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पाब्लो नेरूदा विश्व के ख्यात साहित्यकारों में शुमार हैं। उनकी इन दो बेहतरीन कविताओं का अनुवाद पत्रकार रोहित जोशी ने किया है।
कि तुम सुन सको मुझे-
मेरे शब्द
होते हैं कभी-कभी बहुत धीमे
समुद्री रेत में किसी नन्हीं चिड़िया के पैरों के निशान जैसे।
मसलन "...तुम्हारे अंगूर जैसे मुलायम हाथों में
लिपटा नेकलेस और एक बदहवास बजती घंटी।..."
और मैं फिर अपने शब्दों को दूर से देखता हूं।
ये मुझसे अधिक तुम्हारे हैं।
ये चढ़ते जाते हैं मेरी पीड़ाओं पर
एक लिपटी बेल की तरह
जो चढ़ती है सीलन भरी दीवार पर।
तुम्हीं हो जिसके सर
इस निर्दयी खेल का इल्ज़ाम चढ़ता है।
मेरे उदास अंधियारे हिस्से से
उड़ भागते हैं ये शब्द।
तुम ही हो जिसकी यादों ने
भर दिया है सब कुछ.....
सब कुछ...
और कुछ नहीं टिकता यहां।
तुमसे पहले
ये शब्द
भरे रहते थे मेरा एकांत,
जिसे फिर तुमने छीना।
अब तुमसे ज्यादा
मेरी उदासी के ये आदी हैं।
और अब मैं चाहता हूं
ये कहें वे बात
जो मैं तुमसे कहना चाहता हूं
ताकि तुम सुन सको इन्हें वैसे
जैसे मैं चाहता हूं तुम सुन सको मुुझे।
हमेशा की तरह दर्द के थपेड़े
खींच ले जाते हैं इन्हें अब भी।
कभी-कभी सपनों का तूफ़ान
खटखटाता हैं इन्हें।
तुम सुनती हो
मेरी दुखभरी आवाज़ के परे
दूसरी आवाजें।
मेरा, पुरानी आवाजों में गूंजता
याचना भरा विलाप...
"मुझे प्यार करो, दोस्त... मुझे छोड़ो नहीं... साथ आओ मेरे...
इन वेदना के थपेड़ों में, साथ आओ मेरे, प्रिय!"
लेकिन मेरे शब्द तो तुम्हारे प्रेम में रंगे हैं।
तुमने घेर लिया है सब कुछ।
सब कुछ घेर लिया है तुमने।
मैं इन रंगे शब्दों को गूंथ रहा हूं
एक अंतहीन नेकलेस में,
तुम्हारे अंगूर जैसे मुलायम हाथों के लिए।
मैं लिख सकता हूं आज की रात असीम दु:ख से भरी पंक्तियां
मैं लिख सकता हूं आज की रात
असीम दु:ख से भरी पंक्तियां.
मसलन
'गाती है रात की बेसुध बहती हवा-
"सितारों भरी रात है
और नीले तारे कंपकंपा रहे हैं
अपनी-अपनी दूरियों से आहत''
आज की रात
मैं लिख सकता हूं
असीम दु:ख से भरी पंक्तियां.
मैंने उसे प्रेम किया और कई दफा उसने भी मुझे
आज की तरह ही
कई रातों के रस्ते
मैंने उसे भर लिया इन बाहों में
इस अंतहीन आकाश के नीचे
मैंने उसे बार-बार चूमा
कई दफा उसने मुझे प्रेम किया
और मैंने उसे डूबकर.
कैसे कोई ना करे प्रेम
उन गहरी, ठहरी आंखों को.
मैं लिख सकता हूं आज की रात
असीम दु:ख से भरी पंक्तियां.
इस ख़याल में कि वो मेरे पास नहीं है.
इस एहसास में कि खो दिया है मैंने उसे.
यह जानकर कि ये गहराई रात,
उसके बिना और अंधेरी हो गई है.
और यह कविता अंतस में ऐसे गिरती है
जैसे वायुमंडल के
किसी कोने से
नमी बटोर
मासूम दूब पर गिरी
ओस की इकलौती बूंद.
इससे क्या फर्क पड़ता है कि नहीं रोक सका
उसे मेरे पास, मेरा प्यार.
सितारों भरी रात है
और नहीं है वह मेरे साथ
यही है सब कुछ.
दूर कोई कुछ गा रहा है.
बहुत दूर है वह.
मेरे अंतस को नहीं स्वीकार
कि खो दिया है मैंने उसे.
नजरें तलाशती हैं कि
ला सकें उसे करीब.
दिल उसे ढूंढता है
और वो मेरे साथ नहीं है.
वैसी ही रात, उन्हीं पेड़ों को चमकाती,
लेकिन उस वक्त के हम, अब नहीं हैं वैसे.
अब मैं नहीं करता उसे प्यार
यह तय है,
पर किस कदर किया मैंने उसे प्यार
मेरी आवाज उस हवा को ढूंढती है
जिसे वो सुन सके..
दूसरे की...वह किसी दूसरे की होगी...
मेरे चुबंनों से पहले की तरह
किसी दूसरे की..
उसकी आवाज, उसकी उजली देह..
उसकी अंतहीन आंखें..
अब मैं नहीं करता उसे प्यार
यह तय है
पर हो सकता है, मैं करूं उसे प्यार..
बहुत संक्षिप्त होता है
प्रेम होना,
पर भूल पाना होता है
बहुत लंबा.
क्योंकि आज की तरह ही
हर रात के सहारे
उसे मैंने अपनी बाहों में भरा है..
मेरा अंतस नहीं स्वीकारता
कि खो दिया है उसने उसे
हो सकता है
ये मुझे उसका दिया
आखिरी दर्द हो..
जिससे मैं हूं बेहद बेचैन…
और ये हो सकती है
अंतिम कविता
जो लिख रहा हूं मैं
उसके लिए…