जिस अधिकारी ने बनायी मोदी सरकार की ये योजना, उसी को है भारत के पुलिसिया राज बन जाने का डर

मनोरंजन कुमार ने कहा कि मैं ये देख पा रहा था कि भारत एक पुलिसिया राज के रूप में उभर रहा है, एक बहुत शक्तिशाली पुलिसिया राज और मैं बस इतना मानता हूं कि किसी भी देश को विकसित होने के लिए जरूरी है कि घरेलू क्षेत्र एवं उद्योग-धंधों को ज्यादा स्वतंत्रता दी जाये और कम से कम पाबंदियां लगायी जायें...
कुमार संभव श्रीवास्तव की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट
जनज्वार। हफिंग्टन पोस्ट इंडिया ने जब सूचना के अधिकार के तहत राष्ट्रीय सामाजिक रजिस्ट्री (National Social Registry) से जुड़े दस्तावेजों की जांच की तो ये तथ्य सामने आया कि भारत सरकार की विवादों से घिरी सामाजिक रजिस्ट्री योजना की नींव रखने की ज़िम्मेदारी जिस अधिकारी को सौंपी गयी थी, उसने ये चेतावनी दी थी कि इस बड़े स्तर पर क्रॉस-लिंक्ड डेटाबेस तैयार करने से देश के 100 करोड़ से भी ज़्यादा लोगों की निजी ज़िंदगी और सुरक्षा प्रभावित हो सकती है, लेकिन उस अधिकारी की चेतावनियों को लगातार अनदेखा किया गया।
जैसा कि हफिंग्टन पोस्ट (HuffPost India) ने इससे पहले भी रिपोर्ट मे जिक्र किया है, सामाजिक रजिस्ट्री का मक़सद नागरिकों के सामाजिक एवं आर्थिक जीवन पर खुद-ब-खुद नज़र बनाये रखना है, ताकि सरकारी मदद के लिए उनकी योग्यता के बारे में लगातार अनुमान लगाया जा सके।
लेकिन रजिस्ट्री का काम जब आगे बढ़ने लगा तो ग्रामीण विकास मंत्रालय के तत्कालीन आर्थिक सलाहकार मनोरंजन कुमार को ऐसा लगने लगा कि आम नागरिकों पर खुफ़िया नज़र रखने में इस व्यवस्था का आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है।
मनोरंजन कुमार ने ये सवाल उठाया कि एक ऐसे समय में, जब 'पुलिस व्यवस्था और अफसरशाही नैतिकता में गिरावट से बच नहीं पा रहे हैं', इस तरह की व्यवस्था में निजता को लेकर अच्छे-खासे सुरक्षा के इंतज़ाम होने चाहिए। इस बारे में 'हफिंग्टन पोस्ट इंडिया' ने ग्रामीण विकास मंत्रालय को लिखा है और अगर जवाब आता है तो इस लेख में शामिल कर आगे चर्चा की जाएगी।

27 नवम्बर 2015 को मनोरंजन कुमार ने राष्ट्रीय सामाजिक रजिस्ट्री की अवधारणा के बारे में लिखते हुए इसे भारत सरकार के बदलाव लाने वाले एक ऐसे तरीके के रूप में बताया था, जो देश के गरीबों को सरकारी कार्यक्रमों का लाभ पारदर्शिता के साथ पहुंचाती है और सरकारी योजनाओं के असर का आंकलन करती है।
अब जबकि पांच साल बाद कुमार की कल्पना की सामाजिक रजिस्ट्री का काम पूरा होने को आया है तो कुमार को ये डर सताने लगा है कि बेहतरीन इरादों के साथ बनाई गयी यह व्यवस्था भारत के 120 करोड़ नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का काम करेगी।
डेटा और गवर्नेंस पर शोध करने वाले स्कॉलर श्रीनिवास कोडाली द्वारा सूचना के अधिकार के तहत हासिल किये गए दस्तावेज़ों में यह बताया गया है कि सामाजिक रजिस्ट्री डेटाबेसों से तैयार किया गया एक ऐसा बहुत बड़ा घुसपैठिया डेटाबेस होगा, जो आधार नंबर का इस्तेमाल कर भारत के 120 करोड़ नागरिकों की ज़िंदगी के हर पहलू पर अपनी खुफिया निगाह बनाये रखेगा।
