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आंदोलन

गन्ना उत्पादक किसानों पर पड़ी बड़ी मार, खट्टर सरकार का दाम बढ़ाने से साफ इंकार

Prema Negi
28 Feb 2020 12:16 PM GMT
गन्ना उत्पादक किसानों पर पड़ी बड़ी मार, खट्टर सरकार का दाम बढ़ाने से साफ इंकार
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हरियाणा के ​गन्ना उत्पादक किसानों की हालत है बहुत खराब, उन्हें यदि रेट अच्छा नहीं मिलेगा तो वह आर्थिक तौर पर हो जायेंगे बदहाल, किसान लगातार डूब रहे हैं कर्ज में...

जनज्वार ब्यूरो, चंडीगढ़। हरियाणा में गन्ना उत्पादक किसान सरकार की अनेदखी का शिकार हो रहे हैं। इस बार सरकार ने गन्ने के दाम बढ़ाने से साफ इंकार कर दिया है। खेती किसानी में पहले ही आर्थिक बदहाली झेल रहे किसानों के लिए सरकार का यह निर्णय खासा निराशाजनक है। किसानों ने बताया कि यदि गन्ने का दाम नहीं बढ़ा तो इस बार उन्हें नुकसान उठाना पड़ेगा।

युवा किसान संघ के प्रधान प्रमोद चौहान ने बताया कि हर चीज के दाम बढ़ रहे हैं। खेती की लागत तेजी से बढ़ी है। ऐसे में गन्ने के दाम न बढ़ाना किसी भी तरह से तर्कसंगत नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि सरकार दाम नहीं बढ़ाएगी ता किसानों को सड़क पर उतरना पड़ सकता है। इस बार हरियाणा में गन्ने के दाम 340 रुपए प्रति क्विंटल है। किसानों की मांग है कि इसे बढ़ाया जाना चाहिए।

स मिल में भी पिराई 12 दिसंबर से शुरू हो गयी थी। भारतीय किसान यूनियन रेट बढ़ाने के मुद्दे लगातार उठा रही है। इसके लिए केन कमिश्नर समेत अन्य संबंधी अधिकारियों से भी मिल चुकी है। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव संजीव कौशल ने बताया कि इस संबंध में निर्णय लिया जा चुका है। संबंधित निर्देश भी जारी किए जा चुके हैं।

नके अनुसार हरियाणा में गन्ने का रेट रीजन ही नहीं, बल्कि देश में सबसे अधिक है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार की ओर से गन्ने की एफआरपी (फेयर एंड रेमोनरेटिव प्राइज) 275 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित की गई है, जबकि हरियाणा में विभिन्न कैटेगरी में गन्ने का ये रेट 330 (पछेती), 335 (मध्यम) व 340 (अगेती) रुपये प्रति क्विंटल है, जो कि सर्वाधिक है। उनके अनुसार गन्ना की पेमेंट भी किसानों को समय पर मिले, इसे लेकर भी इस बार सरकार बहुत ज्यादा गंभीर है।

जट सत्र में किसानों को उम्मीद थी कि सरकार उनकी बात सुन लेगी, इसलिए उन्होंने एक बार फिर से रेट बढ़ाने की मांग उठायी। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर जो आज अपना पहला बजट पेश करने जा रहे हैं, ने स्प्ष्ट कर दिया कि इस बार गन्ने के दाम नहीं बढ़ेंगे। उनके इस निर्णय से किसानों में खासी निराशा है, क्योंकि उम्मीद थी कि बजट में शायद गन्ने के दाम बढ़ाने के अपने निर्णय पर सरकार कुछ विचार कर लें। लेकिन अब उनकी यह मांग पूरी होती नजर नहीं आ रही है।

इंडियन नेशनल लोकदल के नेता अभय चौटाला ने कहा कि इस सरकार की करनी और कथनी में अंतर है। सत्ता से बाहर बीजेपी किसानों की वोट हासिल करने के लिए तरह तरह के वायदे करती थी, अब जब वायदे पूरे करने का मौका आया तो अड़ियल रवैया अपनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि प्रदेश का किसान इस वक्त आर्थिक बदहाली के दौर से गुजर रहा है। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह उचित कदम उठाए, लेकिन जिस तरह से मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर बयानबाजी कर रहे हैं, इससे नहीं लगता कि सरकार को किसानों की कोई चिंता है। उन्होंने कहा कि इनेलो विधानसभा में इस मामले को उठाएगी।

विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि इस सरकार में किसी की सुनवाई नहीं हो रही है। कहां तो किसानों को स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक फसलों के दाम देने का भाजपा के नेता वायदा करते थे, अब गन्ने के दाम भी नहीं बढ़ा रहे हैं। उन्होंने कहा कि गन्ने का उत्पादन तेजी से कम हो रहा है। गन्ने की खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा हो रही है। ऐसे में यदि सरकार ने वाजिब दाम नहीं दिया तो किसान तो बर्बाद ही हो जाएग। पूर्व मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि इस सरकार को समाज के किसी भी वर्ग की चिंता ही नहीं है। यही वजह है कि किसान विरोधी निर्णय लगातार लिए जा रहे हैं।

दूसरी ओर भारतीय किसान यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष रत्न मान ने कहा कि उनकी मांग है कि सरकार गन्ने के दाम 400 रुपए प्रति क्विंटल घोषित करें। यदि ऐसा नहीं होता तो उन्हें आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ेगा। इस वक्त गन्ना उत्पादक किसानों की हालत बहुत ही खराब है। उन्हें यदि रेट अच्छा नहीं मिलेगा तो वह आर्थिक तौर पर बदहाल जो जाएगा। किसान लगातार कर्ज में डूब रहा है। ऐसे में उसे अपनी फसल का वाजिब दाम चाहिए। उन्होंने कहा कि इस बारे में प्रदेश भर के किसानों की दो बार बैठक हो चुकी है। बजट तक हम देख रहे हैं। यदि सरकार ने बजट में दाम बढ़ाने की ओर ध्यान नहीं दिया तो उन्हें आंदोलन का रास्ता अपना पड़ सकता है।

किसानों ने बताया कि दो साल से भाजपा सरकार में गन्ने के दाम नहीं बढ़ाए गए हैं। गन्ने की उत्पादन लागत बढ़ रही है। यदि सरकार इस दिशा में जल्दी ही सकारात्मक कदम नहीं उठाती तो उनके सामने गन्ने की खेती छोड़ने के सिवाय कोई चारा नहीं रह जाएगा। उन्होंने सरकार से मांग की कि सरकार उनकी मांगों पर विचार कर इस पर सकारात्मक निर्णय लें।

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