पीएम मोदी को भी पसंद है 'पोहा', तो क्या उन्हें भी घोषित किया जाये बांग्लादेशी
सोशल मीडिया यूजर कैलाश विजयवर्गीय से कर रहे हैं सवाल कि संशोधित नागरिकता अधिनियम यानी CAA में क्या पीएम मोदी भी बांग्लादेशी घोषित हो सकते हैं और उन्हें भी भारतीय नागरिकता नहीं मिलेगी, क्योंकि उन्हें भी बहुत पसंद है पोहा...
जनज्वार। पश्चिम बंगाल के भाजपा प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय आये दिन कुछ ऐसा बोलते हैं, जिससे विवाद खड़ा हो जाता है। अब उन्होंने यह कहकर विवाद बढ़ा है कि पोहा खाने से वह समझ गये कि मजदूर बांग्लादेशी हैं।
कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि पोहा खाने से वह जान गये कि मजदूर बांग्लादेशी हैं। उनकी इस टिप्पणी पर सोशल मीडिया में वह ट्रोल होने शुरू हो गये हैं। लोग कह रहे हैं तो क्या हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी भी नागरिकता सूची से बाहर हो जायेंगे, क्योंकि उन्हें पोहा बहुत पसंद है।
गौरतलब है कि पिछले साल अपने जन्मदिन से पहले मीडिया को दिये इंटरव्यू में उन्होंने इस बात का खुलासा किया था कि उन्हें नाश्ते में पोहा बेहद पसंद है। सोशल मीडिया यूजर कैलाश विजयवर्गीय से सवाल कर रहे हैं इसके मुताबिक तो CAA यानी संशोधित नागरिकता अधिनियम के मुताबिक पीएम मोदी भी बांग्लादेशी घोषित हो सकते हैं और उन्हें भी भारतीय नागरिकता नहीं मिलेगी।
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वरिष्ठ भाजपाई कैलाश विजयवर्गीय ने बयान दिया उनके घर में काम कर रहे मजदूरों के पोहा खाने के स्टाइल से वे समझ गये कि वह बांग्लादेशी हैं।' उनके इस बयान ने राजनीतिक रंग ले लिया है और सोशल मीडिया पर भी वह लगातार ट्रोल हो रहे हैं। 'पोहा' विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है।
पश्चिम बंगाल में सत्तासीन तृणमूल कांग्रेस, विपक्षी पार्टी कांग्रेस और माकपा ने शुक्रवार को भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय के ‘पोहा’ (Poha) खाने पर श्रमिकों की राष्ट्रीयता पर सवाल उठाने वाले बयान पर हमलावर होते हुए कहा कि यह बयान कोई अलग बात नहीं है, बल्कि वर्तमान भाजपा की जातिवादी और सांप्रदायिक बंटवारे की मानसिकता की झलक है। बीजेपी महासचिव विजयवर्गीय ने 23 जनवरी को बयान दिया था उनके घर पर काम करने वाले कुछ मजदूर बांग्लादेशी हो सकते हैं, क्योंकि वे केवल पोहा खाते हैं।
इस मसले पर वरिष्ठ टीएमसी नेता और संसदीय मामलों के राज्य मंत्री तापस रॉय कहते हैं, इस तरह के जातिवादी और सांप्रदायिक बयान भाजपा की ‘बंगाली विरोधी’ मानसिकता का प्रतिबिंब हैं। हम सभी जानते हैं कि भाजपा बंगाली विरोधी पार्टी है। इस तरह के सांप्रदायिक बयान केवल उसी मानसिकता को दर्शाते हैं। बीजेपी और उसके नेताओं को बंगाल, उसकी संस्कृति और खाने की आदतों के बारे में कुछ भी पता नहीं है और वे बंगाल पर राज करने का सपना देख रहे हैं। बंगालियों का अपमान करने के लिए वे जवाब दें।'
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भाजपा कैलाश विजयवर्गीय के इस बयान के बचाव में उतर गयी है और कह रही है कि मीडिया और विपक्षी पार्टियां कैलाश विजयवर्गीय के बयान को तोड़—मरोड़कर पेश कर रहे हैं। कैलाश विजयवर्गीय का पूरा बयान था, 'रात को 9 बजे मैं रूम में आया। उसके सामने रूम बन रहा था। उस कमरे में एक थाली में 6-7 मज़दूर इतने सारे पोहे... मतलब कम से कम 10 प्लेट एक थाली में... पोहे खा रहे थे। मैंने कहा कि यार ये इतने पोहे क्यों खा रहे हैं। मैंने सुपरवाइज़र को बुलाया कि इन्हें रोटी नहीं मिलती क्या। वो बोला- ये रोटी खाते ही नहीं। मैंने पूछा- क्यों? वो बोला- पोहे ही खाते हैं बस। मुझे शंका हुई कि भाई ये कौन से देश के हैं, जो पोहे खाते हैं... भर-भरकर। मैंने पूछा कि भई कहां के हो तुम लोग? कोई हिंदी बोल नहीं पाया।'
हालांकि विजयवर्गीय का यह पूरा बयान भी देखा जाये तो यह भी आपत्तिजनक है। कोई अगर हिंदी न बोल पाये तो इससे उसे विदेशी घोषित नहीं किया जा सकता। देशभर में बहुत सारे क्षेत्रों के लोग हिंदी नहीं बोल पाते, तो क्या उन्हें नागरिकता के अयोग्य घोषित कर दिया जाना चाहिए और पोहा खाने के आधार पर कोई यह कैसे जज कर सकता है कि कोई भारतीय है या फिर बांग्लादेशी।
कैलाश विजयवर्गीय का यह 'पोहे' वाला अटपटा बयान तब आया है, जबकि वह इंदौर से ताल्लुक रखते हैं और इंदौर में पोहा बहुत प्रसिद्ध है। सोशल मीडिया पर लोग ताज्जुब जताते हुए तरह-तरह के फोटो और कमेंट शेयर कर रहे हैं। भाजपा से जुड़े तमाम लोगों की पोहा खाते हुए तस्वीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट की जा रही हैं, यह कहते हुए कि बांग्लादेशी पोहा खाते हुए पकड़े गये। इनमें से पिछले दिनों भाजपा नेता गौतम गंभीर की एक फोटो भी खूब शेयर की जा रही है, जिसमें वे दो लोगों के साथ पोहा-जलेबी खा रहे हैं, इसे 'कुछ बांग्लादेशी पोहा और जलेबी खाते हुए' कैप्शन के साथ शेयर किया जा रहा है।