Begin typing your search above and press return to search.
राजनीति

किसानों से फसल बीमा का प्रीमियम अब जबरन नहीं वसूलेगी मोदी सरकार

Janjwar Team
20 Feb 2020 8:07 AM GMT
किसानों से फसल बीमा का प्रीमियम अब जबरन नहीं वसूलेगी मोदी सरकार
x

file photo

जनज्वार। दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की करार हार से अब केंद्र सरकार अपने उन विवादास्पद निर्णयों पर दोबारा विचारा कर रही है, जिन्हें अभी तक जनता पर जबरन थोप रखा था। इसी तरह का एक निर्णय था फसल बीमा योजना। इसमें किसानों से जबरदस्ती प्रीमियम की राशि काट ली जाती थी। योजना इस तरह से तैयार की थी कि इसका लाभ किसान की बजाय कंपनी को मिले। देश भर में लागू की गई योजना में बड़ी संख्या में किसान विरोध कर रहे थे। लेकिन भाजपा और उनके प्रवक्त योजना का लाभ गिनाते नहीं थक रहे थे।

संबंधित खबर : बेमौसम बारिश से फसल हुई बर्बाद तो बुजुर्ग किसान ने आत्महत्या की, छह दिन तक पेड़ से लटका रहा शव

खिरकार अब केंद्र सरकार ने तय किया कि अब किसानों से फसल का प्रीमियम जबरदस्ती नहीं काटा जाएगा। अब किसान की इच्छा होगी तो वह फसल का बीमा कराएगा। भाजपा सरकार ने 13 जनवरी 2016 में इस योजना को शुरू किया था। किसानों से खरीफ की फसल के लिए दो प्रतिशत और रबि की फसल के लिए डेढ़ प्रतिशत प्रिमियम लिया जाता था। प्रीमियम का 50 प्रतिशत खर्च केंद्र व राज्य सरकार उठाती है। फसल बीमा योजना में प्राइवेट कंपनियां ही शामिल हुई। कंपनियों ने इसके लिए न तो अलग से स्टाफ रखा न ही कोई ऐसी व्यवस्था की कि किसानों को योजना का लाभ ज्यादा से ज्यादा मिले। कंपनियों का पूरा जोर प्रीमियम जुटाने में था।

''सरकार ने जो यह निर्णय लिया है यह सही है। अब कम से कम बीमा कंपनियां योजना के लिए कुछ तो खर्च करेगी। उन्होंने बताया कि अब कंपनी को अपने एजेंट रखने पड़ेंगे जो किसानों के साथ संपर्क करेंगे। उन्हें बीमा कराने के लाभ बताएंगे। अब किसान खुद तय कर सकेगा कि उसे फसल का बीमा कराना है या नहीं। इसी साल सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में 14,000 करोड़ रुपए का बजट रखा है। पिछले 12,975 रुपए का बजट रखा गया था।''

- देवेंद्र शर्मा, कृषि अर्थशास्त्री

रकारी आंकड़ों में दावा किया जा रहा है कि योजना के शुरूआती वर्ष 2016-17 में खरीफ फसल में 404 लाख किसानों ने 382 लाख हेक्टेयर में फसल का बीमा कराया था। केंद्र और राज्य सरकारों ने बीमा कंपनियों को 131018 करोड़ रुपये प्रीमियम के रूप में दिए थे। फसलों को नुकसान के एवज में बीमा कंपनियों ने उन्हें 10525 करोड़ रुपये बतौर मुआवजा दिया था। 2017-18 में खरीफ में बीमा कराने वाले किसानों की संख्या घटकर 349 लाख और कृषि क्षेत्रफल 343 लाख हेक्टयर रह गया था। तब कंपनियों को 1,29,295 करोड़ रुपये प्रीमियम दिया गया था, नुकसान के दौर पर कंपनियों ने 17707 करोड़ रुपये मुआवजा दिया था। 2018 में किसानों की संख्या में और कमी आयी। 343 लाख किसानों ने 310 लाख हेक्टेयर फसल का बीमा कराया। बीमा कंपनियों को केंद्र व राज्य सरकारों से 11,28,214 रुपये प्रीमियम मिला।

दिक्कत क्या थी योजना में

ह योजना देखने में तो ऐसी लगती है किसानों को इसका लाभ होगा लेकिन इसे इस तरह से डिजाइन किया गया कि फायदा बीमा कंपनियों को हो। हुआ भी वही योजना शुरू होते ही बीमा कंपनियां तो मालामाल हो गयी लेकिन किसानों के पल्ले कुछ नहीं पड़ा।

खामी 1- बनाए गए थे कलस्टर

समें कई जिलों को जोड़ कर एक कलस्टर तैयार किया गया। इसके बाद तय होता था कि फसल का औसतन उत्पादन कितना होगा? अब यदि पूरे कलस्तर में फसल का औसतन उत्पादन तय उत्पादन से कम हुआ तो ही किसानों को मुआवजा मिलता था। यदि औसतन उत्पादन हुआ तो किसानों को मुआवजा ही नहीं दिया जाता था। विशेषज्ञो का कहना है कि यह बहुत ही दोषपूर्ण तरीका था।

