मादी शर्मा और फेक वेबसाइट के सहारे मोदी सरकार की विदेशों में चमकती छवि का क्या है कनेक्शन
दुनिया के 65 देशों से 265 फेक वेबसाइटों के माध्यम से भारत के समर्थन और पाकिस्तान के विरोध में किया जा रहा दुष्प्रचार, सभी वेबसाइटों का संचालन कर रही एक भारतीय कंपनी 'श्रीवास्तव ग्रुप' और इसी ग्रुप से संबंध था मादी शर्मा से, जिनका नाम पिछले दिनों यूरोपियन पार्लियामेंट के सदस्यों के कश्मीर दौरे के समय आया था सामने....
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
जब देशों की सरकारें अपनी जनता के साथ-साथ दुनिया का सही में भला करतीं हैं तब उन्हें किसी प्रचार तंत्र की जरूरत नहीं पड़ती। दूसरी तरफ जब सरकारें अपनी ही जनता को लूटती हैं और पूरी दुनिया पर बोझ बन जातीं हैं तब एक सशक्त लेकिन झूठे प्रचार तंत्र की जरूरत पड़ती है, जिस पर जनता से उगाही किये गए पैसे को लुटाया जाता है।
कुछ समय पहले ही यूरोपियन पार्लियामेंट के कुछ सदस्य, जो घोषित तौर पर मुस्लिम विरोधी थे, कश्मीर के दौरे पर भारत सरकार की निगरानी में गए थे, पर भारत सरकार ने बताया कि यह सरकारी यात्रा नहीं थी। हमारे प्रधानमंत्री जी ऐसी तथाकथित गैर-सरकारी यात्रा पर आये सभी सदस्यों से मिलते रहे और साथ में फोटो खिंचवाते रहे।
जैसा कि सबको पता था कि इस प्रायोजित यात्रा का उद्देश्य क्या था, वैसा ही अंत भी हुआ।इन सदस्यों को उस समय भी कश्मीर में सब कुछ सामान्य लगा था, जो कश्मीर आज तक बंदी झेल रहा है और कब तक ऐसी स्थिति रहेगी किसी को नहीं पता। कश्मीर की स्थिति सामान्य बताने वाले या तो ये सदस्य रहें हैं या फिर हमारे देश के गृहमंत्री।
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विदेशों में अपनी छवि चमकाने की और पाकिस्तान की छवि बिगाड़ने की हमारी सरकार की यही एक पहल नहीं है, यह तो बस एक छोटा नमूना था। ब्रुसेल्स स्थित एक गैर-सरकारी संगठन, ईयू डिसइन्फो लैब, जो फेक वेबसाइटों और दुष्प्रचार फैलाने वाले वेबसाइटों पर काम करता है, कहता है ज्ञात जानकारियों के अनुसार इस समय दुनिया के 65 देशों से, जिनमें से अधिकतर यूरोप में हैं, 265 फेक वेबसाइटों के माध्यम से भारत के समर्थन में और पाकिस्तान के विरोध में दुष्प्रचार फैलाया जा रहा है। इन सभी दुष्प्रचार वाली वेबसाइटों का संचालन केवल एक भारतीय कंपनी 'श्रीवास्तव ग्रुप' द्वारा किया जा रहा है। मादी शर्मा नामक जिस ब्रिटिश महिला का नाम यूरोपियन पार्लियामेंट के सदस्यों के कश्मीर दौरे के समय खूब उछला था, उनका सम्बन्ध भी इसी श्रीवास्तव ग्रुप से था।
ईयू डिसइन्फो लैब के अनुसार सबकुछ यहीं तक सीमित नहीं है बल्कि यह काम यूरोप में चल रहे अनेक गैर-सरकारी संगठनों के मदद से भी किया जा रहा है। इन फेक वेबसाइटों का उद्देश्य यूरोप में और विशेष तौर पर इन देशों के संसद सदस्यों और यूरोपियन पार्लियामेंट के सदस्यों के बीच भारत की छवि सुधारने के साथ-साथ पाकिस्तान की छवि बिगाड़ना है। इसमें निकले सरासर झूठे समाचारों से प्रभावित होकर यूरोपियन पार्लियामेंट के कुछ सदस्य तो इन फेक वेबसाइटों पर अपने लेख और विचार भी लिखने लगे हैं।
