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आंदोलन

तीर-कमानों से भूपेश बघेल के आवास का घेराव करने निकले आदिवासी, बोले जो वादे किए उन्हें निभाने का आ गया वक्त

Nirmal kant
19 Nov 2019 1:32 PM GMT
तीर-कमानों से भूपेश बघेल के आवास का घेराव करने निकले आदिवासी, बोले जो वादे किए उन्हें निभाने का आ गया वक्त
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छत्तीसगढ़ के मानपुर मोहल्ला इलाके के सैकड़ों आदिवासियों ने पैदल मार्च निकालकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के आवास का घेराव करने पहुंचे लेकिन पुलिस ने उन्हें बीच में रोक लिया। ये आदिवासी लंबे समय से वनाधिकार पट्टा, पेसा कानून समेत आठ सूत्रीय मांगों लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं..

जनज्वार। छत्तीसगढ़ के रायपुर स्थित मानपुर मोहल्ला के इलाके में सैकड़ों आदिवासी पैदल मार्च करते हुए सोमवार 18 अक्टूबर को राजधानी पहुंचे। हाथों में तीर कमान लिए ये आदिवासी बूढ़ापारा धरना स्थल से मुख्यमंत्री आवास की ओर मार्च करने के लिए निकले थे तभी पुलिस ने इन्हें बीच मे ही रोक लिया। दरअसल, वनाधिकार पट्टा, पेसा कानून समेत 8 सूत्री मांगों को लेकर आदिवासी लंबे समय से प्रदर्शन कर रहे हैं। वन अधिकार संघर्ष समिति के नेतृत्व में इससे पहले 11 नवंबर को इस राजनांदगाव के मानपुर से पैदल मार्च निकाला गया था जिसमें कई आदिवासी संगठनों ने इसमें हिस्सा लिया और उनके साथ सैकड़ों आदिवासी 7 दिन तक पैदल चलकर यहां पहुंचे हैं।

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रैली निकालने से पहले धरना स्थल पर आदिवासियों की आमसभा भी हुई थी। यहां पर आदवासियों ने वन अधिकार कानून 2006 को प्रभावी ढंग से लागू करन की मांग उठाई है। साथ ही पांचवी अनुसूची, विभिन्न खनन परियोजनाओं के चलते आदिवासियों के विस्थापन जैसे मुद्दे भी रैली में गूंजे, सभी ने एकमत होकर कहा कि जंगल पर वनवासियों का अधिकार है और उन्हें इसका हक मिलकर रहना चाहिए। आमसभा के बाद आदिवासी मुख्यमंत्री निवास को घेरने के लिए निकले।

आंदोलन को लेकर वनाधिकार संघर्ष समिति के सुरजू ठाकुर ने कहा कि देश के शासक वर्ग और पूंजीपतियों के दबाव के चलते भारतीय वन कानून 1927 के जरिए और नई भारतीय वन नीति लागू करने का प्रयास कर वन स्वराज मिलने से पहले ही खत्म करने की कोशिश की जा रही है। चुनाव के समय आज की सरकार ने जो वादा किया था, उसे निभाने का वक्त अभी है।

त्तीसगढ़ में वनाधिकार कानून के क्रियान्वयन पर सरकार को अपना वाद याद दिलाने और आदिवासियों पर हुए ऐतिहासिक अन्याय को ख़त्म कराने के लिए वन स्वराज आंदोलन का आयोजन वन अधिकार और आदिवासी अधिकार पर लड़ने वाले प्रदेश के 30 से अधिक संगठनों ने किया था, जिसमें विभिन्न वन क्षेत्रों से करीब दो हजार लोग शामिल हुए थे।

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दिवासी जिन आठ मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे है उनमें गलत तरीके से ख़ारिज किए गए या बगैर सुने गए केसों पर पुनर्विचार कर वाजिब दावे मान्य किए जाए और प्रत्येक निरस्त दावों के कारणों को दर्ज कर सार्वजानिक जानकारी में उपलब्ध रखा जाए। इसके अलावा आदिवासियों की जो मांगे हैं वह इस प्रकार से हैं-

- खनन, उद्योगों और विकास परियोजनाओं के लिए वनभूमि के व्यपवर्तन के लिए ग्राम सभा की दबाव- मुक्त, लिखित अनिवार्य सहमति लेने का पालन किया जाए।

- भारतीय वन अधिनियम, 1927 में प्रस्तावित संशोधनों को भविष्य में लागू न होने दिया जाए और वन अधिकार कानून की मंशा के अनुरुप राज्य के कानून में बदलाव किया जाए।

- प्रदेश में शून्य विस्थापन की नीति अपनाई जाए, विशेष रुप से वन्यजीवों, अभयारण्यों, टाइगर रिजर्व एवं राष्ट्रीय उद्यानों तथा विशेषरुप से कमजोर आदिवासी समूहों की बेदखली को तुरंत रोका जाए।

- हाथी रिजर्व सहित, प्रदेश में कोई भी वन्यजीव अभयारण्य घोषित करने से पूर्व संबंधित ग्राम सभाओं से पूर्व सूचित सहमति ली जाए।

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