जैसा कि 'हफिंग्टन पोस्ट इंडिया' ने इससे पहले अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि राष्ट्रीय सामाजिक रजिस्ट्री खुद ब खुद इस बात पर नजर रखेगी कि कोई भी नागरिक एक शहर से दूसरे शहर कब जा रहा है, या कब नौकरी बदल रहा है, कब नई संपत्ति खरीद रहा है, उसके परिवार में नये सदस्य का जन्म कब हो रहा है, कब किसी व्यक्ति की मौत हो रही है और कब कौन अपने शादीशुदा साथी के घर जा रहा है। ये रजिस्ट्री आधार नंबरों का इस्तेमाल करके प्रत्येक नागरिक के धर्म, जाति, आमदनी, संपत्ति, शिक्षा, शादीशुदा जिंदगी, रोजगार, उसकी विकलांगता और उसके परिवार की पीढ़ी—दर—पीढ़ी जानकारियों को एक बहुत बड़े डाटाबेस के बतौर संकलित कर लेगी।
वर्ष 2019 में ग्रामीण विकास मंत्रालय के तत्कालीन आर्थिक सलाहकार रहे मनोरंजन कुमार ने अवकाश ग्रहण करने के बाद 'हफिंग्टन पोस्ट' को बताया कि 'मैं राष्ट्रीय सामाजिक रजिस्ट्री व्यवस्था इसलिए बनाना चाहता था ताकि सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने में एक पारदर्शिता नजर आए। मुझे महसूस हुआ कि कुछ विभाग और अधिकारी ग्रामीण योजनाओं की उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहे हैं। मेरा यह मानना था कि राष्ट्रीय सामाजिक रजिस्ट्री इस तरह के गलत आंकड़ों को पेश करने से रोकेगी और गरीबों को होने वाले फायदे की सही तस्वीर सामने लायेगी।'
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लेकिन सामाजिक रजिस्ट्री को दिये गये अंतिम प्रारूप ने मनोरंजन कुमार को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि वर्तमान रूप में इसे लागू करने से भारत एक पुलिसिया राज की ओर बढ़ता चला जायेगा। व्यापक स्तर पर डेटा इकट्ठा करने के एक कट्टर समर्थक के रूप में दिखायी देने वाले मनोरंजन कुमार बाद में इससे होने वाले नुकसान की ओर इशारा करना यही बताता है कि हमारे देश की अफसरशाही को इस बात की बिल्कुल भी जानकारी नहीं है कि भारत सरकार किस तरह से एक बड़े स्तर पर डेटा के केंद्रीकरण को अपनी नीतियों का आधार बना रही है।
मनोरंजन कुमार ने कहा, 'मैं ये देख पा रहा था कि भारत एक पुलिसिया राज के रूप में उभर रहा है, एक बहुत शक्तिशाली पुलिसिया राज और मैं बस इतना मानता हूं कि किसी भी देश को विकसित होने के लिए जरूरी है कि घरेलू क्षेत्र एवं उद्योग—धंधों को ज्यादा स्वतंत्रता दी जाये और कम से कम पाबंदियां लगायी जायें।'
मनोरंजन कुमार आगे कहते हैं, 'दुर्भाग्य से आज हमने सभी सरकारी और अर्द्धसरकारी संस्थाओं को एक पुलिस एजेंट के रूप में परिवर्तित कर दिया है। वो चाहे बीमा संबंधी नियम-कानून हों, बैंक संबंधी, कर संबंधी, संपत्ति रजिस्ट्रेशन संबंधी नियम हों, इन सभी को एक आपराधिक नजरिये से देखा जा रहा है और घरेलू एवं व्यापारिक क्षेत्रों को अपने तरीके से काम करने की कम से कम छूट दी जा रही है।'
सामाजिक रजिस्ट्री जैसे बड़े डेटाबेस का बौद्धिक प्रभाव यह दिखाता है कि गरीबी हटाने संबंधी भारत सरकार के नजरिये में एक आमूल—चूल परिवर्तन हुआ है। 21वीं सदी में जहां महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार योजना, सर्वशिक्षा अभियान, भोजन का अधिकार जैसी बड़ी-बड़ी सरकारी योजनाओं को उभरते देखा गया, वहीं पिछले एक दशक में सरकार का जोर इस बात पर रहा कि इन योजनाओं के फायदे वाकई उन लोगों तक पहुंचे जिनके लिए ये योजनायें बनायी गयी हैं।