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श्रीवास्तव ग्रुप की वेबसाइट के अनुसार यह कंपनी प्राकृतिक संसाधनों, स्वच्छ ऊर्जा, एयरस्पेस, कंसल्टिंग सर्विसेज, स्वास्थ्य, प्रिंट मीडिया और प्रकाशन का काम करती है। पर एक पत्रिका न्यू देल्ही टाइम्स के अलावा इसका कोई भी काम नहीं दिखता। इसी तरह मादी शर्मा भी अपने आप को बड़ा उद्योगपति बताती हैं, पर ब्रिटेन के केवल एक उद्योग से उनका नाम जुदा है और वह उद्योग कभी चला ही नहीं। ईयू डिसइन्फो लैब के अनुसार इस बात के पुख्ता सबूत नहीं हैं कि श्रीवास्तव ग्रुप का भारत सरकार से कोई सम्बन्ध भी है। पर, कोई एक ग्रुप बिना किसी सरकारी सहायता के इतने बड़े फेक वेबसाइट और एनजीओ का तंत्र देश की भ्रामक खबरें फैलाने और पड़ोसी देश को बदनाम करने के लिए क्यों चलाएगा, यह बात सारे लोग समझ सकते हैं।
संयुक्त राष्ट्र के सामने फ्री बलोचिस्तान का प्रदर्शन और यूरोप में चल रहे संगठन, फ्रेंड्स ऑफ़ पाकिस्तानी माइनॉरिटीज जैसे समूहों को आगे बढाने में भी इसी श्रीवास्तव ग्रुप का योगदान है। इनकी वेबसाइट के नाम अधिकतर उन समाचार पत्रों पर आधारित हैं जो प्रसिद्ध थे या फिर आज भी हैं, जिससे इनके सही होने का भ्रम बना रहे। एक वेबसाइट का नाम वर्ष 1922 में बंद हो चुके समाचारपत्र मानचेस्टर टाइम्स के नाम पर है। अमेरिका के एक प्रतिष्ठित समाचारपत्र लोस एंजेल्स टाइम्स, से मिलता जुलता नाम टाइम्स ऑफ़ लोस ऐन्जेल्स दूसरे वेबसाइट का है। एक वेबसाइट, ईपी टुडे को ब्रुसेल्स स्थित यूरोपियन पार्लियामेंट की ऑनलाइन मैगज़ीन बताया गया है।
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अब तो भारत सरकार विदेशों में बसे कश्मीरी समुदाय और सिख समुदाय की जासूसी भी सरकारी तौर पर करने लगी है।हाल में ही जर्मनी के फ़्रंकफ़र्ट शहर में एक भारतीय दम्पति को जासूसी और लोगों की निजता हनन के लिए सजा सुनाई गयी है। आरोपी मनमोहन एस और कंवलजीत के ने तहकीकात के समय बताया कि वे रिसर्च एंड एनालिसिस (रा) के इंडियन फॉरेन इंटेलिजेंस सर्विसेज की तरफ से जर्मनी में बसे कश्मीरी और सिख समुदायों की जासूसी कर रहे थे, और इन्हें इस काम के लिए हरेक महीने सरकार द्वारा लगभग 16000 रुपये दिए जाते थे।
ये सभी खबरें इतना तो बताती ही हैं कि इस बार सरकार केवल झूठ तंत्र के सहारे ही अपनी छवि चमकाने में जुटी है, पर इस छवि से देश पर क्या असर होगा यह तो समय ही बतायेगा। देश में तो एक समस्या से ध्यान भटकाने के लिए, सरकार स्वयं दूसरी समस्या कड़ी कर देती है। जब आर्थिक मोर्चे पर नाकामियाँ उजागर होने लगीं, तब नागरिकता संशोधन क़ानून आ गया, इसपर देश भर में हंगामे के बीच थल सेना के प्रमुख ने एलओसी पर स्थिति गंभीर होने की चेतावनी दे दी और इसका मतलब कुछ दिनों में ही सामने आ जाएगाl