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छह महीने जेल में रहने के बाद रिहा हुये पत्रकार रूपेश कुमार सिंह का पहला साक्षात्कार
जेल से रिहा हुए पत्रकार रुपेश, छह महीने पहले माओवादी बताकर किया गया था गिरफ्तार, रुपेश बोले किताब और लेख लिखकर पूरी दुनिया को बताऊंगा सच...
जनज्वार। छह माह की जेल की सजा काटने के बाद झारखंड के पत्रकार रुपेश रिहा हो गए हैं। रुपेश को माओवादी बताकर 4 जून 2019 को उस वक्त गिरफ्तार किया गया था कि जब वह सुबह आठ बजे रामगढ़ से अपने आवास से अपने दो साथी वकील मिथलेश कुमार सिंह और मोहम्मद कलाम के साथ औरंगाबाद को निकले थे। उसके बाद उन्हें आईबी ने नक्सली बताकर गिरफ्तार कर लिया था। रुपेश ने जनज्वार को अपनी आपबीती बताई।
जेल से रिहा होने के बाद रुपेश ने कहा कि सबसे पहले मैने सोचा है कि मैने जो छह महीने जेल में काटे हैं, उसके बारे में दुनिया को बताऊंगा। उसके लिए बारे में दो चीजों पर हम सोच रहे हैं। एक तो हम अपने जेल जीवन गिरफ्तारी से अबतक को हम श्रृंखलाबद्ध किश्तों में लेख लिखेंगे या प्रकाशित करेंगे। यह हम दो महीने के अंदर करेंगे। उसके बाद हम पहले की ही तरह पत्रकारिता करेंगे और आम लोगों, खासकर आदिवासियों, मजदरों, किसानो और छात्रों की आवाज को उठाएंगे।
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रूपेश बताते हैं कि 4 जून को जब हम यहां से आठ बजे निकल रहे थे। उसके बाद हजारीबाग से बरही जाने के क्रम के बीच में हम पेशाब करने के लिए सड़क के किनारे रुके। अचानक दो बाइक पहले आकर रूकी। मुझे लगा कि ये लोग भी पेशाब करने ही उतरे हैं। जबतक हम कुछ समझ पाते पीछे से आकर उन्होंने मुझे पकड़ लिया और जब मैने प्रतिरोध करने की कोशिश की तो दोनों ने मेरे हाथ बांध लिए और फिर मुझे बोलेरो की तरफ खींचने लगे। उसी समय जब मैने देखा तो दूसरी तरफ हमारे जो ड्राइवर और वकील साहब थे..उन दोनों को वह अपनी कार में ले जा रहे थे। इतना सा मैने देखा। इसके बाद बोलेरो के अंदर बैठते ही मेरे हाथ में हथकड़ी लगा दी गई और आंखों में पट्टी बांध दी।
उन्होंने आगे बताया कि इसके बाद मुझे उनकी बातचीत से पता लग गया कि कोई साउथ इंडिया के हैं, मैने पूछा कि आप किस पुलिस डिपार्टमेंट के हैं? उन्होंने कहा आईबी से हैं.. मैने कहा एपीएस आईबी.. तो उन्होंने कहा नहीं सेट्रल आईबी..लेकिन उनकी बातचीत से ही पता लग गया कि ये एपीएस आईबी के ही लोग हैं।
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रूपेश ने बताते हैं, 'लगातार एक आशंका मन में चल रही थी कहीं ये पत्रकार हेम पांडे और आजाद की तरह हमारा एनकाउंटर न कर दें। जब हम झारखंड के आदिवासी इलाकों में पत्रकारिता के लिए घूमते थे तब पता चलता था कि किस तरह से पुलिस आती है और उठाकर ले जाती है बाद में पता चलता है कि उसका एनकाउंटर कर दिया गया है। उस समय मेरे मन में यही चल रहा था कि मेरा एनकाउंटर कर देंगे।'