'हफिंग्टन पोस्ट' के साथ अपने साक्षात्कार में मनोरंजन कुमार ने बताया, 'आपको यह समझना होगा कि पहले से ही आधार में तमाम तरह के डेटा उपलब्ध हैं, इन्हें बस एक नये सॉफ्टवेयर के माध्यम से एक जगह एकत्रित करना है।'
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आईआईएम अहमदाबाद में इकॉनॉमिक्स की एसोसिएट प्रोफेसर रितिका खेरा का कहना है, 'जरूरतमंदों तक सहायता पहुंचाने के दो पहलू होते हैं। पहला, केवल कार्यकुशलता को एक बड़ा आधार मानने से लोगों के अधिकार छिन जाते हैं। ऐसे में स्वास्थ्य, शिक्षा और कल्याणकारी सरकारी योजनाओं का लाभ अपने लिए नागरिक एक अधिकार के रूप में नहीं देख सकते। दूसरा, इससे आधार के पैरोकारों द्वारा लोगों तक सहायता पहुंचाने का तर्क देने से पैदा हुई धोखाधड़ी भी सामने आयी थी यानी इसका दुरुपयोग देखने को मिला। लोगों तक सहायता पहुंचाने का मतलब होता है कि डेटाबेस को जनकल्याण से जोड़ा जाये। लेकिन सामाजिक रजिस्ट्री एक जनकल्याण के नाम लोगों पर खुफिया नजर बनाये रखने की योजना है। डोटाबेस को जोड़ने की योजना सरकार ने कभी भी स्पष्ट रूप से बतायी नहीं है, इसके विपरीत इस तरह का माहौल बनाया गया कि बॉयोमेट्रिक के माध्यम से लाभार्थियों को सरकारी योजनाओं के केंद्र में रखने का मतलब है योजनाओं का फायदा उन्हीं लोगों को मिल सके जिनको वाकई इनकी जरूरत हो। इस तरह स्पष्ट है कि सही लोगों तक सहायता पहुंचाने की बात इसलिए कही जाती रही ताकि सरकार की खुफिया नजर का भय लोगों में पैदा न हो।'
सरकारी दस्तावेजों पर नजर डालें तो यह पता लगता है कि एक समय में मनोरंजन कुमार सामाजिक रजिस्ट्री के सबसे बड़े पैरोकार थे। वर्ष 2015 में सामाजिक रजिस्ट्री की अवधारणा संबंधी नोट लिखने के अलावा उन्होंने संसद की स्टेंडिंग कमेटी और विशेषज्ञों की एक उच्च स्तरीय समिति से ग्रामीण विकास मंत्रालय की बातचीत की अगुवाई भी की थी। उन्होंने सामाजिक रजिस्ट्री की इस परियोजना को अमली जामा पहुंचाने के लिए संसाधन जुटाने और जरूरी संस्तुतियों को हासिल करने के लिए केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, विश्व बैंक और नीति आयोग के प्रयासों की संचालित करने का काम भी किया था।
मनोरंजन कुमार ने नवंबर 2015 में अपने एक नोट में लिखा 'हमने एक चुनौतीपूर्ण काम की मांग की थी और यह हमें दे दिया गया है। अब जरूरत है कि हम सामाजिक, आर्थिक, जाति जनगणना आधारित एक ऐसी सामाजिक रजिस्ट्री तैयार करें जो भारत सरकार का कार्यक्रम हो और जिसकी तैयारी के दौरान हम विश्व बैंक जैसे बहुआयामी संगठनों के विशेषज्ञों को आमंत्रित करें।'
गौरतलब है कि सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना सामाजिक रजिस्ट्री के डाटाबेस का आधार है। वर्ष 2016 में मनोरंजन कुमार पूरी सक्रियता के साथ सामाजिक रजिस्ट्री की इस परियोजना के साथ जुड़े रहे, लेकिन 2017 में उनका इससे मोहभंग होता दिखाई दिया।
