Begin typing your search above and press return to search.
संस्कृति

प्रेक्षागृहों के लिए उत्तराखंड सरकार का 'सिनेमाहॉल फार्मूला' तो संस्कृतिकर्मी होटलों और स्कूलों पर निर्भर

Prema Negi
15 Sep 2018 1:39 PM GMT
प्रेक्षागृहों के लिए उत्तराखंड सरकार का सिनेमाहॉल फार्मूला तो संस्कृतिकर्मी होटलों और स्कूलों पर निर्भर
x

उत्तराखण्ड सरकार के इस निर्णय के खिलाफ सिर्फ पिथौरागढ़ ही नहीं बल्कि पूरे राज्य के रचनाधर्मियों को एकजुट होना जरूरी है, ताकि राज्य के नीति-नियंता यह सोचने की गलती न करें कि नगाड़े खामोश हैं...

संग्रहालय एवं प्रेक्षागृह को उत्तराखण्ड की भाजपा सरकार द्वारा लीज पर दिए जाने को लेकर हेम पंत की तल्ख टिप्पणी

उत्तराखंड की विशिष्ट संस्कृति और ऐतिहासिक समृद्ध विरासत पर हमें आए दिन नेता और अफसरों के भाषण सुनने को मिलते हैं। इस विषय पर कई किताबें छप चुकी हैं और सेमिनार-गोष्ठियां भी समय समय पर होती रहती हैं। लेकिन अब उत्तराखंड सरकार ने पिथौरागढ़ में संस्कृति बचाने का एक अनूठा रास्ता अख्तियार किया है। पिथौरागढ़ में संस्कृति मंत्रालय द्वारा संचालित 'संग्रहालय एवं प्रेक्षागृह' के एक हिस्से को 'सिनेमाहॉल के लिए लीज' पर देने का निर्णय ले लिया है।

उत्तराखंड शासन की अपर सचिव ज्योति नीरज खैरवाल द्वारा हस्ताक्षरित यह आदेश 20 अगस्त 2018 को निर्गत किया गया है, लेकिन यह लीज कितने समय के लिए दी जा रही है, यह इस पत्र से स्पष्ट नहीं है। लीज के लिए अदा की जाने वाली धनराशि का भी पता नहीं चल पा रहा है। किसी संतोष चंद रजवार नाम के आदमी को यह लीज दी जानी है, लेकिन यह ऑडिटोरियम संतोष चंद रजवार को ही क्यों लीज पर दिया जा रहा है यह किसी को पता नहीं है। अभी इस लीज का एग्रीमेंट नहीं किया गया है।

भारी मेहनत से लोगों को और संसाधनों को जोड़कर सामाजिक सहयोग की मदद से लोककला और रंगकर्म को बचाने के लिए जी-जान से जुटे हुए पिथौरागढ़ के कई युवा कलाकार सरकार के इस अप्रत्याशित फैसले से अचंभे में हैं।

शहर से लगभग 3 किमी दूर नैनी-सैनी हवाई पट्टी रोड पर स्थित यह ऑडिटरियम इन कलाकारों के द्वारा तैयार किए गए कार्यक्रमों के मंचन के लिए एकमात्र उपयुक्त जगह है। कई अभावों के बीच काम करते रहने के बावजूद पिथौरागढ़ के कलाकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस ऑडिटोरियम में दर्जनों सफ़ल कार्यक्रम आयोजित करके पिथौरागढ़ की रचनाशीलता को एक नई ऊर्जा दी है।

होना तो यह चाहिए था कि जो लोग पिथौरागढ़ के लोकवाद्य, लोकगीत और हिल-जात्रा जैसी विशिष्ट लोककलाओं को देश-विदेश में अपनी व्यक्तिगत कोशिशों से सफलतापूर्वक पहचान दिला रहे हैं, सरकार उनकी आजीविका चलाने का समुचित और ठोस प्रबंध करे, नए प्रोजेक्ट के लिए काम करने के लिए बजट उपलब्ध कराए, उनके काम को विस्तार दे। लेकिन सरकार के नीति-नियंताओं ने ठीक इसका उल्टा रास्ता पकड़ा है। जो थोड़ा बहुत आधारभूत सुविधाएं इन कलाकारों को उपलब्ध हो भी रही हैं, उनको भी अब छीना जा रहा है।

सांस्कृतिक रूप से समृद्ध कहे जाने वाले उत्तराखंड राज्य के संस्कृतिकर्मियों और कलाकारों की बुरी हालत किसी से छिपी नहीं है। इससे बड़ी शर्म की क्या बात हो सकती है कि पिछले दिनों पिथौरागढ़ शहर में ही वयोवृद्ध लोकगायिका कबूतरी देवी जी का उचित इलाज के अभाव में निधन हो गया था। एक ध्यान देने वाली बात ये भी है कि उत्तराखंड के कुछ ही शहरों में सरकारी ऑडिटोरियम उपलब्ध हैं।

पौड़ी, रामनगर और अल्मोड़ा के प्रेक्षागृह अच्छे स्तर के माने जाते हैं। राष्ट्रीय स्तर के कई कलाकारों को तैयार करने वाले नैनीताल शहर के रंगकर्मी भी कई साल से एक सार्वजनिक प्रेक्षागृह की मांग के लिए संघर्षरत हैं। रुद्रपुर और हल्द्वानी के कलाकारों को भी ऑडिटोरियम के अभाव में नाटक की रिहर्सल और मंचन के लिए निजी होटलों या स्कूलों पर निर्भर रहना पड़ता है।

पिथौरागढ़ के स्थानीय कलाकारों के अनुसार इस ऑडिटोरियम की वर्तमान स्थिति भी कुछ अच्छी नहीं है। लगभग डेढ़ साल से यहां का जनरेटर बजट के अभाव में खराब पड़ा है। कई बार नाटक के दौरान लाइट चले जाने पर मंचन में व्यवधान पड़ चुका है। इस सबके बावजूद कड़ी मेहनत और बुलन्द हौसलों से यहां के कलाकारों ने पूरे देश में अपनी पहचान बनाई है।

अपनी प्रतिभा और मेहनत के बल पर पिथौरागढ़ से स्व. कबूतरी देवी, डॉ. अहसान बख़्श, हेमन्त पांडे, अशोक मल्ल, पप्पू कार्की, कैलाश कुमार, हेमराज बिष्ट, गोविन्द दिगारी जैसे कई कलाकार निकलकर आए हैं। इस समय भी पिथौरागढ़ के युवा भाव राग ताल, अनाम, हरेला सोसायटी, आरम्भ स्टडी सर्कल जैसे कई रचनाशील संगठनों से जुड़कर बेहतरीन काम कर रहे हैं। सरकारी ऑडिटोरियम को लीज पर देने की यह ख़बर पिथौरागढ़ के हर जागरूक नागरिक के लिए निराशाजनक है।

इस एकमात्र ऑडिटोरियम को लीज पर देने के फैसले के बाद पिथौरागढ़ के सामाजिक कार्यकर्ताओं, रंगकर्मियों और संस्कृतिकर्मियों ने सरकार के इस औचित्यहीन कदम का पुरजोर विरोध करने का निर्णय लिया है।

लेकिन उत्तराखण्ड सरकार के इस निर्णय के खिलाफ सिर्फ पिथौरागढ़ ही नहीं बल्कि पूरे राज्य के रचनाधर्मियों को एकजुट होना जरूरी है, ताकि राज्य के नीति-नियंता यह सोचने की गलती न करें कि 'नगाड़े खामोश हैं।'

Next Story

विविध