बलात्कार की धमकी बन चुकी है न्यू इंडिया की राष्ट्रभाषा और राजभाषा
जिस देश की सरकार अपनी मर्जी से किसी का भी सोशल मीडिया एकाउंट बंद करा सकती है, तो फिर महिलाओं को बार-बार बलात्कार की धमकी देने वालों के अकाउंट को ना बंद कर आखिर वह क्या साबित करना चाहती है, आखिर ऐसे लोगों को प्रोत्साहित करे भी क्यों न, क्योंकि पूरी सरकार में ही खुलेआम रेप की धमकी देने वालों की लगी है लाइन...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
हम जिस न्यू इंडिया में हैं, उसमें बलात्कार की धमकी, वेश्या, बाजारू, बिकी हुई, दूसरी धमकियां, जान से मारने की धमकी, गोली से उड़ाने की धमकी, कब्र से लाश निकाल कर बलात्कार की धमकी, बदला लेंगें, सबक सिखाना है, देशद्रोही, पाकिस्तान भेज देंगे, टुकड़े-टुकड़े गैंग इत्यादि राष्ट्रभाषा और राजभाषा दोनों ही बन चुके हैं।
प्रधानमंत्री मोदी भी ऐसी भाषा का प्रयोग करते हैं और गृहमंत्री तो केवल इसी भाषा का प्रयोग करते हैं। दूसरे छोटे बड़े मंत्री, भाजपा के चुनाव हारे प्रवक्ता और दूसरे नेता भी इसी राह पर हैं। जाहिर है सरकार जब ऐसी भाषा का प्रयोग कर रही हो तो उसे कोई आपत्ति नहीं होगी, पर आश्चर्य यह है कि न्यायपालिका और चुनाव आयोग को भी तब तक आपत्ति नहीं होती जब तक ऐसे मधुर प्रवचन भाजपा के लोगों के मुखारविंद से झड़ते हैं।
पिछले कुछ महीनों से कभी जेएनयू, कभी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, कभी जामिया मिलिया के छात्रों और विशेष तौर पर छात्राओं के लिए यह सब हम सुनते आ रहे हैं और शाहीनबाग के अभूतपूर्व आन्दोलन के बाद तो यहाँ की महिलाओं का स्वागत ही सत्ताधारी ऐसे प्रवचनों से करते हैं। जब तक एक नेता के प्रवचन पर बहस शुरू होती है, तबतक कई और नेता यही कारनामा दुहरा चुके होते हैं।
जाहिर है, इस न्यू इंडिया में महिलाओं और लड़कियों को खुलेआम ह्त्या और बलात्कार की धमकी देने और वेश्या कहने का एक रिवाज सा चल पड़ा है, और इसे सरकारी और तमाम संवैधानिक संस्थाओं का पुरजोर संरक्षण भी प्राप्त है। हालत यहां तक पहुँच गयी है कि राजनीति में महिला नेता भी अब इसका लगातार शिकार बनने लगीं हैं, और इनकी शिकायत भी कोई नहीं सुनता।
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले वर्ष के लोकसभा चुनावों के दौरान मार्च से मई 2019 के बीच राजनीति से जुड़ी करीब 100 महिला नेता इसका शिकार हुईं। वैसे इस शर्मनाक रिपोर्ट पर शायद ही किसी को आश्चर्य होगा क्योंकि दिवंगत नेता सुषमा स्वराज तो विदेश मंत्री रहते भी सोशल मीडिया पर बीजेपी के ट्रोलआर्मी से घिर गयीं थीं और तब भी उनके साथ सत्तापक्ष से नितिन गडकरी को छोड़कर किसी ने साथ नहीं दिया था।
संबंधित खबर : ट्वीटर बन चुका है महिला नेताओं को बलात्कार-भद्दी गालियां और धमकियां देने का सार्वजनिक मंच
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार ट्विटर पर महिला नेताओं को हत्या, बलात्कार की धमकी या फिर अभद्र शब्दों का प्रयोग भारत में बहुत सामान्य है। ऐसा लगभग हरेक देश में होता है, पर हमारा देश जो न्यू इंडिया है, उसमें इसकी संख्या अन्य देशों की तुलना में बहुत अधिक है।
