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समाज

पहाड़ की लोक चित्रकला ऐपण को मॉडर्न लुक दे नई पहचान दिलाती कुमाऊं की मीनाक्षी खाती

Prema Negi
4 Sep 2019 7:03 AM GMT
पहाड़ की लोक चित्रकला ऐपण को मॉडर्न लुक दे नई पहचान दिलाती कुमाऊं की मीनाक्षी खाती
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मीनाक्षी ने ऐपण कला को लेकर चाय के कप, नेम प्लेट से लेकर चाबी के छल्ले, रिंग, पूजा की थाली सहित विभिन्न प्रकार के किये हैं नये प्रयोग, मीनाक्षी के ऐपण के साथ ये मॉडर्न अभिनव प्रयोग खूब भा रहे लोगों को...

संजय चौहान की रिपोर्ट

पनी समृद्धशाली सांस्कृतिक विरासत व अनमोल परंपराओं, लोककलाओं के कारण उत्तराखंड देश ही नहीं, बल्कि दुनिया में अपनी अलग ही पहचान रखता है। यहां पर ऐसी कई सारी लोक कलाएं भी मौजूद हैं, जो बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। इन्हीं में से एक लोककला / लोक चित्रकला है, जिसे ऐपण (Aipan) कहा जाता है। कुमाऊं की इस गौरवशाली परंपरा को नयी पहचान दिलाने वाली का कार्य कर रही हैं 'ऐपण गर्ल' के नाम से मशहूर मीनाक्षी खाती।

मीनाक्षी नें 'ऐपण' को दिया नया लुक, लोगों ने सराहा

कुमाऊं मंडल में नैनीताल जनपद के रामनगर की रहने वाली मीनाक्षी वर्तमान में बीएससी (PCM) अंतिम वर्ष की छात्रा है। बेहद छोटी उम्र में ही वो वर्तमान में अपनी बेहतरीन चित्रकला से लोगों के मध्य चर्चित है। मीनाक्षी की शानदार कला को देखकर हर कोई मीनाक्षी को 'ऐपण गर्ल' कहकर संबोधित करते हैं। मीनाक्षी ने अपनी स्कूल और काॅलेज में अपने सहपाठियों को भी ऐपण कला सिखाई। वहीं मीनाक्षी ने ऐपण कला नया लुक दिया, ताकि इस कला को बढ़ावा मिले।

मीनाक्षी ने चाय के कप, नेम प्लेट से लेकर चाबी के छल्ले, रिंग, पूजा की थाली सहित विभिन्न प्रकार अभिनव प्रयोग ऐपण कला को लेकर किया है। ये अभिनव प्रयोग लोगों को बेहद भाये। हर किसी ने इसकी बहुत तारीफ की।

मीनाक्षी कहती हैं, 'हमें अपनी इस लोक विरासत को नई पहचान दिलाने के लिए कुछ मार्डन प्रयोग करने होंगे, ताकि ये कला लोगों तक आसानी से पहुंच सके। मैंने ऐपण के जरिये छोटी सी कोशिश की है कि अपनी लोकसंस्कृति को दूसरे लोगों तक पहुंचा सकूं। अभी मैं पढ़ाई कर रही हूँ इसलिए ज्यादा समय नहीं मिल पाता है। फिर भी जितना समय मिलता है तो रंग और कूची संग ही अपना समय व्यतीत होता है।'

पिछले दिनों ज्योलीकोट में देश के विभिन्न प्रदेशों से आये पर्यटकों के एक ग्रुप को कुमाऊं की ऐपण कला के बारे में जानकारी देने व सिखाने के लिए मीनाक्षी को आमंत्रित किया। मीनाक्षी ने उन्हें ऐपण कला के बारें में पर्यटकों को बताया और ऐपण बनाना भी सिखाया। मीनाक्षी की ऐपण कला को देख पर्यटक अभीभूत हो गये और बधाइयाँ भी दी।

