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विमर्श

गौलापार के बाद उत्तराखण्ड के तीनपानी में भी आसान नहीं आईएसबीटी की डगर

Prema Negi
16 Aug 2018 2:05 PM GMT
गौलापार के बाद उत्तराखण्ड के तीनपानी में भी आसान नहीं आईएसबीटी की डगर
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तीनपानी में जिस स्थान पर आईएसबीटी के लिए जमीन चयनित की गयी है, वहां जैव विविधता की श्रेणी में शामिल खैर के सैकड़ों पेड़ हैं, जिसका कटान प्रतिबन्धित है...

गिरीश चंदोला की रिपोर्ट

हल्द्वानी। ‘‘चित भी मेरी पट भी मेरी’’ के कथन पर विश्वास रखने वाले प्रदेश के परिवहन मंत्री यशपाल आर्या ने आखिर गौलापार में आईएसबीटी के लिए पूर्व में चिन्हित जमीन को निर्माण के लिए अनुपयुक्त बताते हुए बाहर का रास्ता तो दिखा दिया। लेकिन तीनपानी में उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय के पास अब आईएसबीटी के लिए चिन्हित वन विभाग की 10 एकड़ वनभूमि पर आईएसबीटी निर्माण का यह सपना साकार रूप ले पायेगा, इसे लेकर भी असंमजस की स्थिति बनी हुयी है।

हालांकि भाजपा के कुछ नेताओं का कहना है कि आईएसबीटी के लिए जमीन तय हो चुकी है। लिहाजा इस पर जल्द ही कार्य भी शुरू हो जायेगा। लेकिन प्रक्रिया से जुड़े जानकार बताते हैं कि सारा खेल जितना आसान लग रहा है असल में उतना आसान है नहीं। विशेषज्ञ बताते हैं कि वन विभाग किसी भी प्रोजेक्ट के लिए एक ही बार जमीन आंवटित करता है और पूर्व में विभाग इस कार्य के लिए सरकार को गौलापार में जमीन आंवटित कर चुका है। गौलापार में ढाई करोड़ रुपये फूंकने के बाद यहां निर्माण को मंजूरी मिली है।

इस लिहाज से सरकार को पहले गौलापार वाली जमीन वन विभाग को लौटानी होगी, उसके बाद ही नया प्रस्ताव मंजूर करवा कर वन भूमि हस्तांरण के लिए भेजना होगा, जिसमें बहुत अधिक समय लग सकता है। क्योंकि पूर्व में गौलापार में प्रस्तावित आईएसबीटी की वन भूमि हस्तांरण में ही 6 साल से ज्यादा का समय लग गया था।

इसके अलावा तीनपानी में जिस स्थान पर आईएसबीटी के लिए जमीन चयनित की गयी है, वहां जैव विविधता की श्रेणी में शामिल खैर के सैकड़ों पेड़ हैं, जिसका कटान प्रतिबन्धित है। ऐसे में निर्माण कार्य शुरू करने से पहले खैर के इस जंगल को काटना होगा, जिसके लिए वन विभाग शायद ही अनुमति देगा।

नेता प्रतिपक्ष डाॅ. इंदिरा हृदयेश ने प्रदेश सरकार द्वारा तीनपानी में उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय के समीप आईएसबीटी के लिए जमीन चयनित किये जाने के मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि गौलापार ही आईएसबीटी निर्माण के लिए सर्वाघिक उपयुक्त जगह थी, क्योंकि वहां सड़कें चौड़ी होने के साथ ही 300 बसों के बेड़े को एक साथ खड़ी करने की भी जगह समुचित मात्रा में उपलब्ध है।

लेकिन प्रदेश की भाजपा सरकार ने अपनी हठधर्मिता के चलते स्थान परिवर्तन कर दिया, जबकि गौलापार में आईएसबीटी की जमीन पर भरान व समतलीकरण में भी करोड़ों रुपये पूर्व में खर्च किया जा चुका है।

ऐसे में करोड़ों रुपये फूंकने के बाद किसी अन्य जगह आईएसबीटी को परिवर्तित करना इसे उसका अनुचित कदम ही कहा जायेगा। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि तीनपानी में आईएसबीटी के निर्माण पर आने वाले खर्च के अलावा प्रदेश सरकार को करीब 60 करोड़ रुपये अलग से सड़कों पर खर्च करना पड़ेगा, जिसे फिजूलखर्ची ही कहा जायेगा।

हल्द्वानी के गौलापार निवासी रविशंकर जोशी ने इस मामले में न्यायालय में याचिका दाखिल की है। याचिका में उन्होंने गौलापार में ही बस अड्डा बनाने की मांग करते हुए न्यायालय से गुहार लगाई है कि वह शासन-प्रशासन को आईएसबीटी गौलापार में ही बनाने के निर्देश दे। जोशी ने बताया कि प्रशासन, वन विभाग सहित अन्य की रिपोर्ट में आईएसबीटी के लिए अन्यंत्र भूमि उपलब्ध नहीं होने की जानकारी दी थी।

आईएसबीटी के लिए वर्ष 2008-09 में सरकार ने आईएसबीटी के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। वर्ष 2015 में वन विभाग ने परिवहन विभाग को भूमि हस्तांतरित की और वर्ष 2015-16 में चयनित आठ हेक्टेयर जमीन से 2700 हरे पेड़ काटे गये। 14 अक्तूबर 2016 को आईएसबीटी निर्माण कार्य का शिलान्यास किया गया। इसके बाद अक्तूबर 2016 में आईएसबीटी का निर्माण कार्य निजी कंपनी ने शुरू कर दिया।

मगर यह तब चर्चा में आया जब मई 2017 में आईएसबीटी निर्माणस्थल पर खुदाई में कुछ कंकाल निकले। कंकाल मिलने की घटना के बाद जून 2017 में प्रदेश सरकार ने आईएसबीटी के निर्माण पर रोक लगा दी। जुलाई-अगस्त 2017 में आईएसबीटी शिफ्ट किये जाने की बात कही गयी, तो सितंबर 2017 में परिवहन सचिव ने तीन प्रस्तावित जगहों का निरीक्षण किया। इसी के बाद से लगातार कई दौर की बैठकें भूमि चयन को लेकर होती रहीं। तमाम बैठकों के बाद प्रदेश सरकार ने तीनपानी में आईएसबीटी बनाने को मंजूरी दी, मगर इसकी डगर भी इतनी आसान नहीं लगती।

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