आरबीआई से केंद्र को मिलेंगे 1.76 लाख करोड़, मगर वित्तमंत्री को नहीं मालूम कहां खर्च होगी यह धनराशि
माना जा रहा है कि रिजर्व बैंक से 1.76 लाख करोड़ रुपये केंद्र सरकार ने दिवालिया हो रही निजी कंपनियों के तारणहार की भूमिका अदा करने और चंद दिनों के लिये अपने खुद के वित्त में सुधार करने का इंतज़ाम करने के लिए लिया है...
जेपी सिंह की रिपोर्ट
भारतीय रिजर्व बैंक(आरबीआई) द्वारा केंद्र सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपये देने की घोषणा के एक दिन बाद ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि वो इस रकम के इस्तेमाल होने के बारे में फिलहाल कोई जानकारी नहीं दे सकती हैं। सरकार इसके बारे में निर्णय लेकर के बाद में सूचना देगी।
निर्मला सीतारमण ने कहा कि अतिरिक्त पूंजी का निर्धारण करने के लिये बिमल जालान समिति का गठन करने वाले आरबीआई की विश्वसनीयता पर सवाल उठाना ‘चिंताजनक’ है। वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार ने आरबीआई से मिले कोष के उपयोग के बारे में निर्णय नहीं किया है।
दरअसल माना जा रहा है कि रिजर्व बैंक से अंतत: 1.76 लाख करोड़ रुपये केंद्र सरकार ने लेकर दिवालिया हो रही निजी कंपनियों के तारणहार की भूमिका अदा करने और चंद दिनों के लिये अपने खुद के वित्त में सुधार करने का इंतज़ाम कर लिया है। दो दिन पहले ही वित्त मंत्री ने सरकारी बैंकों को सत्तर हज़ार करोड़ रुपये नगद देने और एनबीएफसी को अलग से हाउसिंग क्षेत्र में निवेश के लिये बीस हज़ार करोड़ देने की घोषणा की थी। उस समय ही सवाल उठा था कि ये पैसे कहां से आएंगे।
इसके अलावा इसी साल, महीने भर बाद सितंबर से ही 36 रफाल लड़ाकू विमानों की पहली किश्त की डिलिवरी शुरू होगी, जिसमें सरकार को बचे हुए लगभग उनसठ हज़ार करोड़ रुपये का भुगतान करना है। 1.76 लाख करोड़ रुपये देने की घोषणा के साथ स्पष्ट हो गया कि यह फौरी तदर्थ इंतज़ाम है और इससे अर्थव्यवस्था का पटरी पर आना बहुत मुश्किल है।
प्रत्यक्ष राजस्व संग्रह में कमी, जीएसटी से संग्रह में कमी और राज्य सरकारों के प्रति केंद्र की बढ़ती हुई देनदारी के चलते सरकार पर जो अतिरिक्त बोझ है, उन सबके लिये सरकार के पास रिजर्व बैंक की इस राशि से सिर्फ तीस हज़ार करोड़ बचेगा। इन एक लाख छियत्तर हज़ार करोड़ में से सरकार को एक पैसा भी कृषि क्षेत्र के लिये या जन-हितकारी अन्य किसी भी काम के लिये अतिरिक्त मिलने वाला नहीं है ।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अपने खजाने से सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपये की राशि देने का निर्णय लिया है। आरबीआई की ओर से सरकार को दी गई यह अब तक की सबसे बड़ी राशि होगी। पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अगुआई वाली कमेटी की सिफारिशों को आरबीआई की बोर्ड मीटिंग में स्वीकार कर लिया गया। इस 1.76 लाख करोड़ में से 1.23 लाख करोड़ रुपये वित्त वर्ष 2018-19 के सरप्लस (अधिशेष) के रूप में और 52,637 करोड़ रुपये रिजर्व से दिए जाएंगे, जो अतिरिक्त प्रावधान बताया जा रहा है।