र्यटकों के एक ग्रुप को कुमाऊं की ऐपण कला के बारे में जानकारी देती मीनाक्षी

दादी और माँ से विरासत में मिली 'ऐपण' बनाने की कला

कुमाऊनी ऐपण का जो रूप सदियों पहले था वही रूप आज भी है, बल्कि यूं कह सकते हैं कि समय के साथ-साथ यह और भी समृद्ध हो चला है। इसमें सबसे अहम योगदान यहां की महिलाओं का रहा है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी इस कला को एक दूसरे को हस्तांतरित करती है। मीनाक्षी ने भी ऐपण कला की बारीकियों को अपनी दादी और माँ से सीखा।

मीनाक्षी कहती हैं, 'जब भी घर में मेरी दादी और माँ ऐपण बनाती थी तो मैं बडे ध्यान से देखती थी। मुझे बचपन से ही ऐपण कला आकर्षित करती थी और आज मैं भी ऐपण बनाने लगी हूँ।' ऐपण गर्ल मीनाक्षी ने अपने पूरे घर के कोने—कोने को ऐपण की खूबसूरती से सजाया है। जहां भी नजर पड़े आपको बेहतरीन चित्रकारी का नमूना दिखाई देगा। ये घर नहीं, बल्कि चित्रकला का कोई म्यूजियम नजर आता है।

गौरतलब है कि कुमाऊं की इस समृद्धशाली कला को महिलाओं ने ही जीवित रखा है। इस अनमोल धरोहर को सजाने, संवारने, सहेजने की जिम्मेदारी महिलायें बरसों से बखूबी निभाती आ रही हैं। महिलाएं इस चित्रकला के माध्यम से अपने मन के भाव व अपनी शुभकामनाओं की अभिव्यक्ति उस ईश्वर के प्रति व अपने घर के प्रति करती है। इससे न सिर्फ घर सुंदर दिखता है, बल्कि पवित्र भी हो जाता है। मन व माहौल एक नये उत्साह और उमंग से भर जाता है।

ये है कुमाऊं की लोक विरासत ऐपण कला

कुमाऊं में किसी भी मांगलिक कार्य के अवसर पर अपने अपने घरों को सजाने की परंपरा है। यह कुमाऊं की एक लोक चित्रकला की शैली है, जो अपनी अलग पहचान बना चुकी है। परंपरागत ऐपण प्राकृतिक रंगों से बनाए जाते हैं जैसे गेरू (एक प्रकार की लाल मिट्टी जो पहाड़ में पाई जाती है) और चावल के आटे (चावल के आटे में पानी मिलाकर उसे थोड़ा पतला बनाया जाता है जिसे स्थानीय भाषा में बिस्वार कहते हैं) से बनाई जाती है।

मीनाक्षी की बनाई ऐपण कला नये लुक में

ससे महिलाएं विभिन्न प्रकार के चित्र बनाकर घर के आंगनों, दरवाजों, दीवारों, मंदिरों को सजाती हैं, जिन्हें ऐपण कहते हैं। जो घर की सुंदरता को तो बढ़ाते ही हैं, साथ ही साथ मन में पवित्रता का भाव भी पैदा कर देते हैं। ऐपण का अर्थ लीपने से होता है और लीप शब्द का अर्थ अंगुलियों से रंग लगाना है।

पण बनाने वक्त महिलाएं चांद, सूरज, स्वास्तिक, गणेश, फूल—पत्ते, बेल—बूटे, लक्ष्मी के पैर, चौखाने, चौपड़, शंख, दिये, घंटी आदि चित्र खूबसूरती से जमीन पर उकेरती हैं। जिस जगह पर ऐपण बनाने होते हैं, उस जगह की पहले गेरू से पुताई की जाती है उसके बाद उसमें बिस्वार से डिजाइन बनाये जाते हैं। रंग और कूची की इस कला को उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में ऐपण नाम से जाना जाता है।

मीनाक्षी थाली पर बनाई अपनी मॉर्डन ऐपण के साथ

केरल में इसे कोल्लम, बंगाल त्रिपुरा व आसाम में अल्पना, उत्तर प्रदेश में साची और चौक पुरना, बिहार में अरिपन, आंध्र प्रदेश में मुग्गु, महाराष्ट्र में रंगोली और राजस्थान में इस कला को मॉडला के नाम से जाना जाता है। सभी कलाओं में रंगो से चित्रकारी की जाती है।

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