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कावेरी कॉलिंग प्रोजेक्ट के नाम पर सदगुरू की संस्था ईशा फाउंडेशन कर रही करोड़ों का घोटाला, कर्नाटक हाईकोर्ट ने लगाई फटकार

Nirmal kant
10 Jan 2020 6:18 AM GMT
कावेरी कॉलिंग प्रोजेक्ट के नाम पर सदगुरू की संस्था ईशा फाउंडेशन कर रही करोड़ों का घोटाला, कर्नाटक हाईकोर्ट ने लगाई फटकार
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कर्नाटक हाईकोर्ट ने धार्मिक गुरू सदगुरू जग्गी वासुदेव की संस्था ईशा फांउडेशन को लगाई फटकार...

जनज्वार। कावेरी कॉलिंग प्रोजेक्ट के नाम पर सदगुरू जग्गी वासुदेव की संस्था ईशा फाउंडेशन द्वारा इकट्ठा की गई राशि को कर्नाटक हाईकोर्ट ने खुलासा करने को कहा है। चीफ जस्टिस अभय ओका और जस्टिस हेमंत चंदागौदर की खंडपीठ ने ईशा फाउंडेशन को फटकार लगाते हुए कहा है कि उसने यह नहीं बताया है कि ये राशि स्वैच्छिक तरीके से जमा की गई है।

पीठ ने ईशा फाइंडेशन से कहा कि आप इस धारणा में मत रहिए कि आप एक आध्यात्मिक संस्था है तो कानून से बंधे नहीं है। पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा अगर कोई नदी के संरक्षण कार्य के लिए जागरूकता का काम कर रहा है तो इसका बिल्कुल स्वागत है लेकिन ये काम जनता से जबरदस्ती पैसे जमा करके नहीं किया जा सकता है।

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र्नाटक हाईकोर्ट में वकील एवी की ओर से दायर की गई याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में मांग की गई थी कि ईशा फाउंडेशन को निर्देश दिया जाए कि वे कावेरी कॉविंग प्रोजेक्ट के लिए जनता से कोई पैसा न जमा करें। कोर्ट ने राज्य सराकर को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि जब एक नागरिक राज्य सरकार से शिकायत करता है कि राज्य के नाम पर धन इकट्ठा किया जा रहा तो राज्य की जिम्मेदारी होती है कि वह इस मामले की जांच और पूछताछ करे।

पर राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि उसे इस मामले में कोई शिकायत प्राप्त नहीं हुई थी और उसने फाउंडेशन को धन एकत्र करने के लिए अधिकृत भी नहीं किया है। वकील ने तर्क दिया कि राज्य ने फाउंडेशन को सरकारी जमीन पर कोई काम करने की अनुमति नहीं दी है।

पको बता दें कि ईशा फाउंडेशन के द्वारा कावेरी नदी को बचाने के नाम पर 253 करोड़ पेड़ लगाने की योजना बनाई गई है जिसके लिए प्रतिव्यक्ति से एक पेड़ के लिए 42 रूपये इकट्ठा किया जा रहा है। इसका मतलब है कि 10.626 करोड़ रूपये इकट्ठा करने की योजना बनाई गई है। याचिकाकर्ता के मुताबिक ये एक बहुत बड़ा घोटाला है। मामले की अगली सुनवाई 12 फरवरी को होगी।

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याचिकाकर्ता ने कहा कि बिना राज्य सरकार के अनुमति के बिना कोई निजी संस्था सरकारी जमीन पर किसी प्रकार का काम करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। वहीं दलील में कहा गया है कि फाउंडेशन का दावा है कि उसने कावेरी बेसिन के संबंध में अध्ययन करवाया है। पर उसने उस रिपोर्ट को राज्य सरकार को नहीं सौंपा जो कि सौंपना चाहिए था और राज्य को राज्य सरकार को उक्त अध्यनों पर विचार करने के बाद स्वीकृति देनी चाहिए थी। लेकिन ऐसी कोई भी प्रक्रिया का पालन फाउंडेशन ने नहीं किया है।

नरेंद्र मोदी ने नागरिकता संशोधित कानून के समर्थन के अभियान का प्रसार करने के लिए आध्यात्मिक गुरू सद्गुरु जग्गी वासुदेव का एक वीडियो ट्वीट पर पोस्ट किया था। प्रधानमंत्री ने ट्वीट पर लिखा था कि सीएए से जुड़े पहलुओं की स्पष्ट व्याख्या तथा और भी चीजें सदगुरू से सुनिए।

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ससे पहले सद्गुरु जग्गी वासुदेव तब चर्चाओं में आ गये थे जब उन्होंने राम मंदिर निर्माण को लेकर बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि मुस्लिमों को जमीन का थोड़ा अतिरिक्त हिस्सा दे सकते हैं, लेकिन राम मंदिर का निर्माण होना ही चाहिए, क्योंकि यह हिंदू आस्था और संवेदना से जुड़ा प्रश्न हैं। राम मंदिर को लेकर उन्होंने यह भी कहा था कि यह बहुत ही विचित्र बात है कि कोर्ट यह तय करेगा कि वहां राम का जन्म हुआ था या नहीं। मंदिर कभी चुनाव का मुद्दा नहीं था।

पको बता दे कि कावेरी नदी को दक्षिण भारत की गंगा भी कहा जाता है। जल विवाद कर्नाटक और तमिलनाडु सरकार के बीच लम्बे समय से इसके पानी के विवाद चल रहा था जिसका फैसला सुप्रीम कोर्ट ने कावेरी जल विवाद ट्राइब्यूनल ने इस मसले पर 5 फरवरी को अपना अंतिम आदेश दिया था।

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