सामाजिक रजिस्ट्री को लागू करने संबंधी विश्व बैंक के साथ हुई उनके मंत्रालय की बातचीत के बारे में 15 मार्च 2017 को उन्होंने एक नोट लिखा। इस नोट में मनोरंजन कुमार ने ऐसे कुछ वाक्य लिखे थे जो सामाजिक रजिस्ट्री की इस परियोजना के बारे में शंका पैदा करते हैं।
मनोरंजन कुमार ने लिखा था, 'हमें एक ऐसी सामाजिक रजिस्ट्री व्यवस्था तैयार करनी चाहिए जो लोगों को उनकी निजता को लेकर पैदा हुई शंकाओं की तरफ भी ध्यान देती हो। ऐसा इसलिए भी जरूरी है क्योंकि अफसरशाही और पुलिस नैतिकता का पालन न करने में किसी तरह की शर्म नहीं कर रहे हैं और अकसर उनके द्वारा उठाये गये कदम भ्रष्टाचार से प्रेरित होते हैं।'
आगे मनोरंजन कुमार ने यह भी लिखा, 'इतने बड़े स्तर पर केवल अमेरिका की सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था ही सफल हुई है और उसकी सफलता के पीछे भी कारण यह रहा कि उसमें लोगों की निजता को प्रभावी ढंग से सुरक्षा प्रदान की गयी।' अफसोस, फाइल पर लिखी गयी मनोरंजन कुमार की इन बातों का सरकारी स्तर पर कोई भी जवाब नहीं आया।
इस बीच एक तरफ जहां भारत का सुप्रीम कोर्ट निजता के अधिकार पर अनेक याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, वहीं दूसरी ओर मोदी सरकार यह आदेश जारी करती चली जा रही थी कि लोग आधार कार्ड से अपने पहचान पत्र के नंबर को जुड़वा लें, ताकि एक सरकारी डेटाबेस तैयार किया जा सके।
जिस समय मनोरंजन कुमार ने फाइल पर उपरोक्त नोट लिखा था, उसी समय उन्होंने हफिंग्टन पोस्ट से भी बातचीत की थी। अपनी बातचीत में उन्होंने आधार के बढ़ते दुरुपयोग के बारे में चिंता जाहिर की थी। उन्होंने कहा था, 'आज अगर आप पैसा जमा करने जाइये, अपना पैसा वापस लीजिये या फिर गंभीर रोगी के इलाज के लिए अस्पताल में जाकर पैसा जमा करें, हर बार आपका आधार नंबर मांगा जाता है और आपके बारे में अनेक तरह के सवाल पूछे जाते हैं। इस तरह से वे लोग एक पुलिस का काम ही तो कर रहे हैं। ऐसे हालात में वाकई आधार एक खतरनाक औजार है। इसमें बहुत सारी सूचनाएं केंद्रित हैं और ये तकनीकी इस तरह की है कि आपकी कोई भी जानकारी गुप्त नहीं है।'
सामाजिक रजिस्ट्री के संभावित बेजा इस्तेमाल के बारे में मनोरंजन कुमार द्वारा लिखे गए नोट के महीनों बाद अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार पर अपना फैसला सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कार्यस्थल पर कार्यकुशलता, आर्थिक हालात, स्वास्थ्य, व्यक्तिगत प्राथमिकतायें, लोगों की रुचियां, उनकी विश्वसनीयता, उनके व्यवहार, उनकी उपस्थिति और आना—जाना जैसे व्यक्तिगत पहलुओं का विश्लेषण अथवा उनके बारे में भविष्यवाणी के माध्यम से लोगों के बारे में जानकारियां जमा करना एक तरह से उन पर निगरानी रखना ही है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, लोगों के जीवन से जुड़ी जानकारियों को इस तरह से इकट्ठा करना धर्म, नस्ल और जाति के आधार पर भेदभाव करने जैसा होगा।
जैसा कि 'हफिंग्टन पोस्ट इंडिया' ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि शुरू-शुरू में तो सरकार ने आधार के बिना ही सामाजिक रजिस्ट्री बनाने की बात सोची थी, मगर बाद में उसने आधार संबंधी कानून में ही बदलाव कर दिया। निजता की सुरक्षा की बात करने वाले लोगों के अनुसार अगर ये बदलाव लागू कर दिये गये तो कोर्ट द्वारा आधार संबंधी जो सुरक्षा के सुझाव दिये गये हैं, वो बेमतलब हो जायेंगे।
