Begin typing your search above and press return to search.
जनज्वार विशेष

मोदी सरकार में गई 20 लाख नौकरियां

Janjwar Team
28 April 2018 1:31 PM GMT
मोदी सरकार में गई 20 लाख नौकरियां
x

मोदी जी सत्ता में इसलिए भी आए क्योंकि उन्होंने वादा किया था कि वो हर साल एक करोड़ नौकरियां देंगे, लेकिन वास्तव में मोदी के चार साल के कार्यकाल में नौकरियों की कुल संख्या में आई है गिरावट...

औनिंदयो चक्रवर्ती, आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ

आरबीआई के नए आंकड़े बताते हैं कि मोदी राज के पहले दो साल में 11.5 लाख नौकरियां कम हो गईं, जबकि एक करोड़ प्रतिवर्ष की दर से दो करोड़ नई नौकरियां दी जानी थीं।

औसतन रोज 30,000 लोग भारत में नौकरी के बाजार से जुड़ रहे हैं, एक तरफ इन लोगों को नौकरी नहीं मिल रही है तो दूसरी तरफ 1600 लोग प्रतिदिन मोदी राज के पहले दो साल में अपनी नौकरियां गंवा चुके हैं। यह आरबीआई का आधिकारिक डेटा है।

डेटा पर थोड़ा और गौर करते हैं। मोदीराज के पहले दो साल में कृषि क्षेत्र में करीब 1.5 करोड़ नौकरियां खत्म हो गई हैं, जबकि विनिर्माण क्षेत्र (Construction Sector) में एक करोड़ से थोड़ा अधिक नौकरियां जुड़ी हैं। इसका मतलब है कि लोग अपने गांव को छोड़कर दैनिक मजदूरी की तलाश में शहरों और कस्बों के विनिर्माण स्थलों में नौकरी के लिए निकले हैं।

ऐसा क्यों हुआ है? क्योंकि गरीब किसान और कृषि मजदूरों के लिए दो जून की रोटी जुटाना कठिन होता गया है। 2014 में अगर कोई एक मजदूर 100 रुपया कमा रहा था तो 2016 में यह बढ़कर 103 रुपया ही हुआ है। इसी दौरान कृषि मजदूरों के जीवन यापन का खर्च 100 रुपया से बढ़कर 110 रुपया हो गया है, इसलिए इस प्रभाव से उसकी असली मजदूरी महंगाई दर के समायोजन के बाद 2014 के 100 रूपया की तुलना में 2016 में 94 रुपया से कम ही रह गया है।

उसने क्या किया? उसने अपना घर छोड़ा और शहरों और कस्बों की तरफ रोज की मजदूरी खोजने निकल गया. जहां भारत के अमीर और असरकारी लोग अपना घर और दफ्तर बना रहे हैं। लेकिन, याद रहे कि भारत के विनिर्माँण क्षेत्र के लिए इन सालों में हालत कितनी खराब थी (और जारी रह सकती है)। घर बिक नही रहे थे, प्रोपर्टी के भाव गिर गए थे, दफ्तर बन नहीं रहे थे तो यह कैसे संभव हुआ कि इतने लोगो को विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार मिला?

ज़्यादातर लोग सरकार द्वारा बनाई जा रही सड़कों को बनाने में लगाए गए होंगे- मोदी सरकार ने पहले दो साल में औसतन 36,400 किलोमीटर ग्रामीण सड़क बनाया है। यह यूपीए-2 के दौरान हासिल किए लक्ष्य (37,100 किमी/वर्ष) से 2 % कम है। इसके साथ ही मोदी सरकार ने 2014-16 के बीच हर साल औसतन 5,200 किमी हाइवे बनाया है। यह यूपीए 2 से 6 % अधिक (4,900 किमी/वर्ष) है।

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक स्कॉलर ने 2001-2011 के आंकड़ों को लेकर एक अध्ययन किया है। जिसमें अनुमान लगाया है कि ग्रामीण सड़कों पर प्रतिवर्ष एक लाख के खर्च पर एक गैरकृषि रोजगार का सृजन हुआ है, यानी एक नौकरी का। 2011 में भी ऐसा ही था। अगर इसको महंगाई दर के अनुसार समायोजित करें तो ऐसा कह सकते हैं कि ग्रामीण सड़कों को बनाने में हुए 1.25 लाख खर्च पर 2014-16 में एक रोजगार का सृजन हुआ है। दूसरे शब्दों में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में हुए 1 करोड़ खर्च पर 80 नौकरियां सृजित हुई हैं।

