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विमर्श

एनकाउंटर और एक्स्ट्रा-ज्यूडिशियल हत्याओं को महिमामंडित करते देश में जनांदोलनों को कुचलती सरकार

Janjwar Team
31 Jan 2020 7:41 AM GMT
एनकाउंटर और एक्स्ट्रा-ज्यूडिशियल हत्याओं को महिमामंडित करते देश में जनांदोलनों को कुचलती सरकार
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रिपोर्ट में हुआ खुलासा, मीडिया सरकार के निर्देश पर सिर्फ झूठी और भ्रामक खबरें फैलाने भर का माध्यम, विरोध का स्वर उठाने वालों को या तो गायब कर दिया जाता है या फिर देशद्रोही बताकर डाला जा रहा है जेलों में, अल्पसंख्यक और जनजातियाँ हैं इन सबके बीच सबसे ज्यादा परेशान...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

शिया-प्रशांत क्षेत्र के सन्दर्भ में एमनेस्टी इंटरनेशनल की वार्षिक रिपोर्ट 2019 के अनुसार पूरे क्षेत्र में सत्तावादी, दक्षिणपंथी और तथाकथित राष्ट्रवादी सरकारों का बोलबाला है। जाहिर है, इन सरकारों को जनता की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि ये सरकारें केवल अपने एजेंडा पर काम करती हैं। इसलिए अधिकतर देशों में असंतोष बढ़ता जा रहा है, और आन्दोलन भी बढ़ रहे हैं।

दूसरी तरफ अधिकतर देशों में सरकारें आन्दोलनों को बर्दाश्त नहीं कर पा रही हैं और इन्हें कुचलने के लिए दमन की नीतियाँ अपना रही है। मानवाधिकार की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं और सही खबर देने वाले पत्रकारों को सरकार अपना निशाना बना रही है, विरोध का स्वर उठाने वालों को या तो गायब कर दिया जाता है या फिर देशद्रोही बताकर जेल में डाला जा रहा है। इन सबके बीच लगभग हरेक देश के अल्पसंख्यक और जनजातियाँ परेशान हैं।

मारे देश में तो ऐसा ही हो रहा है। पिछले 6 वर्षों में समाज का ताना-बाना ही बदल गया है। यह सब वर्ष 2014 से भाजपा की सरकार आने के बाद से अब तक अपने चरम पर पहुँच चुका है, अब तो सामान्य जनता को लगाने लगा था कि घोषित इमरजेंसी में भी इतनी पाबंदियां नहीं थीं।

जाति और धर्म का भ्रम पाले देश में पहले तो धर्म की घुट्टी इस कदर पिलाई गयी कि नोटबंदी की तकलीफ भी जनता इसलिए आराम से सह गयी, क्योंकि उसे यकीन था कि यही सरकार देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने और पाकिस्तान को सबक सिखा सकती है। दूसरी तरफ सरकार आश्वस्त हो गयी कि अब जनता विरोध करना भूल चुकी है। सरकार अपने जातीय और धार्मिक ध्रुवीकरण के एजेंडा को आगे बढाती रही। इसका ऐसा असर हुआ कि एक उन्मादी समुदाय पैदा हो गया जो कहीं भी अल्पसंख्यकों पर हमला कर उन्हें मार रहा है, और फिर सरकार और पुलिस उसे बचाने में तत्पर रहते हैं।

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सके बाद भाजपा के एजेंडा को अमल में लाने के लिए और जनता को गुमराह करने वाले ताबड़तोड़ सरकारी फैसलों ने जनता को सोचने पर मजबूर किया। अधिकतर फैसलों में अल्पसंख्यक पिसते रहे। विश्वविद्यालयों को गुलामी की जंजीरों से जकड दिया गया। जिस भी छात्र ने सरकार के विरुद्ध आवाज उठाई वह देशद्रोही करार दिया गया। वर्ष 2019 के चुनावों के बाद से तो सरकार ने ऐसे फैसलों की झड़ी लगा दी और सबमें निशाना अल्पसंख्यक समुदाय के लोग ही थे।

