क्या पानी से भी फैल सकता है कोरोना वायरस, दुनियाभर के वैज्ञानिक बता रहे ये बातें
यूनिसेफ के अनुसार देश की 20 प्रतिशत से अधिक शहरी आबादी के पास ऐसी सुविधा नहीं है कि वे साबुन और साफ़ पानी से हाथ धो सकें। दूसरी तरफ कोरोना वायरस से बचने का यही तरीका दिनभर मीडिया प्रसारित कर रहा है...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
जनज्वार। जर्नल ऑफ़ एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी के नवीनतम अंक में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार कोरोना वायरस (SARS-CoV-2) के पर्यावरण में विस्तार के सही आकलन के लिए स्वास्थ्य वैज्ञानिकों और पर्यावरण वैज्ञानिकों को एकजुट होकर अध्ययन करना आवश्यक है। सभी वायरस गुण में एक-दूसरे से अलग होते हैं, इसलिए किसी एक वायरस के अध्ययन से दूसरे वायरस के गुणों को नहीं बताया जा सकता। वायरसों में बहुत भिन्नता भी होती है, कुछ हवा से फैलते हैं, कुछ स्पर्श से, कुछ पानी से फैलते हैं, कुछ ठंढे मौसम में तेजी से फैलते हैं तो कुछ गर्मी में, कुछ पर प्रोटीन का आवरण होता है तो दूसरे पर नहीं होता।
कोरोना वायरस के साथ समस्या यह है कि इसपर अभी बहुत अध्ययन किये नहीं गए हैं। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की प्रोफ़ेसर अलेक्सांद्रिया बोएह्म और क्रिस्ता विग्गिन्ग्तों ने इस शोधपत्र को लिखा है और इनका दल अमेरिका के नेशनल साइंस सेंटर के फण्ड से कोरोना वायरस के प्रसार से सम्बंधित गहन अध्ययन की तैयारी में है।
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अलेक्सांद्रिया बोएह्म के अनुसार इस अध्ययन का एक महत्वपूर्ण आयाम है- पानी और गंदे पानी में इसके प्रसार का अध्ययन। अनेक दूसरे अध्ययन के अनुसार कोरोना वायरस को संक्रमित व्यक्ति के मल से भी अलग किया गया है, इसलिए इसके गंदे पानी और पानी में फ़ैलने की संभावना है। हालांकि यह इसके प्रसार का सबसे महत्वपूर्ण साधन नहीं होगा, पर यदि ऐसा होता है तब प्रभाव तो अवश्य पड़ेगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मार्च के आरम्भ में बताया कि कोरोना वायरस पानी से नहीं फैलता बल्कि केवल संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने पर या फिर उसकी छींक और खांसी से ही फैलता है। लेकिन ऑनलाइन जर्नल केडब्लूआर के 24 मार्च के अंक में नीदरलैंड के वैज्ञानिकों का दावा है कि गंदे पानी के उपचार संयंत्र में कोरोना वायरस के तीन सक्रिय जींस मिले हैं। यहां यह याद रखना भी जरूरी है कि नीदरलैंड उन देशों में शुमार है जहां इसके बहुत अधिक मामले नहीं हैं।
पर्यावरण कार्यकर्ता ब्रज किशोर झा के अनुसार यदि कोरोना वायरस मल के साथ पानी में मिल रहा है तब यह निश्चित तौर पर नदियों में भी पहुंचेगा। हमारे देश में नदियों के किनारे की आबादी इसके पानी का सीधा उपयोग करती है और अधिकतर शहरों की जल आपूर्ति भी इन्ही नदियों पर निर्भर करती है। यदि आपूर्ति किये जाने वाले पानी को साफ़ करने के बाद क्लोरिनेशन प्रभावी तौर पर नहीं किया गया, तब ऐसे वायरस जल आपूर्ति में भी पनप सकते हैं। वर्तमान में जब यह वायरस तेजी से पूरे देश में फ़ैल रहा है तब जहां भी संभव हो केवल भूजल से ही जल आपूर्ति करनी चाहिए क्योंकि यह अपेक्षाकृत सुरक्षित होगा।
वर्ष 2017 में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि दुनिया भर में जितना गन्दा पानी उत्पन्न होता है, उसमें से लगभग 80 प्रतिशत को बिना किसी उपचारण के ही भूमि पर, नदियों में या सीधे समुद्र में बहा दिया जाता है। प्रतिष्ठित पत्रिका टाइम के 18 मार्च के अंक में प्रकाशित एक लेख के अनुसार देश में 16 करोड़ आबादी को साफ़ पानी नसीब नहीं होता।
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यूनिसेफ के अनुसार देश की 20 प्रतिशत से अधिक शहरी आबादी के पास ऐसी सुविधा नहीं है कि वे साबुन और साफ़ पानी से हाथ धो सकें। दूसरी तरफ कोरोना वायरस से बचने का यही तरीका दिनभर मीडिया प्रसारित कर रहा है। नीति आयोग की दो वर्ष पहले की एक रिपोर्ट के अनुसार देश की 60 करोड़ आबादी को पर्याप्त पानी की सुविधा नहीं है और हरेक वर्ष 2 लाख लोग गंदे पानी से होने वाले रोगों से मर जाते हैं।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट ने एक आकलन किया है कि यदि आप सीधे नल से 20 सेकेंड हाथ धो रहे हैं, जैसा कि लगातार निर्देश दिए जा रहे हैं, तब एक बार हाथ धोने में 1.5 से 2 लीटर पानी खर्च होगा। आपको बार-बार हाथ धोने को कहा जा रहा है, तो यदि आप दिन में 10 बार हाथ धोते हैं तब एक दिन में आप 20 लीटर तक पानी केवल हाथ धोकर बहा देते हैं। इस हिसाब से एक परिवार केवल हाथ धोने में ही दिनभर में 100 लीटर पानी बहा रहा है। जाहिर है, ऐसे में जल आपूर्ति व्यवस्था पर बोझ बढ़ रहा होगा।
इससे मिलते-जुलते सार्स वायरस के बारे में स्पष्ट तौर पर यह पता है कि वह गंदे पानी में भी 2 से 14 दिनों तक सक्रिय रह सकता है। इसलिए आज के दौर में जब यह वायरस चारों तरफ फ़ैल रहा है तब, गंदे पानी को साफ करने वाले सयंत्रों के कर्मचारियों को अपने स्वास्थ्य और सुरक्षा की विशेष सावधानी रखने की जरूरत है।
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जाहिर है, कोरोना वायरस पर अभी बहुत अध्ययन नहीं किये गए हैं, इसलिए इसकी पूरी जानकारी नहीं है। पर, कोई भी वैज्ञानिक या वैज्ञानिक संस्थान यह स्पष्ट तौर पर नहीं बता रहा है कि इस वायरस का प्रसार गंदे पानी और पानी से होगा या नहीं, फिर भी सावधानी के लिए सभी कह रहे हैं। क्या हमारी सरकार इस विषय पर ध्यान देगी?
हमारे देश में तो अधिकतर गन्दा पानी बिना किसी उपचारण के सीधे नदियों में मिलता है और नदियों का इस्तेमाल किनारे बसी जनता सीधे तौर पर करती है। कोरोना वायरस के प्रसार ने एक बार फिर हमें अपने देश के जल प्रबंधन की और ध्यान दिलाया है, क्या इससे इस बार कुछ सबक लेंगें और प्रतिवर्ष गंदे पानी से होने वाली 2 लाख असामयिक मौतों को कुछ कम कर पायेंगे?