसकी बदौलत एक महिला पोर्न स्टार को गोद लेने का अधिकार मिला हुआ है वरना महिलाओं को भोग उपभोग की सामग्री मानने वाला यह समाज सनी लियोनी को कैसे गोद लेने देता। यही वजह है कि बाबासाहेब आंबेडकर कहा करते थे कि उनकी संविधान निर्माण करने से अधिक रुचि हिंदू कोड बिल पारित कराने में है।
सनी लियोनी की मां बहन गाली देने वाले यह मनुवादी लोग तथागत गौतम बुद्ध से भी कुछ नहीं सीख पाते हैं। एक बार एक स्त्री तथागत गौतम बुद्ध के व्यक्तित्व एवं उनके सिद्धांतों से प्रभावित होकर अपने घर भोजन ग्रहण करने तथा भिक्षा ग्रहण करने के लिए आमंत्रित करती है। तथागत गौतम बुद्ध द्वारा निमंत्रण स्वीकार करने पर सारे गांव वाले तथागत गौतम बुद्ध के पास आकर कहने लगते हैं कि हे तथागत! उस स्त्री के हाथ का भोजन आप ग्रहण मत करें। वह स्त्री चरित्रहीन है, वेश्या है।
इस पर तथागत गौतम बुद्ध कहते हैं "स्वयं चरित्रहीन कैसे हो सकती है जब तक इस गांव के पुरुष चरित्रहीन न हों। अगर गांव के सभी पुरुष अच्छे होते तो यह औरत ऐसी न होती। इसलिए इसके चरित्र के लिए यहां के पुरुष जिम्मेदार हैं।" महिलाओं पर हमेशा उंगली उठाने वाले अपने चरित्र में झांककर क्यों नहीं देखते हैं।
यहां के राजनेता तो सारी हदें पार करके बलात्कार की पीड़िता पर भी कटाक्ष करने से बाज नहीं आते हैं। गौरतलब है कि निर्भया गैंग रेप कांड पर वर्तमान में बलात्कार का आरोपी जेल की हवा खा रहा आसाराम ने बोला था कि "केवल पांच-छह लोग ही अपराधी नहीं हैं। बलात्कार की शिकार हुई बिटिया भी उतनी ही दोषी है जितने बलात्कारी। वह अपराधियों को भाई कहकर पुकार सकती थी। इससे उसकी इज्जत और जान भी बच सकती थी। क्या ताली एक हाथ से बज सकती है, मुझे तो ऐसा नहीं लगता.''
कभी कोई राजनेता बोलता है कि बलात्कार की घटनाएं इसलिए होती हैं क्योंकि महिलाएं मिनी स्कर्ट पहनती हैं साड़ी नहीं पहनती। साहेब, एक मां 5 साल के बच्ची को साड़ी कैसे पहनाए?
असल में गलती उनकी नहीं है गलती उन धर्मशास्त्रों की है जो महिलाओं और शूद्रों को ढोल, गंवार, पशु के श्रेणी में रखता है। गलती उन शोषणकारी ग्रंथों की है जो हमे सिखाती है कि “पिता रक्षति कुमारी भ्राता रक्षति यौवने पुत्रा तो स्थविरे तस्मत न सती स्वातान्त्रयम अर्हति” (मनु स्मृति अध्याय 9 पद संख्या 3)।
खैर आज हम लोकतंत्र के युग में जी रहे हैं। देश किसी गीता कुरान पुराण या मनुस्मृति से न चलकर बल्कि बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के संविधान से चलता है। बाबासाहेब आंबेडकर कहते हैं कि मैं किसी समाज का विकास इस मापदंड से मापता हूं कि उस समाज में महिलाओं ने कितनी प्रगति हासिल की है। इसलिए सभी देशवासियों को महिलाओं के प्रति संकुचित मानसिकता त्यागकर समता स्वतंत्रता बंधुता न्याय पर आधारित समतामूलक समाज की अवधारणा पर जोर देना चाहिए।
(सूरज कुमार बौद्ध भारतीय मूलनिवासी संगठन के राष्ट्रीय महासचिव हैं।)