डाटा और गवर्नेंस पर शोध करने वाले स्कॉलर श्रीनिवास कोडाली कहते हैं, 'चूंकि सरकार द्वारा नागरिकों के व्यक्तिगत डेटा का इस्तेमाल करने को नियंत्रित करने संबंधी कोई भी कानून नहीं है इसलिए सरकार अनेक तरीके से सामाजिक रजिस्ट्री जैसे जीवंत डेटाबेस को अपने हिसाब से इस्तेमाल कर सकती है।'
श्रीनिवास चेतावनी देते हुए कहते हैं, 'सत्ता में रहने वाली राजनीतिक पार्टी इस डेटा का इस्तेमाल कर अपने वोटरों की सूची तैयार कर सकती है और अनुचित लाभ कमाने के लिए निर्वाचन क्षेत्रों में इस तरह का बदलाव ला सकती है जिससे उन्हीं की पार्टी किसी भी चुनाव में सत्ता हासिल कर सके।
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अब जब मनोरंजन कुमार सरकारी नौकरी से अवकाश ग्रहण कर लिया है तो उनका यह मानना है कि धराशायी हो रही देश की संस्थायें सामाजिक रजिस्ट्री जैसी केंद्रित व्यवस्था के बुरे परिणामों से निपटने में अक्षम है। 'हफिंग्टन पोस्ट इंडिया' से बात करते हुए मनोरंजन कुमार ने कहा, 'मैं इस व्यवस्था को तब तक लागू नहीं करूंगा जब तक कि इसके इर्द—गिर्द की दूसरी व्यवस्थाओं में इस तरीके का बदलाव नहीं लाया जाता कि नागरिकों को न्याय दिलाया जा सके। मेरा तो मानना है कि पहले उस सीआरपीसी (CODE OF CRIMINAL PROCEDURE) का पुनर्मूल्यांकन किया जाये जिसके तहत आपकी उंगलियों के निशान ही आपकी उपस्थिति के साक्ष्य होते हैं। सरकारी विभागों में डेटा को लेकर सुरक्षा में सुधार किया जाये, न्यायालयों की क्षमता को बढ़ाया जाये, फिर आप इस तरह की व्यवस्था को लागू कीजिये, नहीं तो सरकार द्वारा केवल इसका बेजा इस्तेमाल ही हो सकता है।'
मनोरंजन कुमार ने कहा कि 'सरकार में काम करने के दौरान मेरा विश्वास उन संस्थाओं से डिग गया जिनका उद्देश्य सरकार की निरंकुश ताकत पर अंकुश लगाना होता है।'
आखिर उन्होंने इस तरह की व्यवस्था की पैरोकारी ही क्यों की थी? के जवाब में मनोरंजन कुमार कहते हैं, 'तब तक तो इस व्यवस्था में मेरा विश्वास था। तब तक नौकरशाहों, न्यायालयों, पुलिस कर्मचारियों और दूसरी संस्थाओं की क्षमता एवं प्रतिबद्धता के प्रति मेरे विश्वास को कोई चुनौती नहीं मिली थी और न ही मेरा विश्वास इनके प्रति घटा था। मैंने ऐसे व्यक्तियों को भी देखा था जिन्होंने संस्थाओं की स्वतंत्रता के लिए जमकर काम किया। लेकिन आज प्रतिबद्धता का तत्व गायब होता जा रहा है। इस व्यवस्था में मेरा विश्वास तभी तक बना रहा जब तक प्रतिबद्धता बहुत मजबूती से बना हुआ था।'
बकौल मनोरंजन कुमार, 'राज्य के अधिकार व्यक्ति के अधिकार से बड़े नहीं हो सकते, दोनों में एक संतुलन होना चाहिए। लेकिन मैं पुरजोर तरीके से यह मानता हूं कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता ज्यादा महत्वपूर्ण है और केवल लोकतंत्र ही ऐसी व्यवस्था है जो नागरिकों को सरकार के समक्ष बराबरी का दर्जा प्रदान करती है।'
(कुमार संभव श्रीवास्तव की यह यह रिपोर्ट अंग्रेजी में huffingtonpost.in में प्रकाशित। यह रिपोर्ट की दूसरी किश्त है।)