खामी 2- फसल के उत्पादन तय करने का वैज्ञानिक तरीका नहीं था

योजना में खामी यह रही कि फसल का उत्पादन कैसे तय किया जाए। इसके लिए कोई निश्चित वैज्ञानिक तरीका ही नहीं था। जिम्मेदारी कृषि विभाग को दी गयी। युवा किसान संघ के प्रधान प्रमोद चौहान ने बताया कि जिम्मेदार कृषि अधिकारी किसानों की बजाय बीमा कंपनी के एजेंडे पर काम करते थे। वह उत्पादन को इस तरह से दिखाते थे कि कंपनी को मुआवजा ही न देना पड़े।

3- शिकायत कहां करें किसान, कोई प्लेटफार्म नहीं था

ब यदि किसानों को योजना को लेकर कोई शिकायत हैं तो वह करें कहां, इसकी व्यवस्था ही नहीं की गयी थी। बीमा कंपनी के कर्मचारी किसानों की सुनते नहीं थे। कृषि विभाग क्योंकि योजना में सिर्फ नोडल एजेंसी थे, इसलिए वह किसानों की समस्याओं को कारगर तरीके से उठा नहीं पाते थे। इस वजह से किसानों को भारी दिक्कत आ रही थी।

संबंधित खबर : गुजरात के किसानों का आरोप, कच्छ में हुआ प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का सबसे बड़ा घोटाला

किसान की मर्जी के बिना ही कट जाता था प्रिमियम

बैंकों मे ऐसी व्यवस्था कर रखी थी किसान को पता भी नहीं चलता था। इधर फसल के बीमा का प्रीमियम कट जाता था। बैंक के अधिकारी किसान से पूछते भी नहीं थे। कई बार तो ऐसा हुआ कि एक एक किसान के दो-दो बैंक एकाउंट से प्रीमियम की राशि कट गयी। अब उसे यह राशि वापस भी नहीं होती थी। बैं अपनी मर्जी से प्रीमियम काटता था तो इसमें कई बार गेहूं का प्रिमियम काट लिया, लेकिन किसान ने खेत में उगा रखा है चना। अब जब किसान मुआवजा लेने जाता था कंपनी बोलती थी कि उसने तो चने का प्रीमियम ही नहीं भरा। इस तरह से किसानों को भारी दिक्कत का सामना करना पड़ा।

कंपनी के कर्मचारी उगाही इंस्पेक्टर की तरह करते थे किसानों के साथ व्यवहार

किसान नेता गुरपाल सिंह ने बताया कि बीमा कंपनी के अधिकारी किसानों के साथ उगाही इंस्पेक्टर की तरह व्यवहार करते थे। किसान इतने डरे हुए थे कि चाह कर भी उनका विरोध नहीं कर पाते थे। अब क्योंकि केंद्र की योजना थी इसलिए राज्य सरकार भी कंपनी के कर्मचारियों का ही समर्थन करती थी। इससे किसानों का शोषण बढ़ गया। उनकी सुनवाई करने वाला कोई नहीं था। इसलिए किसान सरकार के खिलाफ भी हो गए थे।

''बीमा कंपनियां प्राइवेट है। वह बैंकों के साथ मिल कर ही काम कर रही है। अब किसानों के सामने शर्त रख दी जाएगी कि यदि वह बैंक से कर्ज लेता है तो उसके बीमा कराना ही होगा। कई मामलों में तो किसान को पता भी नहीं चलता, उसकी फसल का बीमा कर दिया जाएगा। क्योंकि इस तरह के कई मामले सामने आए, जब किसान की मर्जी के बिना उसका हेल्थ या दूसरा बीमा कर दिया जाता है।''

- राकेश ढुल, प्रदेशाध्यक्ष यूथ फॉर चेंज

इस योजना से पहले क्या व्यवस्था थी

हले यदि प्राकृतिक आपदा में फसल खराब हो जाती है तो सरकार सर्वे कराती थी। इस सर्वे के आधार पर किसानों को मुआवजा दिया जाता था। इस व्यवस्था में प्रत्येक किसान को एक इकाई मान लिया जाता था जिससे ज्यादा से ज्यादा किसानों को मुआवजा मिल जाया करता था। हालांकि इस व्यवस्था में भी थोड़ी दिक्कत थी, क्योंकि आम तौर पर पहुंचवाले किसान तो मुआवजा लिस्ट में जुड़ जाते थे लेकिन पात्र किसान छूट जाते थे। अब किसानों की मर्जी है कि वह फसल का बीमा कराता है या नहीं। यदि किसान इसके लिए राजी होगा तभी उसका प्रीमियम काटा जाएगा। यदि किसान इंकार कर देता है तो प्रीमियम नहीं काटा जाएगा। लेकिन अभी भी देखने में यह जितना साधारण काम लग रहा है उतना है नहीं।

Next Story