Begin typing your search above and press return to search.
राजनीति

PM मोदी जिस व्यवस्था की कर रहे पैरवी, उसमें शामिल है केवल बेरोजगारी, भूख और जनता की बर्बादी

Prema Negi
1 Jun 2020 7:47 PM IST
PM मोदी जिस व्यवस्था की कर रहे पैरवी, उसमें शामिल है केवल बेरोजगारी, भूख और जनता की बर्बादी
x

पूंजीपतियों के पक्ष में बहुत सारे फैसले आते हैं और इन्हें सरकार प्राथमिकता के आधार पर करती है पूरा, मगर पर क्या कोई फैसला सबकी भूख, प्यास, श्रमिकों की समस्याओं या फिर प्रवासी श्रमिकों से सम्बंधित आया है, जिसे सरकार ने किया हो पूरा...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। हमारे देश का लोकतंत्र पूरी तरह से पूंजीवाद के अधीन है, और इसका बेहतरीन नमूना है, पिछले अनेक वर्षों से हरेक सरकारों द्वारा “ईज ऑफ़ डूइंग बिज़नैस” का जाप करना। देश की केंद्र या फिर किसी भी राज्य सरकारों ने कभी भी “इज ऑफ़ लाइफ” का जिक्र भी नहीं किया, जबकि बेहतरीन और जीवंत लोकतंत्र तभी हो सकता है जब सरकारें अपने नागरिकों का जीवन सुगम बनाती हों।

केरल जैसे एक्का-दुक्का राज्यों को छोड़कर पूरे देश में नागरिक किसी भी योजना में आते ही नहीं हैं, पर सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास जैसे आश्वासन जरूर सुनाये जाते हैं। पूरी दुनिया इस समय भारतीय प्रवासी मजदूरों का संकट देख रही है, लोग भूख-प्यास से मर रहे हैं, बेरोजगार हो रहे हैं, और सरकारें अपनी वाहवाही में व्यस्त हैं।

यह भी पढ़ें : पूंजीपतियों के लिए 14 गांवों के हजारों आदिवासियों को जल-जंगल-जमीन से बेदखल कर रही गुजरात सरकार

भी जनता के नाम पत्र आता है तो कभी मन की बात आती है – यदि कुछ नहीं आता तो वह है मदद। कोविड 19 से भी साधारण जनता ही मर रही है, इसलिए अब सारी पाबंदियां हटाई जा रहीं हैं। चीन से ज्यादा संक्रमण और मौतों के बाद भी प्रधानमंत्री से लेकर मंत्री तक सभी बार बार बता रहे हैं कि दूसरे देशों के मुकाबले हमारी स्थिति बहुत अच्छी है।

रअसल ईज ऑफ़ डूइंग बिज़नैस ही जनता की सारी सुविधाएं छीन लेता है और केवल उद्योगपतियों को ही सुगमता प्रदान करता है। इसके नाम पर हरेक स्तर पर जनता की भागीदारी ख़त्म कर दी जाती है और श्रमिकों की सुविधाएं भी। सभी श्रम कानूनों की उपेक्षा की जाती है और सभी संसाधनों से जनता को बेदखल कर दिया जाता है।

यह भी पढ़ें : ‘भोजन दो या फिर हमें मार दो, हमारे पास 4 दिन से खाने को कुछ भी नहीं’

सामान्य स्थितियों में जिन कानूनों से छेड़छाड़ में विरोध की गुंजाइश थी, उन्हें कोविड 19 के लॉकडाउन में बदल डाला गया। अनेक राज्यों में खनन के लिए हजारों लोगों को उनके पुश्तैनी इलाके से बेदखल कर दिया गया, और अनेकों परियोजनाओं को स्वीकृति दे दी गई, जो घोषित तौर पर प्राकृतिक संसाधनों का विनाश करने वाले हैं।

लॉकडाउन के नाम पर इन सब परियोजनाओं का ना तो विस्तृत अध्ययन किया गया और ना ही जनसुनवाई की गई। सरकारों की प्राथमिकता पूंजीपतियों को खुश करना था और इस काम को सरकार ने बखूबी कर दिखाया। इस दौर में तो पुलिस और सुरक्षा बालों के अधिकार भी असीमित हैं, इसलिए आवाज उठाने वाले मार दिए जाते हैं, गायब करा दिए जाते हैं या फिर जेलों में ठूंस दिए जाते हैं।

