Begin typing your search above and press return to search.
जनज्वार विशेष

अतिक्रमण और अवैध निर्माण को संरक्षण देते अधिकारियों को दंडित करने का कानून, मगर 97 से अब तक एक पर भी नहीं हुई कार्रवाई

Prema Negi
28 Nov 2019 5:46 AM GMT
अतिक्रमण और अवैध निर्माण को संरक्षण देते अधिकारियों को दंडित करने का कानून, मगर 97 से अब तक एक पर भी नहीं हुई कार्रवाई
x

यूपी में स्टेटलैंड पर अतिक्रमण, अवैध निर्माण घोटाला है अरबों-खरबों रुपये का, जो वोट की राजनीति और भ्रष्ट शासन की नाजायज औलाद बनकर फल-फूल रहा है, स्टेट लैंड की नहीं हो सकती रजिस्ट्री, मगर प्रयागराज समेत यूपी के तमाम शहरों में स्टेट लैंड की लाखों एकड़ भूमि को भूमाफियाओं ने 10 रुपये से लेकर 100 रुपये के स्टाम्प पर बेच दिया है लोगों को...

जेपी सिंह की रिपोर्ट

क्या आप जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में अतिक्रमणों को रोकने में विफल विकास प्राधिकरणों के अधिकारियों को एक महीने के सश्रम कारावास या दस हजार रुपये जुर्माने या दोनों से दंडित करने का प्रावधान वर्ष 1997 से लागू है, लेकिन आज तक पूरे प्रदेश में लाखों एकड़ शहरी भूमि पर अतिक्रमण करके किये गये अवैध निर्माण के लिए दोषी एक भी अधिकारी को दंडित नहीं किया गया है। यहाँ तक कि सीऐजी (कैग)ऑडिट में भी इस पर आपति की गयी है, लेकिन प्रदेश शासन ने कोई कार्रवाई नहीं की है।

लाहाबाद उच्च न्यायालय के जस्टिस पी एस बघेल और जस्टिस पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने याचिका संख्या 4633/2019,राजेन्द्र प्रसाद अरोरा एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य में दिए गये अपने निर्णय के पृष्ठ संख्या 22 के दूसरे पैरे में कहा है कि उप्र नगर नियोजन और विकास अधिनियम 1973 की धारा 26 (घ) में प्रावधान है कि जो कोई इस अधिनियम के अन्तर्गत अतिक्रमण अथवा अवरोध को रोकने अथवा मना करने के विशेष कर्त्तव्य के अधीन होते हुए ऐसे अतिक्रमण अथवा अवरोध को रोकने अथवा मना करने में जान-बूझकर अथवा आवश्यपूर्वक उपेक्षा करता है अथवा जान-बूझकर लोप करता है, उसको साधारण कारावास जो एक माह तक का हो सकता है अथवा जुर्माना जो 10,000 तक का हो सकता है अथवा दोनों दंडों का प्रावधान है।

खंडपीठ ने कहा है कि 1997 के अधिनियम नंबर 3 अधिनियम की धारा 26-डी अतिक्रमण को नहीं रोकने के लिए दंड का प्रावधान करता है। यह धारा यूपी की धारा 7 द्वारा डाली गई है। इस धारा को देखने से स्पष्ट होता है कि यदि किसी अधिकारी को अतिक्रमण या अवरोध रोकने का दायित्व सौंपा गया है अतिक्रमण या अवरोध को रोकने में विफल रहता है तो उसे एक माह के साधारण कारावास या जुर्माना के साथ दंडित किया जायेगा।

कोर्ट ने सरकारी वकील और पीडीए(प्रयागराज विकास प्राधिकरण) के वकील से जानना चाहा कि उक्त धारा को लागू करने के बाद कि क्या अधिनियम की धारा 26-डी के संदर्भ में अंतिम कार्रवाई की गई है तो कोर्ट को सूचित किया गया कि अतिक्रमण या अवरोध को रोकने में विफल अधिकारियों के एक भी मामले में कार्रवाई नहीं की गई है।

यह भी पढ़ें : गंगा एक्सप्रेस-वे को सुप्रीम कोर्ट ने नहीं दी थी मंजूरी, मगर प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत से प्रयागराज में कछार किनारे लाखों अवैध निर्माण!

