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राजनीति

भारत के विचार पर एकाधिकार का दावा नहीं कर सकता कोई भी व्यक्ति या संस्था : जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड़

Nirmal kant
16 Feb 2020 7:18 AM GMT
Justice DY Chandrachud : सुप्रीम कोर्ट के 50वें सीजेआई बने चंद्रचूड़, इन चुनौतियों से पाना होगा पार
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Justice DY Chandrachud : सुप्रीम कोर्ट के 50वें सीजेआई बने चंद्रचूड़, इन चुनौतियों से पाना होगा पार

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कोई भी व्यक्ति या संस्था भारत के विचार पर एकाधिकार का दावा नहीं कर सकती। संविधान के निर्माताओं ने एक हिंदू भारत और एक मुस्लिम भारत की धारणा को खारिज किया। उन्होंने केवल भारतीय गणराज्य को मान्यता दी..

जनज्वार। सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने असहमति को लोकतंत्र का 'सुरक्षा कवच' बताते हुए कहा कि असहमति पर लेबल लगाकर उसे 'राष्ट्र विरोधी' या 'लोकतंत्र विरोधी' बताना जानबूझकर लोकतंत्र की मूल भावना पर हमला है।

गुजरात में अपने एक लेक्चर में जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि असंतोष को रोकने के लिए राज्य मशीनरी का उपयोग भय पैदा करता है, जो कानून के शासन का उल्लंघन करता है।

न्होंने कहा कि असहमति रखने वालों पर राष्ट्रविरोधी या लोकतंत्र विरोधी होने का लेबल लगाना हमारे संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए प्रतिबद्धता और लोकतंत्र की तरक्की की मूल भावना पर हमला करता है।

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स्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि असहमति का संरक्षण करना यह याद दिलाता है कि लोकतांत्रिक रूप से एक निर्वाचित सरकार हमें विकास एवं सामाजिक समन्वय के लिए एक न्यायोचित औज़ार प्रदान करती है, वे उन मूल्यों एवं पहचानों पर कभी एकाधिकार का दावा नहीं कर सकती जो हमारी बहुलतावादी समाज को परिभाषित करती हैं।

स्टिस चंद्रचूड़ 15वें डी.डी. देसाई मेमोरियल में 'द ह्यूज दैड मेक इंडिया: फ्रॉम प्लूरेलिटी टू प्लूरलिज्म (रत को निर्मित करने वाले मतों: बहुलता से बहुलतावाद) विषय पर अपने विचार रख रहे थे।

न्होंने आगे कहा कि असहमति पर अंकुश लगाने के लिए सरकारी मशीनरी को लगाना डर की भावना पैदा करता है और स्वतंत्र शांति पर एक डरावना माहौल पैदा करता है जो क़ानून के शासन का उल्लंघन करता है और बहुलवादी समाज की संवैधानिक दूरदृष्टि से भटकाता है।

स्टिस चंद्रचूड़ की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब देश के अलग-अगल हिस्सों में में नागरिकता संशोधन अधिनियम और राष्ट्रीय नागरिकत रजिस्टर के खिलाफ देशभर में प्रदर्शन हो रहे हैं।

चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि सवाल करने की गुंजाइश को ख़त्म करना और असहमति को दबाना सभी तरह की प्रगति-राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक आधार को नष्ट करता है, इस अर्थ में असहमति लोकतंत्र का एक सुरक्षा कवच है।

स्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि असंतोष को शांत करना और लोगों के मन में डर पैदा करना व्यक्तिगत स्वतंत्रता के उल्लंघन और संवैधानिक मूल्य के प्रति प्रतिबद्धता से परे है।

ता दें कि जस्टिस चंद्रचूड़ बेंच का भी हिस्सा थे जिसने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रदर्शनकारियों को भेजे गए नोटिसों को रद्द करने की याचिका पर जवाब मांगा था। राज्य में सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान सार्वजनिक संपत्तियों को होने वाले नुकसान की वसूली के लिए जिला प्रशासन द्वारा नोटिस जारी किए गए थे।

स्टिस चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि एक संवाद आधारित लोकतंत्र में असहमति की रक्षा करने के लिए एक राज्य को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि वह कानून की सीमा के भीतर वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपनी मशीनरी को तैनात करे और डर को भड़काने के किसी भी प्रयास को समाप्त करे।

स्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि विचार-विमर्श के संरक्षण के लिए प्रतिबद्धता प्रत्येक लोकतंत्र का एक अनिवार्य पहलू है। एक तर्क और विचार-विमर्श के आदर्श पर आधारित लोकतंत्र यह सुनिश्चित करता है कि अल्पसंख्यकों की राय का गला न घोंटा जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि हर परिणाम केवल संख्या का नहीं बल्कि साझा आम सहमति का परिणाम हो।

स्टिस चंद्रचूड़ ने कहा एक लोकतंत्र का 'सच्चा परीक्षण' अपने स्पेस के सृजन और सुरक्षा को सुनिश्चित करने की क्षमता है जहां हर व्यक्ति प्रतिशोध के डर के बिना अपनी राय दे सकता है।

न्होंने कहा कि देश का बहुलतावाद भारत के विभिन्न राज्यों, नस्लों, भाषाओं और विश्वासों के लोगों के लिए एक शरण के रूप में बहुलतावदी विचार' की रक्षा करने की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।

कहा, 'संस्कृति की विविधता और विविधताओं और मुक्त वातावरण को स्थान प्रदान करने में हम इस विचार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हैं कि हमारे राष्ट्र का निर्माण विचार-विमर्श की सतत प्रक्रिया है।'

न्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति या संस्था भारत के विचार पर एकाधिकार का दावा नहीं कर सकती। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने बहुलवादी पहचान की रक्षा के लिए एक 'सकारात्मक दायित्व' का भी उल्लेख किया। संविधान के निर्माताओं ने एक हिंदू भारत और एक मुस्लिम भारत की धारणा को खारिज किया। उन्होंने केवल भारतीय गणराज्य को मान्यता दी।

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न्होंने कहा कि समरुपता भारतीयता की विशेषता को परिभाषित नहीं करती। हमारे मतभेद हमारी कमजोरी नहीं हैं। हमारी साझा मानवता की मान्यता में इन अंतरों को पार करने की हमारी क्षमता हमारी ताकत का एक स्रोत है। भारत अपने आप में विविधता का एक उप महाद्वीप है। भारत के अस्तित्व में बहुलतावाद पहले से ही अपनी सबसे बड़ी जीत हासिल कर चुका है।

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