2014-16 के दौरान मोदी सरकार ने ग्रामीण सड़कों के लिए 32,500 करोड़ का आवंटन किया। इसको 80 से गुणा करेंगे तो आपको नई नौकरियों की संख्या मिल जाएगी। यह संख्या दो सालों में 26 लाख नई नौकरियों की होगी। कल्पना करिए कि नेशनल हाइवे के निर्माण में और 10 लाख नई नौकरियां निर्मित हुईं, तो कितनी नई नौकरियां मिलीं? लगभग 36 लाख नौकरियां सरकार ने अपने सड़क निर्माण परियोजना से निर्मित की।

अभी भी 70 लाख लोग बच रहे हैं, जिनको विनिर्माण क्षेत्र में नई नौकरियां मिली हैं। ऐसा मान लेना सुरक्षित है कि 50 लाख लोगों को शहरी और अर्द्धशहरी विनिर्माण परियोजना में काम मिल गया होगा। विनिर्माण क्षेत्र बुरे दौर से गुजर रहा है और लोगो की कहासुनी के सबूत बताते हैं मजदूरी में तेजी से गिरावट हुई है।

दरअसल यह भी संभव है कि ज्यादा मजदूरी वाले कामगार की नौकरी जा रही हो और इनकी जगह कमकुशल सस्ते कामगार ले रहे हो, जो गांव से अभी अभी आए हैं क्योंकि खेती में उनको काम नहीं मिल रहा है। उदाहरण के लिए 2015 में केवल दिल्ली और एनसीआर में रीयल एस्टेट बाजार में गिरावट के कारण विनिर्माण क्षेत्र के 5 लाख मजदूर अपनी नौकरी गंवा चुके हैं, ऐसा विश्वास है।

साफ है कि मोदी सरकार पहले दो सालों में नए रोजगार देने में विफल रही है और सारे साक्ष्य बताते हैं कि इसका प्रदर्शन नोटबंदी के बाद से और खराब हुआ है। सीएमआईई (CMIE) रोजगार डेटाबेस दिखाता है कि 2017 में 20 लाख नौकरियां खत्म हुई हैं, कुल रोजगार के हिसाब से 2018 में थोड़ा सुधार है, सीएमआईई का अनुमान दिखाता है कि 2016 से 2018 के बीच 6 लाख नौकरियां खत्म हुई हैं।

अगर आप सीएमआईई के पिछले दो साल के आंकड़ों को आरबीआई द्वारा जारी किए गए मोदी सरकार के दो साल के आंकड़ों से जोड़ें तो चौंकाने वाली तस्वीर दिखती है। अपने वादे के अनुसार चार करोड़ नौकरियां देने की जगह मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था को ऐसे संभाला है कि 18 से 19 लाख नौकरियां कम हो गई हैं उनके सत्ता में चार साल के दौरान।

चार साल में नौकरी के बाजार में 4.4 करोड़ नई नौकरियां चाहने वाले लोग आए हैं। दूसरे शब्दों में 100 लोग जो काम की तलाश में आते हैं तो इन 100 को तो रोजगार नहीं ही मिलता, 4 लोग अपनी नौकरी गंवा भी देते हैं।

मोदी सरकार को इसकी खबर है और इसीलिए यह खतरनाक गति से सड़क बनाने की कोशिश कर रही है। दुर्भाग्य से इसी वक्त में इसने मनरेगा मजदूरी को रोक कर रखा हुआ है- 10 राज्यों में कोई वृद्धि नहीं, और दूसरे 5 राज्यों में मजदूरी में मात्र 2 रुपये की वृद्धि है, इसके साथ ही, फंड समय पर जारी नहीं किया जाता, जिससे कि मनरेगा के तहत जो काम पहले ही हो चुका है उसकी मजदूरी दी जा सके।

कार्यकर्ता बताते हैं कि मनरेगा में फरवरी का 64%, मार्च का 86% और अप्रैल का 99% (मध्य अप्रैल तक) जारी नहीं किया गया है। दूसरे शब्दों में, लोगो को रोजगार नहीं मिल रहा है और जिनको मिल रहा है उनको समय पर पैसा नहीं मिल रहा है।

(एनडीटीवी इंडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ औनिंदयो चक्रवर्ती का यह लेख उनकी एफबी वॉल से, मूल लेख अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद रिसर्चर अमितेश कुमार ने किया है।)

Janjwar Team

Janjwar Team

    Next Story

    विविध