खंडपीठ ने कहा है कि वर्ष 1997 में अधिनियम में धारा 26-डी डालने में विधानमंडल की मंशा उन आधिकारी/अधिकारियों पर जिम्मेदारी तय करने की प्रतीत होती है, जो अपना कर्तव्य निभाने में विफल रहते है। इस धारा का एक उद्देश्य एक कठोर कदम का है कि यदि अतिक्रमण या अवैध निर्माण को बहुत प्रारंभिक चरण में में ही रोक दिया जाता है तो इन मामलों में कोई और परिणामी कार्रवाई जैसे कि भवन को सील करना या ध्वस्तीकरण आवश्यक नहीं होगा। उच्चतम न्यायालय ने कई बार कहा है कि अतिक्रमण और अवैध निर्माण राज्य के अधिकारियों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं है।

खंडपीठ ने कहा है कि हमें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि राज्य ने इस शहर में और राज्य के अन्य हिस्सों में सघन ध्वस्तीकरण अभियान चलाया है और ध्वस्तीकरण के आदेश के खिलाफ इस न्यायालय में तमाम रिट याचिकाएं भी दायर की गई हैं, फिर भी धारा 26घ के प्रावधान पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी है । यह तथ्य स्वयं इंगित करता है कि बड़ी संख्या में अवैध निर्माणों को होने की अनुमति दी गई है, जिनका ध्वस्तीकरण आवश्यक है, लेकिन राज्य द्वारा अधिनियम की धारा 26-डी के संदर्भ में कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

दि विधानमंडल ने अधिनियम में संशोधन किया है और जुर्माना का प्रावधान किया है, तो यह राज्य और उसके कार्याधिकारियों की निष्क्रियता से निरर्थक नहीं हो सकता है। लेकिन अधिनियम की धारा 26-घ के तहत कार्रवाई न राज्य के अधिकारियों ने उक्त प्रावधान को निरर्थक बना दिया है। अधिनियम की धारा 14 के तहत आयत अपने वैधानिक कर्तव्यों को पूरा करने में अधिकारी विफल रहे हैं।

यह भी पढ़ें –जनज्वार एक्सक्लूसिव : इलाहाबाद में अरबों-खरबों का स्टेट लैंड घोटाला

खंडपीठ की राय में यदि मानचित्र के अनुमोदन के बिना एक अवैध निर्माण किया जाता है, तो राज्य और विकास प्राधिकरणोंके अधिकारियों को अधिनियम की धारा 26-घ का संज्ञान लेना चाहिए और संबंधित अधिकारी को उस दोषी अधिकारी के खिलाफ जिम्मेदारी तय किया जाना चाहिए, जिसकी अवधि में अवैध निर्माण किया गया तथा अधिनियम की धारा 26-घ के तहत संबंधित अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।

कैग ने ऑडिट रिपोर्ट में कहा है कि प्राधिकरण का प्रवर्तन अनुभाग अवैध निर्माण व अतिक्रमण पर अधिनियम के अन्तर्गत कार्यवाही करने के लिए उत्तरदायी है। प्राधिकरण का सचिव/अपर सचिव प्रवर्तन अनुभाग का प्रमुख होता है जो कि दो अधिशासी अभियंताओं तथा चार सहायकअभियन्ताओं के साथ 20 अवर अभियन्ताओं की सहायता से कार्य करता है।

