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राष्ट्रीय

अर्णब की बढ़ी मुश्किलें, बॉम्बे हाईकोर्ट और कर्नाटक हाईकोर्ट में REPUBLIC टीवी पर बैन लगाने की याचिकाएं दायर

Nirmal kant
25 April 2020 2:25 PM GMT
अर्णब की बढ़ी मुश्किलें, बॉम्बे हाईकोर्ट और कर्नाटक हाईकोर्ट में REPUBLIC टीवी पर बैन लगाने की याचिकाएं दायर
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याचिका में मांग की गई है कि जांच पूरी होने तक गोस्वामी और रिपब्लिक टीवी के सभी प्रसारण पर अंतरिम रोक लगाई जाए। साथ ही अर्णब के खिलाफ जांच पूरी होने तक उनके किसी भी टीवी चैनल या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिये बोलने पर भी प्रतिबंध लगाया जाए....

जनज्वार ब्यूरो। रिपब्लिक टीवी के एडिटर अर्णब गोस्वामी के लिए मुसीबतें लगातार बढ़ती जा रही हैं। हाल ही में उनके खिलाफ देशभर के अलग-अलग पुलिस स्टेशनों में सौ से भी ज्यादा एफआईआर दर्ज की गई हैं। गोस्वामी पर आरोप है कि उन्होंने अपने डिबेट शो में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ आपतत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया। वहीं अब रिपब्लिक टीवी पर प्रतिबंध लगाने की भी मांग उठने लगी है। इसी सिलसिले में बॉम्बे और कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर की गई हैं। इन याचिकाओं में अर्णब गोस्वामी द्वारा रिपब्लिक टीवी पर 'कुछ भी' प्रसारित करने पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है।

रअसल लीगल न्यूज वेबसाइट 'लाइव लॉ' ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि बॉम्बे हाईकोर्ट में महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य भाई जगताप और महाराष्ट्र यूथ कांग्रेस के उपाध्यक्ष सूरज ठाकुर ने याचिका दायर की हैं, जबकि कर्नाटक हाईकोर्ट में सामाजिक कार्यकर्ता और बेंगलुरु के आरटीआई कार्यकर्ता मोहम्मद आरिफ जमील ने याचिका दायर की है।

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रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों याचिकाकर्ताओं ने अदालत से पालघर में दो साधुओं और उनके ड्राइवर की पीट-पीट कर हत्या के मामले को गलत तरीके से सांप्रदायिक रंग देने और इस घटना को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर आरोप लगाने के लिए अर्णब गोस्वामी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के निर्देश देने को कहा है।

ने अपने वकील राहुल कामेरकर के जरिये दायर याचिका में कहा है कि जांच पूरी होने तक गोस्वामी और रिपब्लिक टीवी के सभी प्रसारण पर अंतरिम रोक लगाई जाए। इसके साथ ही अर्णब के खिलाफ जांच पूरी होने तक उनके किसी भी टीवी चैनल या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिये बोलने पर भी प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है।

कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दायर करने वाले मोहम्मद आरिफ ने 31 मार्च को सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी का उल्लेख किया, जिसमें चीफ जस्टिस एसए बोबडे और जस्टिस एल। नागेश्वर राव की पीठ ने कहा था कि शहरों में काम करने वाले मजदूरों का बड़ी संख्या में पलायन इस फेक न्यूज की वजह से हुआ कि लॉकडाउन तीन महीने से अधिक समय जारी रहेगा।

स समय सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया से कोरोना की कवरेज के समय जिम्मेदारी से काम करने और सरकार की पुष्टि के बाद ही कोरोना के संबंध में खबरें प्रकाशित/प्रसारित करने को कहा था। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट की इन टिप्पणियों के आधार पर याचिका में अर्णब के टीवी शो के दौरान कथित आपत्तिजनक बयानों का उल्लेख किया।

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रिपोर्ट के अनुसार, शो के दौरान अर्णब ने कहा था, ‘अगर यह भाजपा के नेतृत्व वाले किसी राज्य में होता और अगर इसमें हिंदुओं की जगह कोई और संप्रदाय होता। मैं सीधा कहना चाहूंगा कि अगर इस घटना में कोई अल्पसंख्यक समुदाय का व्यक्ति मारा जाता तो क्या नसीरुद्दीन शाह, अपर्णा सेन, रामचंद्र गुहा, सिद्धार्थ वरदराजन या अवॉर्ड वापसी गैंग क्या आज आपे से बाहर नहीं हो जाता?’

में कहा गया, ‘अर्णब ने बेहद अनैतिक रूप से, निंदनीय ढंग से, पत्रकारिता के पेशे की धज्जियां उड़ाकर महाराष्ट्र के पालघर में हुई मॉब लिंचिंग की घटना को बार-बार सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की। यह दिखाने की कोशिश की कि आम आदमी हर समय अपनी जिंदगी को लेकर डरा हुआ है।’

याचिका में कहा गया कि अर्णब गोस्वामी के बयान नफरत को बढ़ावा देने वाले हैं और यह दंडनीय अपराध है। इसके साथ ही यह पूरे समुदाय के जीने के अधिकार के साथ हमारे संवैधानिक मूल्यों पर हमला है।

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