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विमर्श

मोदीराज में लॉकडाउन स्वास्थ्य नहीं राजनीतिक मसला, गरीबों को तो मरना ही है, फिर भूख से मरें या कोरोना से

Prema Negi
12 May 2020 7:03 AM GMT
मोदीराज में लॉकडाउन स्वास्थ्य नहीं राजनीतिक मसला, गरीबों को तो मरना ही है, फिर भूख से मरें या कोरोना से
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शुरू में जब मरीजों की संख्या कम थी सरकारों ने खूब सख्ती दिखाई और और अब जब यह तेजी से बढ़ रहा है तो सख्ती हटाई जा रही है। सख्ती हटाने के बाद जब मामले और तेजी से बढ़ेंगे तब कम से कम सरकार की जिम्मेदारी नहीं रहेगी, सारा कसूर जनता का होगा....

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। हमारे देश में पिछले कुछ महीनों से जो माहौल है, उसमें यह तो बिलकुल नहीं लगता कि लॉकडाउन कोविड 19 के प्रसार को रोकने के लिए लगाया गया था। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन और दूसरे अनेक संस्थानों ने समय पर लॉकडाउन घोषित करने के लिए भारत सरकार की सराहना की है, पर इसके बाद के पूरे घटनाचक्र को देखें तो यह स्पष्ट है कि कोविड 19 ने सरकार को एक बहाना दिया है, जिससे वह अपने एजेंडा को निर्विरोध साध सके।

रकारी तंत्र और तलवे चाटने वाली मीडिया इसे हिन्दू-मुस्लिम के विभाजन का खूनी खेल बनाती रही, कश्मीर के लोग और भी ज्यादा परेशान किये जा रहे हैं, निष्पक्ष पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता राष्ट्रद्रोही करार दिए गए और जेल में ठूंस दिए गए। समाज को अपने भाषणों, वक्तव्यों और मैसेज से बांटने वाले देशभक्त का तमगा पा रहे हैं। करोड़ों मजदूर भूख से मर रहे हैं। हजारों किलोमीटर पैदल चल रहे हैं। ट्रक और ट्रेन के नीचे कुचलकर मर रहे हैं। दिल्ली दंगे के नाम पर सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डाला जा रहा है। मजदूरों के अधिकार छीने जा रहे हैं। आदिवासियों को जंगलों से बेदखल किया जा रहा है। किसानों से अनाज लागत मूल्य से भी कम पर खरीद जा रहा है और हमारे प्रधानमंत्री कहते हैं सब ठीक है, नियंत्रण में है।

ब कोविड 19 के 800 मामले थे तब भी प्रधानमंत्री यही कह रहे थे और सब नियंत्रण में है। बताते-बताते अब मरीजों की संख्या लगभग 68000 पहुँच चुकी है। तीसरे लॉकडाउन तक ढील बढ़ाकर शराब की दुकानों तक पहुंचा दिया गया, अब ट्रेनें भी चलने वाली है, इन सबके बीच भी समृद्ध लोग बसों में ठूंसकर देश के एक भाग से दूसरे भाग तक पहुंचाए गए।

ब जब कोविड 19 के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है तब जल्दी ही और ढील देने की तैयारी चल रही है, जबकि पूरी दुनिया में जहां भी लॉकडाउन में ढील दी गयी है, वहां कोविड 19 फिर से सर उठाने लगा है।

क्षिण कोरिया की कोविड 19 के विरुद्ध जंग में सबने तारीफ़ की थी, पिछले कुछ सप्ताह से वहां रोज 10 से कम मामले आ रहे थे। कुछ सप्ताह पहले ही वहां सख्ती कम की गयी है और अब देश सामान्य होता जा रहा था, पर इसी लापरवाही के कारण 9 मई को वहां कुल 34 नए मामले दर्ज किये गए, जो 9 अप्रैल के बाद से सबसे बड़ी संख्या है। इसमें से अधिकतर संक्रमण सियोल के एक नाइट क्लब से फैला था। इसके बाद स्थानीय प्रशासन सतर्क हुआ और सभी नाइट क्लब फिर से बंद कर​ दिये गए।

राष्ट्रपति मून जाए-इन ने टेलीविज़न पर प्रसारित अपने सन्देश में स्पष्ट कहा कि कोविड 19 का खतरा अभी टला नहीं है, इसका दूसरे चरण कभी भी शुरू हो सकता है, इसलिए सभी देशवासियों से अपील है कि वे सुरक्षा के उपायों और नियमों का पूरी तरह पालन करें नहीं तो उन्हें सख्त कदम लेने होंगे।

8 मई को चीन के वुहान में, जहां से इस महामारी का आरम्भ हुआ था, वहां इसका एक नया मरीज मिला है। इससे अधिकारियों की परेशानी बढ़ गयी है क्योंकि इसे अब कोविड 19 से मुक्त माना जा रहा था और जनता के लिए लगभग सभी प्रतिबन्ध हटा दिए गए थे। अब तो चीन के अन्य हिस्सों में भी कोविड 19 के नए मरीज सामने आ रहे हैं।

लॉकडाउन के हटाने और प्रतिबंधों को हटाने के बाद से ईरान, लेबनान, रूस, अफ्रीका के छोटे देश जिबोटी, फ्रांस और जर्मनी – सभी जगह कोविड 19 वापस पाँव पसार रहा है। इसीलिए यूरोप के अन्य देश जो लॉकडाउन हटाने की तैयारी कर रहे हैं, सहमे हुए हैं। जर्मनी में भी कोविड 19 के मरीजों की संख्या फिर से बढ़ने लगी है, रोबर्ट कोच इंस्टिट्यूट फॉर डिजीज कण्ट्रोल के अनुसार कुछ सप्ताह पहले वहां एक संक्रमित व्यक्ति औसतन 0.65 लोगों को संक्रमित कर रहा था, पर पिछले सप्ताह यह अनुपात 1.1 तक पहुँच गया है।

कुछ देशों ने कोविड 19 के कहर के बाद अपनी स्वास्थ्य सेवाओं को नए सिरे सुधारने का बीड़ा उठाया है। साउथ कोरिया में इन सारे मामलों को अब तक कोरियाई सेंटर फॉर डिजीज कण्ट्रोल संभालता था, पर अब राष्ट्रपति ने इसे पहले से अधिक अधिकार दिए हैं और इसका नाम बदल कर डिजीज कण्ट्रोल एंड प्रिवेंशन एडमिनिस्ट्रेशन कर दिया है। स्थानीय सरकारें भी महामारी से निपटने के विशेष संस्थान स्थापित करेंगे, और सबमें विशेषज्ञों की संख्या बढ़ाई जायेगी। साउथ कोरिया में संचारी रोगों के नियंत्रण के लिए अनेक बड़े हॉस्पिटल भी खोले जा रहे हैं और अनेक शोध संस्थान भी स्थापित किये जा रहे हैं।

दूसरे देशों से परे, हमारे देश में लॉकडाउन राजनीतिक मामला है, स्वास्थ्य का नहीं। जाहिर है, शुरू में जब मरीजों की संख्या कम थी सरकारों ने खूब सख्ती दिखाई और और अब जब यह तेजी से बढ़ रहा है तो सख्ती हटाई जा रही है। सख्ती हटाने के बाद जब मामले और तेजी से बढ़ेंगे तब कम से कम सरकार की जिम्मेदारी नहीं रहेगी, सारा कसूर जनता का होगा। जनता को तो मरना ही है, भूख से मरे या फिर कोरोना से।

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