23 जून 1997 के शासनादेश के अनुसार, अतिक्रमण रोकने की प्राथमिक जिम्मेदारी सम्बन्धित सहायक अभियन्ता की होती है। अधिनियम की धारा-26 घ के अनुसार, जो कोई इस अधिनियम के अन्तर्गत अतिक्रमण अथवा अवरोध को रोकने अथवा मना करने के विशेष कर्त्तव्य के अधीन होते हुए ऐसे अतिक्रमण अथवा अवरोध को रोकने अथवा मना करने में जानबूझकर अथवा आवश्यपूर्वक उपेक्षा करता है अथवा जानबूझकर लोप करता है, उसको साधारण कारावास जो एक माह तक का हो सकता है अथवा जुर्माना जो 10,000 तक का हो सकता है अथवा दोनों से दण्डनीय होगा। प्राधिकरण का प्रवर्तन अनुभाग अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में असफल रहा तथा कैग को ऐसे दृष्टान्त मिले, जिसमे प्राधिकरण अवैध निर्माण रोकने में असफल रहा।

यह भी पढ़ें : प्रयागराज विकास प्राधिकरण के भ्रष्टाचार के कारण बाढ़ की चपेट में 30 हजार परिवार

त्तर प्रदेश शासन के आवास अनुभाग-3 के तत्कालीन प्रमुख सचिव पी. एल. पुनिया ने 22 जनवरी, 2001को प्रदेश के सभी विकास प्राधिकरणों को अर्द्धशा0प0सं0-172/9-आ-3-2001 भेजकर कहा था कि सार्वजनिक/प्राधिकरणों की भूमि पर अतिक्रमण/अवैध निर्माण के विरूद्ध प्रभावी कार्यवाही कर इन्हें हटाये जाने/ध्वस्तीकरण के सन्दर्भ में शासन द्वारा आपको समय-समय पर निर्देश दिये गये हैं। लेकिन अतिक्रमणों/अवैध निर्माणों के विरूद्ध समय से त्वरित गति से प्रभावी कार्यवाही न होने के फलस्वरूप जहां एक ओर इस प्रकार की अवांछित गतिविधियों में संलग्न तत्वों को बढ़ावा मिलता है, वहीं दूसरी ओर प्राधिकरण/शासन की सम्पत्ति की क्षति के साथ-साथ छवि भी धूमिल होती है। देखने में यही आया है कि प्रवर्तन का कार्य कागजी खानापूर्ति तक रह गया है।

त्र में कहा गया था कि ऐसे मामलों में अभियान चलाकर ठोस एवं परिणामात्मक कार्यवाही की जाए। अवैध निर्माण/अतिक्रमणों पर यदि प्रभावी नियंत्रण एवं अंकुश नहीं लगाया जाएगा तो इसके लिए उत्तरदायित्व स्वयं प्राधिकरण के उपाध्यक्ष का होगा। अतिक्रमणों को रोकने में प्रभावी कार्यवाही न करने वाले उत्तरदायी अधिकारियों के विरूद्ध धारा 26-घ, उ0प्र0 नगर योजना एवं विकास अभिनियम,1973 के अन्तर्गत प्रथम सूचना रिपोर्ट भी दर्ज कराई जाए।

त्र में कहा गया था कि बड़े अवैध निर्माणों तथा व्यावसायिक, ग्रुप हाउसिंग आदि के विरूद्ध कार्यवाही हेतु प्राथमिकता दी जाए। ऐसे अवैध निर्माणों को आरम्भ ही न होने दिया जाए तथा ध्वस्तीकरण के अधिकार का प्रभावी उपयोग किया जाय। यदि निर्माण किसी प्रकार आगे बढ़ भी गया है तो इन्हें सील किया जाए। किसी भी दशा में निर्माण छत की स्टेज तक नहीं बढ़ने दिया जाय तथा सभी विधिक उपायों का इस्तेमाल किया जाय। सील करते समय फोटो ग्राफी भी कराई जाय जिसका खर्चा बाद में अवैध निर्माणकर्ता से वसूला जाय।

प्रवर्तन अनुभाग में जो अधिकारी तैनात किये जायं वे सक्रिय व सक्षम होने चाहिए। सहायक अभियन्ता/अवर अभियन्ता का कार्यकाल उक्त अनुभाग में एक वर्ष से अधिक न हो तथा यह भी ध्यान रखा जाए कि जिन अधिकारियों की ख्याति अच्छी न हो अथवा जिन्हें प्रतिकूल प्रविष्टि/प्रविष्टियां पूर्व में दी गयी हों अथवा निलंबित किये गये हों, उन्हें इस कार्य में न लगाया जाय।

