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- सुनो! आज खब्बुओं का...

आज लेफ्ट हैंडर्स डे है। हिंदी के ख्यात लेखक और अनुवादक सूरज प्रकाश जी का खब्बुओं पर लिखा यह लेख बहुत ही उम्दा और पठनीय है, जिसे हर खब्बू को जरूर पढ़ना चाहिए...
13 अगस्त का दिन दुनियाभर में खब्बू दिवस यानी लैफ्ट हैंडर्स डे के रूप में मनाया जाता है।
मुझे याद पड़ता है कि हमारे बचपन में खब्बुओं को मार-मार कर सज्जू कर दिया जाता था। (पंजाबी में बायें हाथ को खब्बा और दायें हाथ को सज्जा हाथ कहते हैं)। मजाल है आप कोई काम खब्बे हाथ से कर के दिखा दें। घर पर तो पिटाई होती ही थी। मास्टर लोग भी अपनी खुजली उन्हें मार-मार कर मिटाते थे।
दुनिया में पूरी जनसंख्या के 13 से 14 प्रतिशत लोग खब्बू हैं, लेकिन ये भारत में ही और वो भी उत्तर भारत में ज्यादा होता है कि बायें हाथ से काम करने वाले को पीट-पीट कर दायें हाथ से काम करने पर मजबूर किया जाता है। उसका मानसिक विकास तो रुकेगा ही जब आप प्रकृति के खिलाफ उस पर अपनी चलायेंगे।
दरअसल ये जो दुनिया है ना, लगता है, दायें हाथ से काम करने वालों के लिए ही बनी है। सारी मशीनरी, सारे उपकरण, औजार, आविष्कार, खेलकूद, संगीत के उपकरण यानि इस्तेमाल में आने वाला जो कुछ भी है, उसे दायें हाथ से काम करने वालों के लिए ही बनाया गया है।
या यूं कह लें कि उन्होंने सब कुछ अपने हिसाब से बना लिया और बायें हाथ से काम करने वालों को अंगूठा दिखा दिया। भला दुनिया भर के 87 प्रतिशत राइट हैंडर्स ये कैसे बरदाश्त करते कि कोई उनकी बनायी व्यवस्था के खिलाफ जाये। अपने देश का तो ये हाल है कि आप बायें हाथ से किसी को पैसे या कुछ और दे ही नहीं सकते। भिखारी भी बायें हाथ से दी गयी भीख नहीं लेते।
और तो और भाषा में भी खब्बुओं के लिए गुजाइश नहीं छोड़ी गयी। आप सही हैं तो यू आर राइट, और आपका रास्ता सही है तो यू आर ऑन राइट ट्रैक। सही होने के लिए दायें हाथ का अंगूठा ही उठाया जायेगा। पता नहीं, कुछ देशों में लेफ्ट हैंड ड्राइव कैसे हैं।
ये तो भला हो कि दुनिया के सभी लेफ्टी एक मंच पर जुटे, अपने लिए हक मांगे, अपनी जरूरत की चीजों का खुद आविष्कार किया और बरस में बेशक एक दिन ही सही, 13 अगस्त अपने नाम करवा लिया। अब ये दिन दुनिया भर में लेफ्ट हैंडर्स डे के रूप में मनाया जाता है और उनके हक की बात की जाती है।
वैसे भी ये माना जाता है कि बायें हाथ से काम करने वाले ज्यादा अंतर्मुखी, संवेदनशील, कलाकार और रचनात्मक गुणों से भरे होते हैं, लेकिन संकट यही है कि उन्हें चैन से लेफ्टी भी नहीं रहने दिया जाता। मार-मार कर उन्हें लेफ्ट राइट के बजाये राइट राइट कर दिया जाता है। एक दुखद पक्ष ये भी है कि हर बरस हजारों खब्बुओं की इस कारण से जान चली जाती है कि उन्हें मजबूरन सज्जुओं के लिए बनाये गये औजार या हथियार इस्तेमाल करने पड़ते हैं जिसमें उनका हाथ तंग होता है।
मैंने सिर्फ गुजरात में ही देखा कि क्लास में और ट्रेनिंग सेंटर्स में भी इनबिल्ट मेज वाली कुर्सियां लैफ्ट हैंडर्स के लिए भी होती हैं, बेशक तीस में से पांच ही क्यों न हों।
कहा जाता है कि पहले के ज़माने में युद्धों में बायें हाथ से लड़ने वालों को बहुत तकलीफ होती थी। वे मरते भी ज्यादा थे, क्योंकि सामने वाले के बायें हाथ में ढाल है और दायें में तलवार। वह अपने सीने की रक्षा करते हुए सामने वाले के सीने पर वार कर सकता था, लेकिन खब्बू महाशय के बायें हाथ में तलवार और दायें हाथ में ढाल है। बेचारा दिल तो उनका भी बायीं तरफ ही रहता था। नतीजा यही हुआ कि लड़ाइयों की वजह से खब्बू ज्यादा शहीद होते रहे और दुनिया की जनसंख्या में उनका प्रतिशत भी कम हुआ। ये एक कारण हो सकता है।