र नागरिकता संशोधन क़ानून यानी CAA-NRC के बाद से देश की जनता अचानक जाग गयी। केंद्र सरकार अब तक जनता को शांत ही समझ रही थी, पर जनता के आन्दोलनों ने उसे अचंभित कर दिया और फिर दमन चक्र शुरू किया गया। सरकार ओर पुलिस दमनकारी नीतियाँ अपना रहे हैं, पर जनता का आक्रोश बढ़ता जा रहा है।

शिया-प्रशांत क्षेत्र के अधिकतर देशों में ऐसा ही हो रहा है। रिपोर्ट के अनुसार लगभग हरेक देश में अल्पसंख्यकों और जनजातियों को निशाना बनाया जा रहा है। सरकारें आन्दोलनों को कुचलने के नए रास्ते अपना रही हैं, जनता पर हिंसा बढ़ती जा रही है, जनता की मौलिक समस्याओं पर सरकार का ध्यान नहीं है, सशस्त्र मुठभेड़ बढ़ रहे हैं, रिफ्यूजी की समस्या बढ़ रही है और पुलिस और सशस्त्र बल आवाज उठाने वालों को गायब कर रहे हैं, मार रहे हैं या फिर बिना कारण कारागार में डाल रहे हैं।

रिपोर्ट के अनुसार पूरे क्षेत्र में मानवाधिकार का हनन किया जा रहा है, पर पूरी दुनिया इस पर आवाज नहीं उठा रही है। भारत और चीन में सरकारी तंत्र अल्पसंख्यकों को अपना निशाना बना रहा है और उनकी आवाज दबा रहा है। हांगकांग में भी लम्बे समय से चल रहे आन्दोलनों पर बार-बार सुरक्षाकर्मियों का कहर टूटता है, पर आन्दोलन चल रहे हैं और नए लोग इससे जुड़ते जा रहे हैं। चीन में मुस्लिम समुदाय के विरुद्ध नए-नए क़ानून बनाए जा रहे हैं और उन्हें प्रतारित किया जा रहा है।

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फगानिस्तान में तालिबान के समर्थक अल्पसंख्यकों को अपना निशाना बना रहे हैं। म्यांमार में तो रोहिंग्या समुदाय के विरुद्ध सेना ने ही मोर्चा खोल रखा है। ऑस्ट्रेलिया और जापान अपने यहाँ आये शरणार्थियों को खदेड़ने में व्यस्त हैं। पाकिस्तान में देशद्रोह और ईशनिंदा के नाम पर लोगों को प्रताड़ित किया जा रहा है। फिलीपींस में ड्रग तस्करी के नाम पर निर्दोषों को मारा जा रहा है।

रिपोर्ट के अनुसार अधिकतर देशों में मीडिया पूरी तरह सरकार की भक्ति में लीन और मीडिया ट्रायल सामान्य सी बात हो गयी है। मीडिया केवल सरकार के निर्देश पर झूठी और भ्रामक समाचारों को फैलाने का माध्यम रह गया है। अधिकतर देशों के न्यायालय भी सरकार के विरुद्ध जाने की हिम्मत खो बैठे हैं।

के अनुसार हालत ऐसी हो गयी है कि सुरक्षाबलों द्वारा एनकाउंटर और एक्स्ट्रा-ज्यूडिशियल हत्याओं को भी जायज ठहराया जा रहा है। हमारे देश में तो इसे जायज ठहराने के साथ-साथ इसका महिमामंडन भी किया जा रहा है। निर्दोषों को मारने वाले सुरक्षाकर्मियों का प्रमोशन तुरंत कर दिया जाता है, और मीडिया दिनभर उन्हें फूलों से लदा दिखाता रहता है। यही नहीं, देश में बीजेपी या सहयोगी दलों द्वारा शासित राज्यों में तो पुलिस अपनी क्रूरता और दमन में होड़ कर रही है।

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