तिक्रमणकर्ता, अवैध निर्माणकर्ता के विरूद्ध कार्यवाही के साथ ही ऐसे अतिक्रमण/अवैध निर्माण रोकने के लिए उत्तरदायी अधिकारियों/कर्मचारियों के विरूद्ध भी अनिवार्य रूप से नियमानुसार कड़ी कार्यवाही की जाय। यह भी सुनिश्चित किया जाय कि प्रवर्तन अनुभाग के जिन अभियंताओं के क्षेत्र में अधिक संख्या में अतिक्रमण/अवैध निर्माण हो रहे हों अथवा इन्हें रोकने में शिथिलता बरती जाय, उनके विरूद्ध कड़ी कार्यवाही किये जाने के अतिरिक्त भविष्य में इन्हें संवेदनशील, महत्वपूर्ण पद का कार्य न सौंपा जाय।

सके बावजूद प्रयागराज सहित पूरे प्रदेश में कहीं भी अतिक्रमण, अवैध निर्माण पर प्रभावी रोक नहीं लगाई गयी और न ही धारा 26 घ के तहत एक भी दोषी अधिकारी के विरुद्ध कोई कार्रवाई की गयी।

पूरे प्रदेश का स्टेट लैंड पर अतिक्रमण, अवैध निर्माण घोटाला अरबों-खरबों रुपये का है जो वोट की राजनीति और भ्रष्ट शासन की नाजायज औलाद बनकर फल-फूल रहा है। स्टेट लैंड की रजिस्ट्री नहीं हो सकती। इसके बावजूद चाहे प्रयागराज हो या उत्तर प्रदेश का कोई अन्य शहर स्टेट लैंड की लाखों एकड़ भूमि को भूमाफिया ने 10 रुपये से लेकर 100 रुपये के स्टाम्प पर लोगों को बेच दिया है। यह काम वर्षों से किया जा रहा है, लेकिन कोई भी सरकार इसे रोक पाने में असमर्थ रही है।

‌लोगों ने प्रयागराज विकास प्राधिकरण सहित कई शहरों के प्राधिकरणों के भ्रष्ट आला अधिकारियों, प्रवर्तन दलों और जोनल अधिकारियों को रिश्वतें खिलाकर बहुमंजिले भवन, मॉल, शॉपिंग काम्प्लेक्स, स्कूल, कालेज, नर्सिंग होम और विवाह घर बनवा लिए हैं, जिनकी संख्या लाखों में है। भू माफियाओं ने गंगा और यमुना के कछारी इलाकों में डूब क्षेत्र को भी नहीं छोड़ा है।

लगभग 12 हजार करोड़ के 400 एकड़ क्षेत्र में 10 रुपये से लेकर 100 रुपये के स्टाम्प पर डूब क्षेत्र की जमीने बेच दी गयी है और गंगा, यमुना और ससुर खदेरी नदी के कछार में अतिक्रमण करके लाखों अवैध निर्माण प्राधिकरण के अफसरों की कृपा पर हो गया है।

इस गडबड़ घोटाले की जिम्मेदारी जहां प्रयागराज विकास प्राधिकरण और नगरनिगम की है, वहीं जिलाधिकारी और मंडलायुक्त के साथ प्रदेश के राजस्व विभाग की भी है। आज तक प्रभावित क्षेत्रों में न तो कोई सर्वे किया गया है, न ही भौतिक सत्यापन ,क्योंकि यदि स्टेट लैंड पर बने निर्माणों का अभिलेख मांगा जाय तो कोई भी रजिस्ट्री का पक्का कागज़ नहीं दिखा पायेगा।

लाख टके का सवाल है कि क्या प्रयागराज विकास प्राधिकरण, नगर निगम, जिलाधिकारी और मंडलायुक्त के साथ प्रदेश के राजस्व विभाग के जिम्मेदार अफसरों पर धारा 26 घ के तहत कार्रवाई कभी होगी?

Next Story

विविध