यह भी पढ़ें – गुजरात: कोरोना महामारी के बीच आदिवासियों की जमीन छीनने पहुंची सरकार, ट्विटर ट्रेंड बना ‘BJP हटाओ केवडिया बचाओ’

ब तो सरकार आंकड़े या सूचना देने से भी सीधे मना कर देती है और न्यायालय तो शिकायतकर्ता को ही धमकाने लगे हैं, सजा सुनाने लगे हैं या फिर फाइन लगाने लगे हैं। यदि गलती से कोई अदालत कोई फैसला सरकार के विरुद्ध दे भी देती है तब भी बेशर्मी से सरकार उसे कचरे के डिब्बे में फेंक देती है।

द्योगों और पूंजीपतियों के पक्ष में बहुत सारे फैसले आते हैं और इन्हें सरकार प्राथमिकता के आधार पर पूरा भी करती है, पर क्या कोई फैसला सबकी भूख, प्यास, श्रमिकों की समस्याओं या फिर प्रवासी श्रमिकों से सम्बंधित आया है, जिसे सरकार ने पूरा किया हो?

यह भी पढ़ें : पूंजीपतियों के हित में पर्यावरण प्रभाव के निर्धारण प्रक्रिया में बदलाव कर रही मोदी सरकार

ज ऑफ़ डूइंग बिज़नैस का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है, व्यापार या फिर उद्योग को प्रदूषण फैलाने का अधिकार देना। आकाश से पाताल तक उद्योग प्रदूषण फैलाते हैं, लोग बीमार होते हैं, मरते हैं और फिर सरकारें बतातीं हैं कि प्रदूषण से कोई बीमार नहीं पड़ता, किसी की जिन्दगी छोटी नहीं होती, कोई मरता भी नहीं। यह सफ़ेद झूठ सरकार बिज़नैस के लिए बोलती है, जनता के लिए नहीं। जनता के लिए सरकार प्रदूषण को भी किसानों की देन बताती है।

पूंजीवाद या बिज़नैस में प्रगति का एक पैमाना है – मानव श्रम को लगातार कम करते हुए उत्पादन को बढ़ाना। कुछ दशक पहले तक बहुत सारे उद्योग थे, जिसमें शिफ्ट ख़त्म होते ही श्रमिकों का बड़ा रेला निकालता था, अब ऐसे उद्योग तो दिखते ही नहीं जब की उनके उत्पाद पहले से बड़ी मात्रा में बाजार पहुंचते हैं. सरकारों ने सबसे पहले कृषि व्यवस्था को ध्वस्त किया।

यह भी पढ़ें- आप मानें या ना माने, पर्यावरण संकट की ही देन है कोरोना वायरस

कृषि देश में ऐसा पेशा था, जिसमें सबसे अधिक संख्या में लोगों को रोजगार मिलता था। जब कृषि की हालत खराब होने लगी तब श्रमिकों ने शहरों का रुख किया। अब तो शहर भी श्रमिकों को निराश करने लगे हैं।

प्रधानमंत्री जी अनेकों बार औद्योगिक क्रान्ति के चौथे चरण की बात करते हैं, जो आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस, रोबोट्स और ऑटोमेशन पर केन्द्रित है। पूंजीवादी व्यवस्था की भाषा बोलने वाली सरकारें इसके बारे में कुछ भी कहें, पर तथ्य यही है कि ये सभी विकास मानव श्रम को निगलने के लिए बने हैं।

आरोग्य एप : कोरोना के बहाने जनता पर नजर रखने की एक नई डिजिटल तकनीकी

र्टिफीसियल इंटेलिजेंस, रोबोट्स और ऑटोमेशन के बाद शायद ही मानव श्रम की जरूरत पड़ेगी, इसका सीधा सा मतलब है कि हमारे प्रधानमंत्री जिस व्यवस्था की बात कर रहे हैं, उसमें केवल बेरोजगारी है, भूख है और जनता की बर्बादी है। सरकारों को भी यह पता है की सरकारें जनता नहीं चुनती, बल्कि पूंजीवादी व्यवस्था चुनती है।

Next Story

विविध