रिजर्व बैंक के साल 2017-18 के आंकड़ों के अनुसार, उसके बहीखाते में 36.2 लाख करोड़ रुपये की रकम है। हालांकि रिजर्व बैंक का बहीखाता किसी कंपनी की तरह पूरी तरह मुनाफे का नहीं होता। वह जितना करेंसी नोट छापता है उसका आधा से ज्यादा हिस्सा लायबिलिटी यानी देनदारी के रूप में होता है। खजाने का 26 फीसदी हिस्सा रिजर्व बैंक का सरप्लस रिजर्व होता है। यह सरप्लस असल में विदेशी या भारत सरकार की प्रतिभूतियों और गोल्ड में निवेश के रूप में होता है।
रिजर्व बैंक के पास करीब 566 टन सोना है। कुल खजाने का करीब 77 फीसदी हिस्सा विदेशी एसेट और रिजर्व के रूप में है। इसको लेकर रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय में मतभेद भी रहा है कि उसके पास कितना रिजर्व होना चाहिए।
रिजर्व बैंक के पास दो तरह के रिजर्व होते हैं करेंसी ऐंड गोल्ड रीवैल्यूएशन अकाउंट और कॉन्टिजेंसी फंड यानी आपात निधि। रिजर्व में सबसे बड़ा हिस्सा करेंसी एंड गोल्ड रीवैल्यूएशन अकाउंट का होता है । साल 2017-18 में इसके तहत कुल 6.9 लाख करोड़ रुपये थे। यह उस गोल्ड और विदेशी करेंसी की वैल्यू है जो भारत की तरफ से रिजर्व बैंक के पास रहता है। बाजार के हिसाब से इस वैल्यू में उतार-चढ़ाव होता रहता है। कॉन्टिजेंसी फंड या आपात निधि रिजर्व बैंक के पास मौजूद ऐसी राशि होती है, मौद्रिक नीति या एक्सचेंज रेट में बदलाव के समय जिसकी जरूरत पड़ सकती है। साल 2017-18 में रिजर्व बैंक के कॉन्टिजेंसी फंड में 2.32 लाख करोड़ रुपये थे।
रिजर्व बैंक का सरप्लस या अधिशेष राशि वह होती है जो वह सरकार को दे सकता है। रिजर्व बैंक को अपनी आय में किसी तरह का इनकम टैक्स नहीं देना पड़ता। इसलिए अपनी जरूरतें पूरी करने, जरूरी प्रावधान और जरूरी निवेश के बाद जो राशि बचती है वह सरप्लस फंड होती है जिसे उसे सरकार को देना होता है।
रिजर्व बैंक को आय मुख्यत: सिक्योरिटीज यानी प्रतिभूतियों में निवेश पर मिलने वाली ब्याज से होता है। रिजर्व बैंक ने साल 2017-18 में 14,200 करोड़ रुपये कॉन्टिजेंसी फंड के लिए तय किए थे। जितना ज्यादा इस फंड के लिए प्रोविजनिंग की जाती है, रिजर्व बैंक का सरप्लस उतना ही कम हो जाता है। वर्ष 2018-19 में रिजर्व बैंक ने 1,23,414 करोड़ रुपये का सरप्लस सरकार को देना तय किया है।
सरकार ने आरबीआई से मांग की थी कि वह अपने अतिरिक्त रिजर्व्स को सरकार को सौंप दे, जिसे आरबीआई ने मानने से मना कर दिया था। इसके चलते उर्जित पटेल को आरबीआई गवर्नर के पद से इस्तीफा देने का मजबूर होना पड़ा, क्योंकि सरकार ने बैंक को दिशा-निर्देश देने की बात कही थी। इसके बाद कैपिटल फ्रेमवर्क के मुद्दे को बिमल जालान के नेतृत्व वाली कमेटी को सांप दिया गया था। इसके बाद सरकार ने आरबीआई से कैपिटल सरप्लस ट्रांसफर करने की मांग की।
सरकार का मानना है कि केंद्रीय बैंक के पास उसके साथ बैंकों से कहीं ज्यादा रिजर्व्स हैं। जालान कमेटी को यह जिम्मा सौंपा गया था कि वह तय करे कि कितना फंड रिजर्व बैंक को सरकार को सौंपना चाहिए।