मैं विदेशों की नहीं जानता कि वहां पर लैफ्ट हैंडर्स के साथ क्या व्यवहार होता है। लेकिन ये मानने में कोई हर्ज नहीं कि उन्हें सम्मान तो मिलता ही होगा उन्हें भी तभी तो वे लैफ्ट हैंडर्स डे मनाने की सोच सकते हैं। पिटाई तो उनकी वैसे भी नहीं होती। आइये जानें दुनिया के कुछ खास खास खब्बुओं के बारे में। जरा सोचिये, अगर इन सबको भी पीट पीट कर सज्जू बना दिया जाता तो क्या होता।
महात्मा गांधी, सिंकदर महान, हैंस क्रिश्चियन एंडरसन, बिस्मार्क, नेपोलियन बोनापार्ट, जॉर्ज बुश सीनियर, जूलियस सीजर, लुइस कैरोल, चार्ली चैप्लिन, विंस्टन चर्चिल, बिल क्लिंटन, लियोनार्डो द विंची, अल्बर्ट आइंस्टीन, बेंजामिन फ्रेंकलिन, ग्रेटा गार्बो, इलियास होव, निकोल किडमैन, गैरी सोबर्स, ब्रायन लारा, सौरव गांगुली, वसीम अकरम, माइकल एंजेलो, मर्लिन मनरो, पेले, प्रिंस चार्ल्स, क्वीन नी विक्टोरिया, क्रिस्टोफर रीव, जिमी कोनर्स, टाम क्रूज, सिल्वेस्टर स्टेलोन, बीथोवन, एच जी वेल्स और अपने देश के बाप बेटा बच्चन जी सब खब्बू।
है ना मजेदार लिस्ट।
एक अजीब बात है कि हम अपने ही खब्बू साथियों के बारे में कितना कम जानते हैं। उनकी तकलीफें, जरूरतें, उनकी सुविधाएं और उनकी परेशानियां हम हमेशा अनदेखी कर जाते हैं। वैसे तो मैंने ये भी देखा है कि खुद खब्बू लोग अपनी दुनिया यानी खब्बुओं की दुनिया के बारे में कुछ नहीं जानते। आज तक मुझे अपने बेटे के अलावा एक भी लैफ्टी ऐसा नहीं मिला जिसे इस दिन के बारे में पता हो।
ज्यादातर खब्बू ड्राइवर पहली ही बार में ड्राइविंग टैस्ट पास कर लेते हैं। गुजरात में ही आपको सबसे ज्यादा खब्बू डॉक्टर मिलेंगे। गुजरात में आपको कई पति—पत्नी दोनों ही खब्बू मिल जायेंगे। दुनिया भर के खब्बुओं को एक मंच पर लाने के लिए एक वेबसाइट है lefthandersday.com इस साइट पर कोई भी खब्बू सदस्य बन सकता है।
खब्बुओं की जरूरतें बेशक वही होती हैं जो सज्जुओं की होती हैं, लेकिन उनके हाथ की करामात अलग होती है।
ढेरों चीजें हैं जो हम रोजाना इस्तेमाल करते हैं - कैंची, कटर, रसोई का सामान, कीबोर्ड, गिटार, माउस, पैन, स्क्रू ड्राइवर यानि सब कुछ। ऐसे में कोई दुकान भी तो होगी जो इनका ख्याल रखे और सब कुछ खब्बुओं को ही बेचे। ये दुकान है www.anythinglefthanded.co.uk यहां सिर्फ और सिर्फ खब्बुओं द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली चीजें मिलती हैं।
अक्सर जुड़वां बच्चों में से एक खब्बू होता है।
हकलाना और डाइलेक्सिया जैसे रोग खब्बुओं के हिस्से में ज्यादा आते हैं, क्योंकि उन्हें ठोक पीट कर सज्जू बनाने की कोशिशें सबसे ज्यादा होती हैं।
कागजों पर लगाये गये ऑलपिन से ही आप पता लगा सकते हैं कि इसे लैफ्टी ने लगाया है। दुनिया के लगभग सभी खब्बू आजीवन दायें हाथ वालों के लिए बनायी गयी चीजें इस्तेमाल करने के लिए बाध्य होते हैं।
ये जानना रोचक हो सकता है कि कोई व्यक्ति कितने प्रतिशत लैफ्टी है। मतलब अपने कितने काम बायें अंगों से करता है। आंख मारने से लेकर लिफ्ट मांगने तक।
खब्बू बेशक हर क्षेत्र कला, खेल, लेखन और संगीत में उत्कृष्ट होते हैं लेकिन वे आम तौर पर हॉकी खिलाड़ी नहीं होते।
क्यों का जवाब आप खुद सोचें।
(सूरज प्रकाश हिंदी के वरिष्ठ लेखक और अनुवादक हैं। उनसे [email protected] पर संपर्क कर सकते हैं।)