उत्तराखण्ड में शराब की मुखालफत करती महिलाओं को मिल रही धमकी, विरोध किया तो तेजाब से जला देंगे
उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के पेटशाल गांव की महिलाओं ने कहा हम नशे को ना केवल अपने गांव और जिले से बल्कि पूरे उत्तराखंड से खत्म करेंगे, जब तक नशा मुक्त उत्तराखंड नहीं बन जाता हमारी लडाई जारी रहेगी...
अल्मोड़ा से विमला की रिपोर्ट
जनज्वार। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के पेटशाल गांव की महिलाओं ने कहा हम नशे को ना केवल अपने गांव और जिले से बल्कि पूरे उत्तराखंड से खत्म करेंगे, जब तक नशा मुक्त उत्तराखंड नहीं बन जाता हमारी लड़ाई जारी रहेगी। इन्द्रा देवी बताती हैं कि वह नशे के चलते किस तरह से पीड़ित हैं। वह कहतीं हैं, 'मैं एक घरेलू महिला हूं, सुबह से लेकर शाम तक घर के सारे काम करती हूँ, साथ में खेती-बाड़ी भी। मेरे पांच बच्चे हैं। इस महंगाई के जमाने में उनको पालना और पढ़ा पाना बहुत कठिन है। ऊपर से पति रोज शराब पीकर घर आते हैं। घर आकर गाली-गलौच, मारपीट, बच्चों को डांटते हैं।
वह आगे बताती हैं कि मेरे पति 300 रु. प्रतिदिन मजदूरी में पाते हैं, जिसमें से रोज 200 की शराब पी जाते हैं। घर को केवल 100 रुपये बचा कर लाते हैं, उसमें घर चलाना ही मुश्किल होता है। बच्चों को पढाना, स्कूल की फीस वो तो बहुत दूर की बात है। हालात तो यहां तक हैं कितने ही दिन भूखे भी रहना पढ़ता है। नशे के चलते हम महिलाओं की जिंदगी बर्बाद हो गयी है।'
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इंद्रा देवी बताती हैं, 'पिछले कुछ दिनों से हम गांव की महिलाओं ने शराबबंदी के खिलाफ आन्दोलन तेज किया है। हम इसमें सफल भी रहे। आजकल ना शराब मिलती है, ना ही लोग पी रहे हैं, आजकल हमारे घरों में शान्ति है। हम महिलाएं अपनी लड़ाई को आगे भी लड़ती रहेंगी। जब तक पूरा पहाड़, पूरा उत्तराखंड नशे से मुक्त नहीं हो जाता हम चुप नहीं बैठेंगे।'
सोबन सिंह जीना परिसर अल्मोड़ा में एमए पढ़ाई कर रहीं मीनाक्षी आर्या कहतीं हैं, 'यहां की सरकार युवाओं को रोजगार तो नहीं दे रही है लेकिन नशा हर दो कदम पर उपलब्ध है। नशे से ना केवल महिलाओं, बच्चों, बुर्जुगों का मानसिक, शारिरिक उत्पीड़न नहीं हो रहा है बल्कि कई लोगों की अकस्मात मृत्यु भी हो रही है, लोग बीमार भी पड रहे हैं और हमारा पेटशाल गांव पहले से ही आर्थिक और शैक्षिक रूप से अति पिछड़ा गांव है। यहां पर ज्यादा संख्या दलित परिवारों की है। पैसा ना होने की वजह से लोग अपना इलाज तक नहीं करा सकते। इस सबका असर बच्चों पर सबसे ज्यादा पड़ रहा है। बच्चे ना पढ़ पा रहे हैं, ना ही उनको एक अच्छा माहौल मिलता है।
आज उत्तराखंड में नशे का कारोबार काफी विकसित हो चुका है। एक सर्वे के अनुसार 20 से 25 साल के युवा बड़ी तादात में चरस, अफीम, भांग, कौकीन, गांजा, हेरोइन, नशे के कैप्सूल और इंजेक्शन की जद में आ चुके हैं। नशे का कारोबार उत्तराखंड के हर कोने-कोने तक पहुंच चुका है। सुदूर पहाड़ों में चरस और शराब से युवा पीढ़ी बरबाद हो रही है। हर गली-कूचों में नशे की चीजें आसानी से मिल रही हैं।
पुष्पा देवी कहतीं हैं, 'इस नशे से सबसे ज्यादा असर हमारे बच्चों पर पड़ रहा है। हमारे पति मजदूरी करते हैं, जो पैसा मजदूरी से मिलता है उसकी शराब पी जाते हैं, जिसकी वजह से ना बच्चों की फीस भर पाते हैं, ना ही बच्चों को भरपेट खाना मिलता है। हम महिलाओं को इतनी गन्दी गालियां देते हैं जिसका बच्चों पर भी बुरा असर पड़ता है। वह भी वही सीखते हैं। शराब बन्द होने से हम अपने बच्चों को पढ़ा सकते हैं। अच्छी शिक्षा दे सकते हैं, टाइम पर स्कूल की फीस भर सकते हैं।'
रीतू आगे कहती हैं, 'पहाड़ की महिलाएं तो पहले से ही दोहरे शोषण की शिकार हैं, वह घर संभालती है, खेती-किसानी करती है, बच्चों को संभालती है और शाम को पति पीकर घर आता है तो वह घर में बच्चों के लिए राशन तक नहीं लाता, उल्टा बीवी बच्चों के साथ मारपीट करता है जिससे महिलाओं का शारिरीक व मानसिक दोनों तरह का शोषण होता है। अब जब पानी सिर से ऊपर जा चुका है। महिलाएं सड़कों पर आ रही हैं। आन्दोलन कर रही हैं।
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रीतू कहती हैं, 'सबसे बड़ी बात यह है जितनी भी शराब की दुकानें हैं वह सवर्ण वर्ग के लोगों की हैं। उनके बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ रहे हैं और बर्बाद हुआ तबका दलित वर्ग है। जो लोग शराब बेच रहे हैं वह महिलाओं को धमकी दे रहे हैं। हम तुम महिलाओं के ऊपर तेजाब फेंक देंगे, तुम्हारे बच्चों को मार देंगे, हमारी सरकार से अपील है ऐसा कहने वाले लोगों पर सख्त कार्यवाही हो।'