रिपोर्ट के अनुसार मार्च और मई 2019 के बीच ट्विटर पर जितने भी संदेशों में महिला नेताओं के नाम थे, उनमें से लगभग 15 प्रतिशत में अपशब्द या धमकियां थीं। इस दौरान लगभग दस लाख संदेशों में 95 महिला राजनितिज्ञों के नाम थे और इनमें से 20 प्रतिशत से अधिक में लिंग-भेद करने वाले या फिर महिलाओं से नफ़रत करने वाले शब्द लिखे गए थे। महिला राजनितिज्ञों के विचारों पर अपनी असहमति जताने के बजाय ट्विटर पर इनके लिंग, जाती, धर्म, विवाहित/अविवाहित, या फिर उनकी पहचान से सम्बंधित दूसरे विशेषताओं पर टिप्पणी की गयी या फिर धमकी दी गयी।
इंडियन नेशनल कांग्रेस की सोशल मीडिया कन्वेनर हसिबा अमिन के अनुसार उन्होंने वर्ष 2014 में जब से राजीति में कदम रखा है, तब से यह स्थिति लगातार बदतर होती जा रही है। बलात्कार की धमकियां तो सामान्य हैं, इसके अतिरिक्त चरित्र हनन और किसी बुजुर्ग के साथ काल्पनिक रिश्ते जैसी टिप्पणियाँ भी लगातार आतीं हैं। इन सबसे तंग आकर हसिबा अमिन जब बहुत जरूरी हो जाता है तभी ट्विटर पर आतीं हैं।
रिपोर्ट के अनुसार अविवाहित राजनितिज्ञों की कई गुणा अधिक प्रतारणा की जाती है, जबकि मुस्लिम महिला राजनितिज्ञों को दूसरे धर्म के राजनितिज्ञों की तुलना में 94 प्रतिशत अधिक धमकियां दी जाती हैं।
सत्ता से जुडी राजनीतिज्ञ शाजिया इल्मी भी ऐसी ही धमकियां झेलती हैं। इनके अनुसार महिलाओं को अधिक संख्या में राजनीति में आना चाहिए, पर ध्यान रहे कि चरित्र हनन इसका एक अभिन्न अंग है। राजनीति में महिलाओं के लिए वेश्या शब्द का उपयोग बहुत सामान्य है और मुस्लिम पुरुष राजनितिज्ञ की तुलना में महिला राजनीतिज्ञ को अधिक लांछन और धमकी झेलनी पड़ती है।
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सिस्ट लेनिनिस्ट) की कविता कृष्णन के अनुसार सोशल मीडिया कंपनी को अपशब्दों ये धमकियों के बारे में रिपोर्ट करने पर भी कुछ नहीं होता, क्योंकि ट्विटर के अनुसार इससे उनकी नीतियों का उल्लंघन नही होता। एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के अविनाश कुमार के अनुसार सोशल मीडिया पर धमकियां नए भारत का एक सामान्य है और जब ट्विटर से इस बारे में बात की गयी तब उनका जवाब था कि हम धमकियों और अपशब्दों का आकलन करते हैं।
ट्विटर पर लगातार यह आरोप लगते रहे हैं कि वह भारत सरकार के साथ मिलकर काम करती है, और सरकार के इशारे पर किसी का भी अकाउंट ब्लाक कर देती है। वर्ष 2017 से अब तक सरकार लगभग 141 ट्विटर अकाउंट को बंद कराने/नियंत्रित करने के साथ-साथ कम से कम 10 लाख ट्वीट किये मैसेज को हटवा चुकी है। यह सभी ट्वीट कश्मीर के हालात से सम्बंधित थे। इसका खुलासा न्यू यॉर्क स्थित कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स ने किया है।
कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स ने आरोप लगाया है कि ट्विटर भारत सरकार के अघोषित सेंसरशिप में बड़ी भूमिका निभा रहा है। हालत यहाँ तक पहुंच गयी है कि पिछले दो वर्षों के दौरान भारत में जितने ट्विटर अकाउंट पर पाबंदी लगाई गयी है और जितने मैसेज डिलीट किया गए हैं वह आंकड़ा पूरी दुनिया के सभी देशों को जोड़ने के बाद की संख्या से भी बड़ा है।
संबंधित खबर : CAA-NRC के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे भाजपाइयों ने की डिप्टी कलेक्टर से बदतमीजी, बाल खींचने का वीडियो हुआ वायरल
पूरी दुनिया में सरकारों के अनुरोध पर जितने मैसेज ट्विटर आधिकारिक तौर पर डिलीट करता है, उसमें से 51 प्रतिशत से अधिक भारत में किये जाते हैं। इसका सीधा सा मतलब है कि सरकार वर्ष 2017 से ही कश्मीर की सारी खबरों को दबाती चली आ रही है। जिन लोगों के ट्विटर अकाउंट पर पाबंदी लगाई गयी है, उनमें से अधिकतर पाबंदी ऐसी है जिसमें मैसेज देश में नहीं देखा जा सकता।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बेर्क्मन क्लीन सेंटर में ट्विटर की गतिविधियों का गहन विश्लेषण किया जाता है। इसके अनुसार अगस्त 2017 से अब तक भारत सरकार ने ट्विटर अकाउंट बंद करने के या फिर मैसेज डिलीट करने के कुल 4722 अनुरोध/आदेश किये, इनमें से 131 अनुरोध स्वीकार कर इस पर कार्यवाही की गयी। कुल अनुरोध की तुलना में कार्यवाही वाले अनुरोध की संख्या कम लग सकती है, पर यहाँ यह जानना भी आवश्यक है कि एक ही अनुरोध में अनेक अकाउंट बंद करने के या फिर हजारों मैसेज डिलीट करने के बारे में कहा जाता है।
यह भी पढ़ें : JNU हिंसा में कथित हमलावर कोमल शर्मा ने क्यों खटखटाया राष्ट्रीय महिला आयोग का दरवाजा
इस अवधि की तुलना में वर्ष 2012 से जुलाई 2017 तक भारत सरकार ने ऐसे कुल 900 अनुरोध/आदेश किये, पर इसमें से महज एक अनुरोध पर ट्विटर ने कार्यवाही की। कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स के अनुसार, यह स्पष्ट है कि अगस्त 2017 के बाद एकाएक भारत सरकार ट्विटर को सेंसर करने लगी और इसमें ट्विटर ने भी सरकार का बखूबी साथ दिया।
यदि सरकार अपनी मर्जी से किसी के अकाउंट बंद करा सकती है, तो फिर महिलाओं को बार-बार बलात्कार की धमकी देने वालों के अकाउंट को ना बंद कराकर सरकार ने अपना इरादा स्पष्ट कर दिया है, और ऐसे लोगों को प्रोत्साहित किया है। अब तो डीपफेक्स के मामलों से से भी महिला राजनीतिज्ञों को जूझना पड़ रहा है। इसका सामना देश की सबसे कम उम्र की महिला सांसद चंद्रानी मुर्मू को करना पड़ा था।
यह भी पढ़ें — CAA : पुलिस ने मुनव्वर राना की बेटियों समेत 100 से अधिक प्रदर्शनकारी महिलाओं के खिलाफ दर्ज किया ‘दंगा कराने’ का केस
आश्चर्य यह है कि इसके बारे में महिला राजनीतिज्ञों की तरफ से कोई आवाज भी नहीं उठती। कुछ महीने पहले जारी की गयी एक रिपोर्ट में भारत को महिलाओं पर यौन हिंसा के सन्दर्भ में वर्ष 2019 के दौरान सबसे असुरक्षित देशों की सूची में दूसरा स्थान दिया गया है। वर्ष 2018 में इस सूची में भारत का स्थान चौथा था। इस रिपोर्ट को आर्म्ड कनफ्लिक्ट लोकेशन एंड इवेंट डाटा प्रोजेक्ट नामक संस्था ने तैयार किया है। इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में युद्ध और सामाजिक अराजकता बढ़ने के कारण महिलाओं पर यौन हिंसा बढ़ती जा रही है।